धर्म और आस्था की नगरी चित्रकूट का खास महत्व है। चित्रकूट के मंदिर देशभर में प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान 11 साल चित्रकूट में बिताए थे। यहां रोजाना श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। चित्रकूट के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक हनुमान धारा है।
ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी लंका को आग लगाने के बाद अपनी पूंछ की आग बुझाने यहीं आए थे। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की विशाल मूर्ति के सिर पर दो जल के कुंड हैं। यह हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। इस धारा के दर्शन से तनाव से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
यह स्थान कर्वी तहसील से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुप्त गोदावरी चित्रकूट से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। यहां दो गुफाएं स्थित हैं। पहली गुफा चौड़ी और ऊंची है जबकि दूसरी गुफा लंबी और संकरी है।
एक कथा है कि श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमान जी ने भगवान श्री राम से कहा, ‘‘हे प्रभु लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गर्मी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं।"
तब प्रभु श्री राम ने कहा, ‘‘चिंता मत करो, आप चित्रकूट पर्वत पर जाओ। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।’’ हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत शृंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का 1008 बार पाठ किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ, ऊपर से जल की एक धारा प्रकट हुई, जिसके पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा निरंतर गिरती है, जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है।
चित्रकूट धाम से कर्वी रेलवे स्टेशन मात्र 8 किमी दूर है। श्रद्धालु हवाई या रेल मार्ग से प्रयागराज पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग से भी चित्रकूट जा सकते हैं। यह मंदिर पहाड़ की उंचाई पर स्थित है। यहां ऊपर तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसके अलावा रोप-वे से भी जा सकते हैं।
जो कुछ है सब तोय,
तेरा तुझको सौंप दूँ,
महाकाल सो नाम नहीं,
और उज्जैन सो कोई धाम,
मोरी मैया महान,
मोरी मईया महान,
मुझ पर भी दया की कर दो नज़र,
ऐ श्याम सुंदर. ऐ मुरलीधर ।