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अखाड़ों के नगर प्रवेश की प्रक्रिया क्या है

अखाड़ों के नगर प्रवेश की प्रक्रिया क्या है

MahaKumbh 2025: ढोल नगाड़ों के साथ महाकुंभ में नगर प्रवेश करते हैं अखाड़े, जानें इस प्रक्रिया का महत्व


महाकुंभ को हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान कहा गया है। अखाड़े इस धार्मिक अनुष्ठान की रौनक है, जो इसकी शोभा बढ़ाते हैं। इनका नगर प्रवेश हमेशा से एक चर्चा का विषय होता है।  ढोल-नगाड़ा, गाजे-बाजे, अपने अखाड़े के झंडे और ध्वज के साथ  साधु-संत बड़े जुलूस निकालते हुए महाकुंभ में प्रवेश करते हैं। यह अखाड़ों की आध्यात्मिक शक्ति और संस्कृति का प्रदर्शन होता है। 

इस दौरान साधु-संत पारंपरिक वेशभूषा में होते हैं और अलग अलग तरहों के  वाद्य यंत्रों के साथ भजन-कीर्तन करते हैं। सालों से चली आ रही है, इस परंपरा का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है, जो इसे सदियों से एक प्रमुख आकर्षण बनाता है। चलिए आज आपको इस प्रक्रिया के बारे में और विस्तार से बताते हैं।

प्रथा का इतिहास 


अखाड़ों के नगर प्रवेश की प्रथा प्राचीन मानी जाती है। माना जाता है कि प्रथा वैदिक काल से चली आ रही है। महाकुंभ से पहले भी अखाड़े धर्म का प्रचार करने के लिए अपने शिष्यों के साथ ग्राम-ग्राम घूमते थे। इसी परंपरा का आगे चलकर विकास हुआ और बाद में उसने अखाड़े का स्वरूप ले लिया।

नगर प्रवेश का उद्देश्य 


साधुओं के नगर प्रवेश की परंपरा का मुख्य उद्देश्य  लोगों के साथ जुड़ाव बढ़ाना और धर्म के प्रति लोगों की आस्था को मजबूत करना था।  कुंभ मेला जैसे आयोजन अखाड़ों को विशेष रूप से नगर प्रवेश की परंपरा के जरिए एकता, अनुशासन और शक्ति का प्रदर्शन करने का मौका देता है।

कौन से साधु सबसे आगे चलते हैं?


हर अखाड़े की अपनी एक परंपरा होती है, जिसके मुताबिक तय किया जाता है कि कौन से साधु सबसे आगे चलेंगे। आमतौर पर  अखाड़े के प्रमुख, जिन्हें महंत या महामंडलेश्वर भी कहा जाता है, सबसे आगे चलते हैं। वे अखाड़े के ध्वज को धारण करते हुए या एक विशेष पालकी में बैठकर जुलूस का नेतृत्व करते हैं। लेकिन कई बार  अखाड़ों  के  नागा साधु भी  नगर प्रवेश के दौरान शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए सबसे आगे चलते हैं।

नगर प्रवेश के दौरान किए जाते हैं अनुष्ठान 


  1. नगर प्रवेश से पहले अखाड़े के ध्वज को पूजा जाता है और सजाया जाता है।
  2. शंखनाद- जुलूस के दौरान शंखनाद और मंत्रोच्चार  भी किया जाता है। इसे शुभ माना जाता है और इससे धार्मिक वातावरण बनाने में मदद मिलती है।
  3. भजन-कीर्तन -जुलूस के दौरान भजन-कीर्तन किया जाता है, जिससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है और लोग धार्मिक भावनाओं से भर जाते हैं।
  4. हवन- कई बार नगर प्रवेश के दौरान हवन भी होता है। और आरती भी की जाती है। इन कार्यों को बेहद शुभ माना जाता है।
  5. प्रसाद वितरण: जुलूस के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।  इसे ग्रहण करने से लोगों को सुख-शांति मिलती है।

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