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रामनवमी की पौराणिक कथा

रामनवमी की पौराणिक कथा

Ram Navami Katha: क्यों मनाई जाती है रामनवमी? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा


सनातन धर्म में श्रीराम का विशेष महत्व है। इसलिए हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष के नौवें दिन श्रीराम के निमित्त रामनवमी का त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसलिए इस दिन महा नवमी के साथ-साथ रामनवमी का पर्व भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान राम की विधि-विधान से पूजा भी की जाती है। तो आइए, इस आर्टिकल में रामनवमी से जुड़ी पौराणिक कथा को विस्तार से जानते हैं।


रामनवमी की कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, तीन पत्नियों के बावजूद महाराज दशरथ को एक भी पुत्र प्राप्त नहीं हुआ था। इसलिए उन्होंने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ की सहायता मांगी। इसके बाद महर्षि वशिष्ठ के कहने पर महाराज दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ से पहले महाराज दशरथ ने श्यामकर्ण घोड़े को चतुरंगिणी सेना के साथ छोड़ने का आदेश दिया।

महाराज दशरथ ने इस यज्ञ के लिए सभी प्रतापी मुनियों को आमंत्रित किया था। जिस दिन इस महान यज्ञ का शुभारंभ होना था, उस दिन गुरु वशिष्ठ के साथ महाराज दशरथ के प्रिय मित्र, अंग प्रदेश के अधिपति लोभपाद के दामाद ऋग ऋषि और अन्य आगंतुक भी यज्ञ मंडप पर पहुंचे। सभी के समक्ष यज्ञ का शुभारंभ हुआ। यज्ञ की समाप्ति पर महाराज दशरथ ने सभी ऋषियों, मुनियों और पंडितों को धन-धान्य का दान कर प्रसन्न मन से विदा किया और यज्ञ से प्राप्त प्रसाद लेकर अपने महल लौट आए।

इसके उपरांत, उन्होंने यह प्रसाद अपनी तीनों रानियों के बीच बांट दिया। यज्ञ में मिले प्रसाद के सेवन से तीनों रानियों ने गर्भ धारण किया। सबसे पहले माता कौशल्या को पुत्र की प्राप्ति हुई। रानी कौशल्या ने जिस बालक को जन्म दिया, उसके मुख पर अद्भुत तेज था और वह नील वर्ण था। जो भी उस बालक को देखता, मंत्रमुग्ध हो जाता। इस बालक का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। यह बालक कोई और नहीं बल्कि स्वयं प्रभु श्रीराम थे।

भगवान राम के जन्म के समय पुनर्वसु नक्षत्र के अंतर्गत शनि, रवि, शुक्र और बृहस्पति ग्रह अपने उच्च स्थान पर मौजूद थे, और साथ ही कर्क लग्न का भी उदय हो रहा था। माता कौशल्या के बाद दो अन्य रानियों, माता कैकेयी और माता सुमित्रा को भी शुभ नक्षत्रों में पुत्रों की प्राप्ति हुई। माता सुमित्रा को दो पुत्र प्राप्त हुए। इन बालकों के जन्म के बाद पूरे राज्य में खुशी की लहर फैल गई। गंधर्वों के गीतों के साथ बालकों का स्वागत किया गया। देवताओं ने भी प्रसन्न होकर आकाश से पुष्प वर्षा की।

इन बालकों के नाम महर्षि वशिष्ठ ने रामचंद्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे। इन चारों भाइयों में अत्यधिक प्रेम था। सभी अपने बड़े भाई राम का बहुत सम्मान और स्नेह करते थे तथा उनके आदेशों का पालन करते थे। भगवान राम बाल्यकाल से ही अत्यंत प्रतिभाशाली थे।

उन्होंने कम उम्र में ही समस्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वे दिन-रात अपने गुरुओं और माता-पिता की सेवा में लगे रहते थे। बता दें कि गुरु विश्वामित्र ने भगवान राम को धनुर्विद्या और शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया, जबकि ऋषि वशिष्ठ ने श्रीराम को राज-पाट और वेदों की शिक्षा दी। महर्षि वशिष्ठ ने ही श्रीराम का राज्याभिषेक भी कराया था।


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