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ओंकारेश्वर मंदिर, खंडवा (Onkaareshvar Mandir, Khandava)

दर्शन समय

5 am - 9:30 pm

सनातन संस्कृति में भगवान शिव के कई रूप बताए गए हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव अपने अलग-अलग रूप में भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी मनोकामना को पूरा करते हैं। वैसे तो देश दुनिया में भगवान भूतभावन के कई मंदिर हैं लेकिन इन सभी में 12 ज्योतिलिंग का विशेष महत्व माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ज्यातिर्लिंग भगवान शिव का ज्योति स्वरूप है जो शिव में से ही प्रकट हुआ है।

देश के विभिन्न राज्यों में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगो में से 1 ज्योतिर्लिंग ऐसा भी है, जहां मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ तीनों लोक का भ्रमण करके प्रतिदिन रात में सोने के लिए यहां आते हैं। महादेव के इस चमत्कारी और रहस्यमयी ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं भगवान शिव के इस रहस्यमयी ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से………..


ओम् के आकार वाली पहाड़ी पर विराजते हैं ओंकारेश्वर


दरअसल ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के इस पावन तीर्थ पर जल चढ़ाए बिना व्यक्ति की तीर्थ यात्राएं अधूरी रहती हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर आने वाला ये ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे ॐ के आकार वाली पहाड़ी मांधाता नर्मदा नदी के मध्‍य द्वीप पर स्थित है। इस मांधाता द्वीप का आकार ओम अक्षर की तरह है, इसलिए इसका नाम ओंकारेश्वर है। 

आप जानकर हैरान होंगे कि ओंकारेश्वर में स्थापित लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा लिंग नहीं बल्कि प्राकृतिक शिवलिंग है। यह शिवलिंग हमेशा चारों ओर से जल से भरा रहता है। 


क्या है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व


मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से लगभग 78 किमी की दूरी पर खंडवा जिले में नर्मदा नदी के किनारे स्थित है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह एकमात्र मंदिर है जो नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है। और यहां भगवान शिव नदी के दोनो घाटों पर एक साथ विराजते हैं। महादेव को यहां पर ममलेश्वर व अमलेश्वर के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के आस-पास कुल 68 तीर्थ स्थित हैं और यहां भगवान शिव 33 करोड़ देवताओं के साथ विराजमान हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में शिवभक्तों की भारी भीड़ दर्शन और पूजन के लिए उमड़ती है। ये मंदिर नागर शैली में बनाया गया है, और इसकी वास्तुकला उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली का एक संयोजन है। 


ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन करने का समय 

ये मंदिर सुबह 5 बजे खुलता है और रात 9:30 बजे बंद होता है। मंदिर में इस दौरान विभिन्न अनुष्ठान भी होते हैं। भक्त सुबह, दोपहर और शाम की आरती में भगवान के जयकारों और आस्था से झूमते हुए मग्न रहते हैं।


ऐसी ही ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की मान्यता 

उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती की तरह ओंकारेश्वर मंदिर की शयन आरती विश्व प्रसिद्ध है। हालांकि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भगवान शिव की सुबह मध्य और शाम को तीन प्रहरों की आरती होती है। मान्यता है कि रात्रि के समय भगवान शिव यहां पर प्रतिदिन सोने के लिए लिए आते हैं। और इस मंदिर में महादेव माता पार्वती के साथ चौसर खेलते हैं। इसी वजह से रात्रि के समय यहां पर चौपड़ बिछाई जाती है और सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि जब सुबह इस मंदिर के पट खोले जाते हैैं तो यहां चौसर के पासे बिखरे मिलते हैं। 


मंदिर से जुड़ी धार्मिक कथा

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक कथा ये भी आती है, कि राजा मांधाता ने एक बार भगवान शिव की कठिन तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन देकर दो वर मांगने को कहा. जिसके बाद मांधाता ने पहले वर में उन्हें इसी स्थान पर विराजमान होने को कहा और उसके बाद कहा कि आपके नाम के साथ मेरा नाम भी जुड़ जाए। जिसके बाद से से भगवान शिव यहां पर विराजमान हैं और लोग इस क्षेत्र को मांधाता के नाम से जानते हैं। 


अद्वैतलोक संग्राहलय

भगवान शिव के पवित्र मंदिर के साथ यहां आचार्य शंकराचार्य की एक विशाल प्रतिमा भी बनी हुई है जिसे स्टैच्यू ऑफ वननेस के नाम से जाना जाता है। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 सितंबर 2023 को इस 108 फीट ऊंची बहु धातु से निर्मित मूर्ति का अनावरण किया था। इसी के साथ उज्जैन के महाकाल के बाद अब ओंकारेश्वर में एकात्म धाम बनने की शुरुआत हुई है। 108 फीट ऊंची 'एकात्मकता की प्रतिमा' के साथ ही 'अद्वैत लोक'  नाम का एक संग्रहालय और आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान की स्थापना भी की जा रही है। यह बहुधातु प्रतिमा में आदि शंकराचार्य बाल स्वरूप में दिखाई देंगे। 


