राजा ने आठ बेटों की बलि देकर हासिल किया संगमरमर, फिर करवाया चंबा के लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण
लक्ष्मीनारायण मंदिर हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित है। जो अपने महान ऐतिहासिक महत्व और चमत्कार के लिए जाना जाता है। इसे राजा साहिल वर्मन द्वारा 10वीं शताब्दी में बनवाया गया था। ये मंदिर चंबा में सबसे पुराने और सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। इस परिसर में छह अलग-अलग मंदिर हैं। परिसर में भगवान शिव या विष्णु को समर्पित मंदिर उत्तर से दक्षिण की ओर व्यवस्थित हैं। परिसर में राधा कृष्ण मंदिर, चंद्रगुप्त का शिव मंदिर और गौरी शंकर सहित अन्य मंदिर भी हैं।
राजा साहिल वर्मन से जुड़ी मंदिर की कहानी
इस मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति एक दुर्लभ संगमरमर से बनी है, जिसे विंध्याचल पर्वत से लाया गया था। ऐसा माना जाता है कि राजा-साहिल वर्मन ने संगमरमर पाने के लिए अपने आठ बेटों की बलि दे दी थी और आखिरकार उनके सबसे बड़े बेटे युगकार ने संगमरमर हासिल करने में सफलता हासिल की। वास्तव में उन पर भी लुटेरों ने हमला किया था, लेकिन एक संत की बदौलत उन्होंने खुद को लुटेरों से बचा लिया था।
मंदिर के निर्माण में रखा गया मौसम का ध्यान
लक्ष्मीनारायण मंदिर के चारों ओर खूबसूरत अर्की हिल्स हैं। मंदिर के आसपास शांत वातावरण आपको सुकून देता है, और लुभावने दृश्य इसे और भी सुंदर बना देते है। राजा साहिल वर्मन द्वारा 10वीं शताब्दी में निर्मित लक्ष्मी नारायण मंदिर चंबा का मुख्य तीर्थ स्थल है जिसमें विमान यानी शिखर और गर्भगृह के साथ एक मंडप शामिल है। मंदिर में लकड़ी की छतरियां है और बर्फबारी से बचाने के लिए सबसे ऊपर एक खोल की छत है। एक पहिए के आकार की छत है जो ठंड से बचाने में मदद करती है। इसमें भगवान विष्णु की सवारी गरुड़ की धातु की छवि है।
मंदिर पर कई राजाओं के अस्तित्व की छापये ऐतिहासिक महत्व और स्थापत्य कला के चमत्कार का एक सुंदर स्थान है। इसके परिसर में और भी अन्य मंदिर है जैसे राधा कृष्ण मंदिर- रानी सरदा द्वारा 1825 में बनवाया गया, चंद्रगुप्त का शिव मंदिर- साहिल वर्मन द्वारा बनवाया गया और गौरी शंकर मंदिर-युग्मन वर्मन द्वारा बनवाया गया। मुख्य द्वार के ऊपर धातु की बनी गरुड़ प्रतिमा है, जिसे राजा बलभद्र वर्मा ने स्थापित किया था। औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। राजा छत्र सिंह ने साल 1678 में मंदिर में सोने की परत चढ़ाई।
इस मंदिर की विशेषता यह भी है कि भक्त प्रवेश द्वार पर ही खड़े होकर सभी देवी-देवताओं को देख सकते हैं। इस मंदिर की डिजाइन और वास्तुकला इस तरह से से बनाई गई है कि ये सभी प्रकार के मौसम के अनुकूल है। इसके साथ ही इस मंदिर के उत्तर से दक्षिण की दिशा की ओर एक पंक्ति में छह मंदिर हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
मंदिर में मनाये जाने वाले त्योहार
चंबा उन स्थानों में से है जहां बसोहली का प्रभाव वास्तव में पहुंचा हैं। चंबा में दो मेले जिन्हें जात्रा के नाम से भी जाना जाता है। विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सुही माता मेला और मिंजर मेला। इस मेले की एक उल्लेखनीय घटना तब होती है जन देवता का एक चेला समाधि में चला जाता है और भक्तों के प्रश्नों और प्रार्थनाओं का उत्तर देता है। चंबा में आयोजित होने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार सुही माता मेला के नाम से जाना जाता है। ये मार्च-अप्रैल में चार दिनों के लिए हर साल आयोजित किया जाता है।
कैसे पहुंचे लक्ष्मी नारायण मंदिर
हवाई मार्ग - चंबा से लगभग 180 किलोमीटर दूर है कांगड़ा एयरपोर्ट। ये एयरपोर्ट दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों से कनेक्टेड है। एयरपोर्ट से टैक्सी या कैब लेकर चंबा तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - चंबा में रेलवे स्टेशन नहीं है। सबसे नजदीकी स्टेशन धर्मशाला या कांगड़ा में है। आप इन स्टेशनों से टैक्सी लेकर मंदिर जा सकते हैं।
सड़क मार्ग - कांगड़ा से चंबा की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से यात्रा करने पर लगभग 5 से 6 घंटे का समय लगता है। हिमाचल रोडवेज और निजी बस कंपनियों द्वारा चंबा के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
डिसक्लेमर
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।