काल भैरव मंदिर, उज्जैन (Kaal Bhairav Mandir, Ujjain)

दर्शन समय

6 am - 9 pm

महाकाल की नगरी उज्जैन में दर्शनीय तीर्थ स्थलों की भरमार है। यहां बाबा महाकाल के अलावा कई ऐसे मंदिर हैं जो बहुत अनोखे और रहस्यमयी हैं। काशी के पंडितों की मान्यता है कि भगवान कालभैरव भगवान शिव उग्र अवतार हैं और ये बुराई का विनाश करते हैं। भगवान कालभैरव का एक अनोखा मंदिर महाकाल की नगरी उज्जैन में भी है। उज्जैन के कालभैरव मंदिर के संबंध में एक चमत्कारी बात ये भी सामने आती है कि यहां स्थित भगवान कालभैरव की प्रतिमा मदिरा यानी शराब का सेवन करती है, यहां आकर लोग भगवान काल भैरव को मदिरा का भोग लगाते हैं और वे मदिरा मूर्ति के मुख में जाती भी है। लेकिन ये मदिरा कालभैरव की मूर्ति से कहां जाती है ये रहस्य आज भी बना हुआ है। प्रतिमा को मदिरा पीते हुए देखने के लिए देश-दुनिया से रोज हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। 


कालभैरव के दर्शन के बिना महाकाल की पूजा अधूरी

दरअसल, काल भैरव को उज्जैन के द्वारपाल व सेनापति के रूप में मान्यता दी जाती है। लोगों के अनुसार महाकाल के दर्शन करने के पहले भक्तों को शहर कोतवाल कालभैरव की आज्ञा लेना चाहिए। जो भक्त उज्जैन में महाकाल का दर्शन करने से पहले बाबा काल भैरव का दर्शन करते हैं, उनके जीवन के सारे पाप मिट जाते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। लेकिन काल भैरव के दर्शन के बिना जो सिर्फ महाकाल की पूजा करते हैं उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। 


काल भैरव मंदिर का महत्व 

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के क्रोध रूप को ही काल भैरव कहा गया है। काल भैरव का हिंदू धार्मिक ग्रंथों और लोगों की आस्था में बहुत अधिक महत्व सामने आता है। भैरव का अर्थ होता है भय का हरण करने वाला। भगवान काल भैरव शिव जी के गण और पार्वती जी के अनुचर कहे जाते हैं। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। भगवान काल भैरव को तंत्र-मंत्र के स्वामी के रूप में भी जाना जाता है। उनकी पूजा में कई प्रकार के सामग्री का प्रयोग किया जाता है। 


स्कंदपुराण में मिलता है कालभैरव का वर्णन

इस मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण के अवंति खंड में मिलता है। मंदिर में भगवान कालभैरव के वैष्णव स्वरूप का पूजन किया जाता है। काल भैरव के दर्शन करने से भक्तों को दुखों और कष्‍टों से निजात मिलती है और किसी अनजाने भय से भी मुक्ति मिलती है। इसके अलावा काल भैरव बाबा का आशीर्वाद शत्रुओं से निजात दिलाने और उन पर विजय पाने में भी कारगर होता है। उज्जैन के काल भैरव मंदिर को लेकर एक रोचक और चमत्‍कारिक तथ्‍य यह भी है कि इस मंदिर में मौजूद भगवान काल भैरव की मूर्ति शराब ग्रहण करती है। पुरातत्व विभाग और वैज्ञानिक इस राज का पता लगाने में असफल रहे हैं। लिहाजा यह रहस्‍य अब भी अनसुलझा है कि मूर्ति में प्रवेश करने वाली शराब कहां जाती है। इसके अलावा एक ऐसी भी मान्‍यता है कि काल भैरव के मंदिर में रविवार के दिन मदिरा चढ़ाने से व्यक्ति सभी प्रकार के ग्रह दोष से मुक्त हो जाता है। इसलिए यहां कालसर्प दोष, अकाल मृत्यु और पितृदोष जैसे खतरनाक दोषों का भी निवारण किया जाता है।