ओंकारेश्वर के पास के दर्शनीय स्थल

इस ज्योतिर्लिंग के पास ही अंधकेश्वर, झुमेश्वर, नवग्रहेश्वर नाम से भी बहुत से शिवलिंग स्थित हैं, जिनकी काफी महत्वता है। यहां प्रमुख दार्शनिक स्थलों में अविमुक्तेश्वर, महात्मा दरियाई नाथ की गद्दी, श्री बटुक भैरव, मंगलेश्वर, नागचंद्रेश्वर और दत्तात्रेय व काले-गोरे भैरव भी हैं।


केदारेश्वर मंदिर

यह मंदिर नर्मदा और कावेरी नदियों के बीच एक छोटे से द्वीप पर स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है।


सिद्धनाथ मंदिर

नर्मदा नदी के तट पर स्थित एक और प्राचीन मंदिर है, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और ध्यान और योग के लिए एक लोकप्रिय स्थल है।


ममलेश्वर मंदिर

यह मंदिर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के करीब स्थित है और यहां भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व माना जाता है।


सप्तमातृका मंदिर

यहां एक सात छोटे मंदिरों का समूह है जो उन सात देवियों को समर्पित है जिन्हें भगवान शिव की माता माना जाता है।


अहिल्येश्वर मंदिर

यह मंदिर मराठा साम्राज्य की एक सम्मानित शासक रानी अहिल्याबाई होल्कर को समर्पित है, जो हिंदू मंदिरों और वास्तुकला के समर्थन के लिए जानी जाती थीं।


गौरी सोमनाथ मंदिर

ओंकारेश्वर में एक और महत्वपूर्ण मंदिर, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और माना जाता है कि इसे 11वीं शताब्दी में बनाया गया था।


ओंकारेश्वर परिक्रमा

ओंकारेश्वर द्वीप के चारों ओर एक लोकप्रिय तीर्थ मार्ग है जो आगंतुकों को क्षेत्र के सभी महत्वपूर्ण मंदिरों तक ले जाता है।


नर्मदा घाट

नर्मदा नदी के तट पर एक सुंदर स्थान जहां आगंतुक शांतिपूर्ण सूर्यास्त का आनंद ले सकते हैं या नाव की सवारी कर सकते हैं।


पेशावर घाट

नर्मदा नदी के तट पर एक अन्य लोकप्रिय स्थान जहां स्थानीय लोग और पर्यटक पिकनिक मनाने या पानी में डुबकी लगाने जाते हैं।


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना विंध्य पर्वत के भगवान शिव की उपासना के बाद हुई थी। विंध्याचल ने शिव की पार्थिव मूर्ति बनाकर छह महीने तक तपस्या की। इस पर भगवान शिव ने विंध्य को अपने दिव्य दर्शन दिए और कार्य की सिद्धि के लिए अभिष्ट बुद्धि का वरदान दिया। इस दौरान सभी देवगण और ऋषि मुनियों ने शिव जी की स्तुति करते हुए वहीं निवास करने का आग्रह किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर ऋषियों और देवों की बात स्वीकार कर ली। ओंकार लिंग वहां दो स्वरूपों में विभक्त हो गया। एक ओंकार नाम से जाना जाता है, और पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, वह परमेश्वर लिंग के नाम से विख्यात हुई। परमेश्वर लिंग को ही अमलेश्वर भी कहा जाता है।


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग से - ओंकारेश्वर से निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में देवी अहिल्याभाई होल्कर हवाई अड्डा है। जो इस मंदिर से 83 किलोमीटर की दूरी पर है। यह हवाई अड्डा बैंगलोर, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, रायपुर, श्रीनगर, नागपुर, वडोदरा, लखनऊ, पटना, पुणे, अहमदाबाद और अन्य नेशनल एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। आप यहाँ से आसानी से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं, या ओंकारेश्वर पहुँचने के लिए निकटतम बस स्टेशन से बस भी ले सकते हैं।


ट्रेन मार्ग - ओंकारेश्वर रोड (मोरटक्का) ओंकारेश्वर से 12 किमी की दूरी पर निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह स्टेशन खंडवा-अजमेर मीटर गेज में स्थित है और एक ब्रॉड गेज वाला रेलवे स्टेशन है। ट्रेन से ओंकारेश्वर पहुंचने के लिए खंडवा रेलवे स्टेशन एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि यह ब्रॉड गेज स्टेशन है और देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है। खंडवा और ओंकारेश्वर की दूरी लगभग 77 किलोमीटर है।


सड़क मार्ग- ओंकारेश्वर पड़ोसी राज्यों और कस्बों से सरकारी और निजी स्वामित्व वाली बस सेवाओं से जुड़ा हुआ है। ये बस सेवाएं लगातार और सस्ती हैं। उज्जैन, खंडवा, खरगोन और इंदौर की ओर जाने वाले सबसे लोकप्रिय गंतव्यों में नियमित बस सेवा है।


बजट फ्रेंडली होटल्स के साथ 5 स्टार तक की सुविधा


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास आवास के कई विकल्प हैं, जिनमें गेस्ट हाउस, धर्मशाला और होटल शामिल हैं। सभी होटल अच्छी तरह से सुसज्जित हैं और आधुनिक सुविधाओं वाली हैं। ओंकारेश्वर में ठहरने के लिए कुछ प्रमुख होटल हैं:


श्री राधे कृष्णा रिज़ॉर्ट

मां कंचन गेस्ट हाउस

होटल गीता श्री एंड रेस्टोरेंट

होटल ओम शिवा

होटल देवांश पैलेस

प्रसादम रेस्तरां

होटल आशीर्वाद

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

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