पौराणिक कथा के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर व्रत और उपवास रखना बहुत शुभ और फलदायी माना गया है। जो लोग व्रत रखते हैं, उन्हें इस दिन कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।
एक बार महर्षि वेदव्यास ने अपने बचपन में माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की, लेकिन माता सत्यवती ने उनकी इस इच्छा को नकार दिया। तब वेदव्यास जी हठ करने लगे, और उनके हठ पर माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दे दी। माता ने उनसे यह भी कहा कि जब घर का स्मरण आए, तो लौट आना।
इसके बाद वेदव्यास तपस्या के लिए वन चले गए, और वहाँ जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के फलस्वरूप वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता प्राप्त हुई। तत्पश्चात, उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की रचना की।
महर्षि वेदव्यास को चारों वेदों का ज्ञान था, और यही कारण है कि इस दिन से गुरु पूजने की परंपरा चली आ रही है।
महानिर्वाणी अखाड़ा भारत के प्राचीन और प्रतिष्ठित अखाड़ों में से एक है, जिसका संबंध शैव संप्रदाय से है। अखाड़े का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में है। वहीं इसके आश्रम ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबकेश्वर, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में मौजूद है।
महाकुंभ की शुरुआत में अब 1 महीने का समय बचा है। लगभग सभी अखाड़े प्रयागराज भी पहुंच चुके हैं। लेकिन इन दिनों शैव संप्रदाय का एक अखाड़ा चर्चा में बना हुआ है।
हवन की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। अग्नि को देवताओं का प्रतीक मानते हुए, हवन या यज्ञ के माध्यम से ईश्वर की उपासना की जाती है।
हिंदू धर्म के 13 अखाड़ों में निरंजनी अखाड़ा प्रमुखता से जाना जाता है । शैव संप्रदाय का यह अखाड़ा साधु संतों की संख्या में दूसरे नंबर पर आता है। इसकी खास बात है कि यहां के 70 फीसदी से ज्यादा संत डिग्रीधारक होते है। कोई डॉक्टर होता है, तो कोई इंजीनियर, तो कोई प्रोफेसर।