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कनक दर्गा मंदिर आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित देवी दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर कृष्णा नदी के किनारे, इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार कनक दुर्गा मंदिर में माता की प्रतिमा स्वयंभू है। देवी कनक दुर्गा का उल्लेख कालिका पुराण, दुर्गा सप्तशती और अन्य वैदिक साहित्य में मिलता है। कनक दुर्गा को देवी शाकंभरी का रुप भी माना जाता है। यहां शाकंभरी पर्व मनाया जाता है। देश में मां शाकंभरी का मुख्य मंदिर उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत श्रृंखला में हैं। शाकंभरी देवी विजयवाड़ा में कनक दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में माता कनक दुर्गा की 4 फीट ऊंची और भव्य और सुंदर आभूषणों से सजी मूर्ति स्थापित है। जिसमें मां के आठ सशस्त्र रुपों को दिखाया गया है और महिषासुर के वध को दिखाया गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब राक्षसों ने धरती पर तबाही मचाई थी। तब माता पार्वती ने राक्षसों का संहार करने के लिए विभिन्न रुप धारण किए। उन्होंने शुंभ और निशुंभ को मारने के लिए कौशिकी का रुप लिया, महिषासुर को मारने के लिए महिषासुरमर्दिनी और दुर्गमसुर के लिए दुर्गा। कनक दुर्गा ने अपने भक्त कीलनु को एक पर्वत क् रुप में स्थापित करने का आदेश दिया जिससे वे वहीं निवास कर सकें। महिषासुर का वध करते हुए मां इंद्रकीलाद्री पर्वत पर आठ भुजाओं वाले सिंह पर सवार हैं। शिव को भी पास की चट्टान पर ज्योतिर्लिंग के रुप में स्थापित किया गया है। ब्रह्मा ने यहां बेला के फूलों से शिव की पूजै की थी, इसलिए यहां स्थापित शिव का नाम मालेश्वर स्वामी पड़ा।
माना जाता है कि भगवान इंद्र भी यहां दर्शन करने आते है, इसलिए इस पर्वत का नाम इंद्रकीलाद्री पड़ा। सनातन धर्म में देवता के बायीं ओर किसी भी देवी की स्थापना की जाती है, लेकिन यहां माता को मालेश्वर देव के दीहिने ओर स्थापित किया जाता है। एक अन्य किंवदंती यह है कि अर्जुन ने प्रार्थना की और युद्ध जीतने के लिए इंद्रकीला पहाड़ी की चोटी पर भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त किया। इस जीत के बाद शहर के नाम विजयवाड़ा पड़ा। दशहरे के दौरान विशेष पूजा की जाती है जिसे नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। सरस्वती पूजा और तेप्पोत्सवम सबसे महत्वपूर्ण हैं। हर साल देवी दुर्गा के लिए दशहरा का त्योहार मनाया जाता है।
एक बार पृथ्वी पर लगातार सौ साल तक बारिश न हुई। तब अन्न-जल के आभाव में समस्त प्रजा मरने लगी। इस कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। सभी लोग भूख से व्याकुल होकर मरने लगे। उस समय समस्त मुनियों ने मिलकर हिमालय पर्वत के शिवालिक शिखर पर देवी भगवती की उपासना की। जिससे भुवनेश्वरी दी ने शताक्षी देवी नाम से अवतार लिया और उनकी कृपा से बारिश हुई। इस अवतार में महामाया ने जलवृष्टि से पृथ्वी को हरी शाक-सब्जी और फलों से परिपूर्ण कर दिया। जिस से पृथ्वी पर शाकम्भरी देवी के नाम से विख्यात हुई।
मुख्य गर्भगृह का निर्माण पिरामिड के रुप में है, जिसकी सतह नाजुक पत्थरी की नक्काशी से नहीं है। कनक दुर्गा मंदिर का सबसे प्रभावशाली पहलू इसका स्वर्ण मुकुट है, जिसे मीलों दूर से देखा जा सकता है। प्राचीन मंदिर परिसर के पास भगवान शिव का भी मंदिर है जिसे मल्लेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां महिला देवता को पुरुष देवता के दाहिनी ओर स्थापित किया जाता है, जबकि परंपरा के अनुसार महिला देवता को बाईं ओर बैठाया जाता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वास्तव में दर्शाता है कि ब्रह्मांड की शक्ति या स्त्री शक्ति यहां प्रमुख है। ये दोनों मंदिर स्पष्ट रुप से मंदिर में आने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
कनक दुर्गा मंदिर गुरुवार को छोड़कर सभी दिनों में सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। हालांकि , मूर्ति दर्शन और अन्य व्यक्तिगत पूजाओं के लिए अलग-अलग समय है। मुखमंडप दर्शन या देवता के लिए प्रति व्यक्ति 100 रुपये लगता है। जिसका समय सुबह 5 बजे से शाम 5:45 बजे तक है। और शाम 6:15 बजे से रात्रि 10 बजे तक है।
हवाई मार्ग - यहां के लिए नजदीकी विमानक्षेत्र विशाखापट्टनम और हैदराबाद है, जहां से आप एयरपोर्ट के द्वारा विजयवाड़ा तक आ सकते हैं। एयरपोर्ट से आप टैक्सी या बस सेवा ले सकते हैं।
रेल मार्ग - विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन भारतीय रेलवे के जालंधर-हॉवड़ा मेन लाइन पर है, और इसे भारत के महत्वपर्ण शहरों से अच्छी तरह से जोड़ा गया है। विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी, रिक्शा या बस का इस्तेमाल कर सकते है।
सड़क मार्ग - आंध्र प्रदेश में आने पर मंदिर परिसर तक पहुंचने के कई रास्ते हैं। सड़क मार्ग से - विजयवाड़ा में स्थित, मंदिर तक कार, सार्वजनिक बस या टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है।
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