जगन्नाथ यानी कि जगत के स्वामी या संसार के प्रभु। यह उनके ब्रह्म रूप और संसार के पालनहार के रूप को दर्शाता है। भगवान जगन्नाथ की पूजा विशेष रूप से "रथ यात्रा" के दौरान होती है, जो एक प्रसिद्ध हिन्दू त्योहार है। यह यात्रा पुरी में आयोजित होती है और हर साल लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं।
रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को विशाल रथों में बैठाकर मंदिर से उनकी यात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा भक्तों के लिए अत्यधिक श्रद्धा का विषय होती है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में भगवान जगन्नाथ की पूजा विधि, कथा और पूजा के महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।
भगवान जगन्नाथ की कथा कई किंवदंतियों से जुड़ी हुई है। एक प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में दर्शन दिए और उन्हें नीलांचल पर्वत की एक गुफा में अपनी प्रतिमा होने की बात बताई। राजा ने भगवान के निर्देशानुसार मंदिर बनवाया और प्रतिमा को स्थापित किया।
भगवान जगन्नाथ की सबसे प्रसिद्ध घटना रथ यात्रा है। हर साल जुलाई महीने में, भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम को विशाल रथों में बिठाकर मंदिर से निकाला जाता है। यह यात्रा भक्तों के लिए एक बड़ा त्योहार है और इसमें लाखों लोग शामिल होते हैं। मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में श्री कृष्ण का हृदय निवास करता है। भगवान जगन्नाथ को कलियुग का देवता भी माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ की पूजा करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ की कृपा से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। भगवान जगन्नाथ की कृपा से भक्तों के जीवन में सौभाग्य और समृद्धि आती है। जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां हमेशा अधूरी रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि इन मूर्तियों में भगवान का निराकार रूप निहित है। भगवान जगन्नाथ की कृपा से कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, वृषभ संक्रांति एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना है, जब सूर्य देव एक राशि से निकलकर अगली राशि में प्रवेश करते हैं। वृषभ संक्रांति उस दिन को कहा जाता है जब सूर्य मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं।
प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि में वृद्धि होती है।
हनुमान जयंती का पर्व भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और दक्षिण भारत के अन्य क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। हनुमान जी के जन्म की कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन तेलुगु समाज में इसे वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मनाने की परंपरा है।
हिंदू धर्म में कालाष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह दिन भगवान काल भैरव की पूजा के रूप में मनाया जाता है।