काल भैरव मंदिर में क्यों चढ़ाई जाती है मदिरा 

काल भैरव तामसिक प्रवृति के देवता माने जाते हैं, इसलिए उन्हें शराब का भोग लगाया जाता है। इस मंदिर में शराब चढ़ाने का प्रचलन सदियों से जारी है। असल में काल भैरव के मंदिर में शराब चढ़ाना संकल्प और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मंदिर में आम दिनों में हर रोज भगवान करीब 2000 शराब की बोतल का भोग लगता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान काल भैरव को मदिरा का भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में सेवन करने से शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं। साथ ही सभी तरह के पापों से भी मुक्ति मिलती है। मंदिर के बाहर हर तरह में ब्रांड की महंगी से महंगी शराब मिलती है। यहां शराब प्रशासन की अनुमति से बेची जाती है। मंदिर के बाहर आबकारी विभाग का भी काउंटर है, जहां महिला और पुरुष की अलग-अलग कतारें लगती हैं। 


उज्जैन में किस जगह स्थित है काल भैरव मंदिर 

भगवान कालभैरव का मंदिर मुख्य शहर से कुछ दूरी पर स्थित है। यह स्थान भैरवगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है, जिसके चारों ओर परकोटा (दीवार) बनी हुई है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की इमारत का जीर्णोद्धार करीब एक हजार साल पहले परमार कालीन राजाओं ने करवाया था। इस निर्माण कार्य में मंदिर की पुरानी सामग्रियों का ही इस्तेमाल किया गया था। मंदिर बड़े-बड़े पत्थरों को जोड़कर बनाया गया था। यह मंदिर आज भी मजबूत स्थिति में दिखाई देता है।  


कालभैरव के साथ विराजती हैं पातालभैरवी

कालभैरव मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर जाते ही कुछ दूरी पर बांई ओर पातालभैरवी का स्थान है। इसके चारों ओर दीवार है। इसके अंदर जाने का रास्ता बहुत ही संकरा है। करीब 10-12 सीढिय़ां नीचे उतरने के बाद तलघर आता है। तलघर की दीवार पर पाताल भैरवी की प्रतिमा अंकित है। ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में योगीजन इस तलघर में बैठकर ध्यान करते थे।

वहीं मंदिर में विक्रांत भैरव का मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर तांत्रिकों के लिए बहुत ही विशेष मान्यता रखने वाला है। कहा जाता है कि इस स्थान पर की गई तंत्र क्रिया कभी असफल नहीं होती। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। विक्रांत भैरव के समीप ही श्मशान भी है। श्मशान और नदी का किनारा होने से यहां दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं। इस मंदिर में भगवान कालभैरव की प्रतिमा सिंधिया पगड़ी पहने हुए दिखाई देती है। यह पगड़ी भगवान ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है।


क्या है पगड़ी चढ़ाने से जुड़ी मान्यता? 

मान्यता है कि करीब 400 साल पहले सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहीं गिर गई थी। तब महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को अर्पित कर दी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की। इसके बाद राजा ने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और लंबे समय तक कुशल शासन किया। भगवान कालभैरव के आशीर्वाद से उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई युद्ध नहीं हारा। इसी प्रसंग के बाद से आज भी ग्वालियर के राजघराने से ही कालभैरव के लिए पगड़ी आती है।


काल भैरव मंदिर का पौराणिक महत्व

एक बार एक पर्वत पर ब्रह्मा, विष्णु महेश बैठ कर चर्चा कर रहे थे। इस बीच ये सवाल उठा कि इस संसार का सबसे बड़ा देव कौन है। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि सृष्टि की उतपत्ति मैनें की है इसलिए मैं बड़ा हूं तो विष्णु जी बोले कि मैं पालनहारी हूं, इसलिए मैं बड़ा हूं। दोनों की बात सुनकर भगवान शिव ने कहा कि मैं संघारकर्ता हूं इसलिए सबसे बड़ा देव में हूं। तीनों की चर्चा का जब कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो भगवान अपने-अपने लोक चले गए। 

