होली के ठीक बाद आने वाला भाई दूज भाई-बहन के प्रेम और विश्वास का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और सफलता की मनोकामना करती हैं। यह पर्व रक्षा बंधन की तरह ही भाई की रक्षा और कल्याण के लिए मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर गए थे, और यमुनाजी ने अपने भाई का तिलक लगाकर अतिथि स्वागत किया था। साथ ही उनकी लंबी आयु की मनोकामना की थी। उसी परंपरा को निभाते हुए आज भी यह पर्व मनाया जाता है।
इस बार होली भाई दूज की तिथि 15 मार्च दोपहर 2:30 बजे से शुरू होगी और 16 मार्च शाम 5:00 बजे तक रहेगी। तिलक करने की शुभ तिथि 16 मार्च से शुरू होगी जो दोपहर 3:00 बजे तक रहेगी। इस समय तिलक करने से विशेष फल मिलेगा।
देव्याः कवचम् का अर्थात देवी कवच यानी रक्षा करने वाला ढाल होता है ये व्यक्ति के शरीर के चारों ओर एक प्रकार का आवरण बना देता है, जिससे नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है।
पवित्र ग्रंथ दुर्गा सप्तशती में देवी अर्गला का पाठ देवी कवचम् के बाद और कीलकम् से पहले किया जाता है। अर्गला को शक्ति के रूप में व्यक्त किया जाता है और यह चण्डी पाठ का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
कीलकम् का पाठ देवी कवचम् और अर्गला स्तोत्रम् के बाद किया जाता है और इसके बाद वेदोक्तम रात्रि सूक्तम् का पाठ किया जाता है। कीलकम् एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जो चण्डी पाठ से पहले सुनाया जाता है।
वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् यानी वेद में वर्णन आने वाले इस रात्रि सूक्त का पाठ कवच, अर्गला और कीलक के बाद किया जाता है। इसके बाद तन्त्रोक्त रात्रि सूक्त और देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है।