कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक समागम है। इसमें लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। मेले का मुख्य आकर्षण साधु संतों के अखाड़े होते है। जिनकी दिव्यता को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यह हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करते है, जिनका काम ही सनातन संस्कृति को फैलाना और उसका प्रचार प्रसार करना है। देश में अभी प्रमुख 13 अखाड़े है , जिन्हें अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता मिली हुई है। अब कई लोगों के मन में सवाल उठता है कि अखाड़ों का काम क्या होता है, इनकी स्थापना कैसे हुई और इनके पीछे का रहस्य है। चलिए सभी बातों के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं।
अखाड़ों की स्थापना का श्रेय ऐतिहासिक रूप से आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। दरअसल 8वीं शताब्दी में देश में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ रहा था। इसके अलावा मुस्लिम आक्रमणकारी भी भारत में दाखिल हो रहे थे। इनसे धर्म की रक्षा के लिए महर्षि शंकराचार्य ने साधु संतों के संगठन बनाए, जिन्हें अखाड़ा कहा गया। शुरुआत में चार अखाड़ों की स्थापना की गई थी, जिनके साधु संत शस्त्र विद्या में भी निपुण थे।
1.धर्म- संस्कृति का संरक्षण
अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा और सनातन परंपराओं को जीवित रखना है। इसके अलावा वे योग, ध्यान, प्राचीन कलाओं और शिल्पों को संरक्षित करते हैं।
2. प्रचार-प्रसार
अखाड़े साधु-संतों को धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने और उन्हें समाज में प्रचारित करने का मंच प्रदान करते हैं।
3. सामाजिक कार्य
अखाड़े सामाजिक कार्य में भी आगे रहते हैं। जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है,तो वे राहत कार्य करते है। इसके साथ ही वे गरीबों के लिए भी कार्यक्रम चलाते हैं।
देश में 13 अखाड़े को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता प्राप्त है। यह अखाड़े भी तीन संप्रदाय में बंटे हुए है।
अखाड़ों से कई रहस्य और कहानियां जुड़ी हुई हैं। कुछ लोग मानते हैं कि अखाड़े सिर्फ धार्मिक संगठन नहीं हैं, बल्कि वे एक गुप्त संगठन है, जो प्राचीन ज्ञान को संरक्षित करते हैं। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अखाड़ों के पास अलौकिक शक्तियां होती हैं। ऐसा कह भी सकते हैं, क्योंकि अखाड़ों के अंदर साधु संतों को अनुशासन के साथ जीना होता है। कई अखाड़ों में साधुओं को अपने सांसारिक जीवन का भी त्याग करना पड़ता है।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में स्त्रियों द्वारा पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेषकर ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता हैI
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं रखती हैं। इस दिन महिलाएं वटवृक्ष की पूजा, सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ और वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख व्रत परंपराओं में से एक है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और समृद्ध जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत का वर्णन महाभारत, स्कंद पुराण, और व्रतराज जैसे शास्त्रों में विस्तार से मिलता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने आने वाली मासिक कार्तिगाई तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।