इसके बाद ब्रह्मा जी के 5 मुख थे तो उन्होंने 4 से चार वेदों की रचना कर दी। लेकिन वे पांचवे मुख से भी वे एक और रचना करना चाहते थे। जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने ऐसा करने से ब्रह्मादेव को मना किया लेकिन ब्रह्मा नहीं माने और पांचवे मुख से रचना करने की जिद करने लगे। इस बात भगवान शिव  क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। नेत्र की ज्याोति से एक  5 साल के बालक प्रकट हुए। जिन्हें बटुक भैरव कहा गया। बटुक भैरव ब्रह्मा जी को मनाने गए। लेकिन ब्रह्मा जी की जिद और वे बटुक भैरव को बालक समझ कर उसका तिरस्कार कर बैठे, जिससे बटुक भैरव को क्रोध आया और वे 5 साल की उम्र में ही मदिरा पान कर लिए। जिन्हें आज श्री काल भैरव जी महाराज कहा जाता है, बटुक भैरव मदिरा का पान करने के बाद क्रोध में आकर कालभैरव का रूप धारण कर लिए और ब्रह्मा जी के पांचवे मुख का तीक्ष्ण उंगली से छेदन कर दिए। जिससे काल भैरव को ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। इसके बाद बटुक शिव के पास गए और उस दोष के निवारण हेतु उचित मार्ग बताने को कहा। इस पर शिव ने उन्हें भ्रमण करने को कहा और इस दौरान  कालभैरव उज्जैनी अवन्तिक नगरी में शिप्रा स्नान कर महाकाल वन में दर्शन कर पर्वत पर तपस्या करन लगे। इस तपस्या के बाद भैरव को ब्रह्मा हत्या के दोष से मुक्ति मिल गई और ये जगह भैरव पर्वत के नाम से ही जानी जाने लगी।


ये है मंदिर की पूजा विधि 

मंदिर के मुख्य पुजारी बताते है कि मंदिर के पट हर रोज सुबह 6 बजे खुलते हैं। सुबह 7 से 8 बजे तक भगवान कालभैरव की आरती होती है और फिर भक्तों के दर्शन शुरू हो जाते हैं। शाम की आरती  6 से 7 बजे के बीच होती है इस दौरान मंदिर में दीप स्तंभ प्रज्वलित किए जाते हैं। 


काल भैरव मंदिर, उज्जैन कैसे पहुंचें?


हवाई मार्ग- उज्जैन का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर का महारानी अहिल्या बाई होल्कर हवाई अड्डा है, जो उज्जैन से लगभग 56 किमी की दूरी पर स्थित है।


रेल मार्ग- उज्जैन जंक्शन रेलवे स्टेशन एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है जो देश के सभी प्रमुख स्टेशनों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। काल भैरव मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 6.0 किलोमीटर की दूरी पर है। जहां आप स्थानीय परिवहन की सहायता से पहुंच सकते हैं।


सड़क मार्ग- एमपी के प्रमुख शहरों से उज्जैन के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं, इन मार्गों पर सुपर फास्ट और डीलक्स बसें भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा अगर आप अपने निजी वाहन से यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि उज्जैन को भारत के मुख्य शहरों से जोड़ने वाली सड़कें आगर रोड, इंदौर रोड, देवास रोड, मक्सी रोड और बड़नगर रोड हैं।


मंदिर के आसपास की होटल्स

होटल शिखर दर्शन 

होटल महाकाल विश्राम 

होटल शिवम पैलेस 

मित्तल एवेन्यू

डिसक्लेमर

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