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होली भाई दूज की पूजा विधि

होली भाई दूज की पूजा विधि

Holi Bhai Dooj Tilak Vidhi: होली भाई दूज पर करें कैसे करें अपने भाई का तिलक, जानें नियम और पूजा विधि


होली के ठीक बाद आने वाला भाई दूज भाई-बहन के प्रेम और विश्वास का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और सफलता की मनोकामना करती हैं। यह पर्व रक्षा बंधन की तरह ही भाई की रक्षा और कल्याण के लिए मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर गए थे, और यमुनाजी ने अपने भाई का तिलक लगाकर अतिथि स्वागत किया था। साथ ही उनकी लंबी आयु की मनोकामना की थी। उसी परंपरा को निभाते हुए आज भी यह पर्व मनाया जाता है।



होली भाई दूज 2025 की तारीख और शुभ मुहूर्त


इस बार होली भाई दूज की तिथि 15 मार्च दोपहर 2:30 बजे से शुरू होगी और 16 मार्च शाम 5:00 बजे तक रहेगी। तिलक करने की शुभ तिथि 16 मार्च से शुरू होगी जो दोपहर 3:00 बजे तक रहेगी। इस समय तिलक करने से विशेष फल मिलेगा।



भाई को तिलक करने की विधि


  • सबसे पहले घर की साफ-सफाई करें और खुद स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें।
  • पूजा थाली में रोली, चावल, फूल, मिठाई, दूर्वा घास और दीपक रखकर सजा लें।
  • भाई को पूर्व दिशा की ओर बैठाएं और माथे पर सबसे पहले रोली से तिलक लगाएं। फिर अक्षत (चावल) लगाकर दूर्वा घास उनके सिर पर रखें।
  • भाई की आरती उतारें और उन्हें कुछ मिठाई खिलाएं।
  • भाई को नारियल या कपड़ा और कुछ दक्षिणा दें।
  • भाई को तिलक करते समय यह मंत्र बोलें "यमद्वितीया भ्रातृद्वितीया च वैशाखे होली पूज्यते, तिलकं दत्तं मया तुभ्यं दीर्घायुष्यं सुखं भव।"



होली भाई दूज पर इन बातों का रखें ध्यान


  • इस दिन मांसाहारी भोजन ना करें और शराब के सेवन से भी दूर रहें।
  • भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम बनाए रखें और भूल कर भी झगड़ा न करें।
  • भाई को तिलक करते समय मन में शुभ भाव रखें और उसकी कामना की प्रार्थना करें।
  • इस विधि से भाई को तिलक करने से उसकी उम्र लंबी होती है, और घर में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।

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अथ श्री देव्याः कवचम् (Ath Shree Devya Kavacham)

देव्याः कवचम् का अर्थात देवी कवच यानी रक्षा करने वाला ढाल होता है ये व्यक्ति के शरीर के चारों ओर एक प्रकार का आवरण बना देता है, जिससे नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है।

अथार्गलास्तोत्रम् (Athargala Stotram)

पवित्र ग्रंथ दुर्गा सप्तशती में देवी अर्गला का पाठ देवी कवचम् के बाद और कीलकम् से पहले किया जाता है। अर्गला को शक्ति के रूप में व्यक्त किया जाता है और यह चण्डी पाठ का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

अथ कीलकम् (Ath Keelakam)

कीलकम् का पाठ देवी कवचम् और अर्गला स्तोत्रम् के बाद किया जाता है और इसके बाद वेदोक्तम रात्रि सूक्तम् का पाठ किया जाता है। कीलकम् एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जो चण्डी पाठ से पहले सुनाया जाता है।

अथ वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् (Ath Vedokta Ratri Suktam)

वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् यानी वेद में वर्णन आने वाले इस रात्रि सूक्त का पाठ कवच, अर्गला और कीलक के बाद किया जाता है। इसके बाद तन्त्रोक्त रात्रि सूक्त और देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है।

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