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लेपाक्षी मंदिर, आंध्र प्रदेश ( Lepakshi Temple, Andhra Pradesh)

लेपाक्षी मंदिर, आंध्र प्रदेश ( Lepakshi Temple, Andhra Pradesh)

भारत को अगर मंदिरों का देश कहा जाए तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा, क्योंकि यहां इतने मंदिर है कि आप गिनते-गिनते थक जाएंगे। यहां कई ऐसे मंदिर है जो अपनी भव्यता अनोखी मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं। ऐसी ही एक मंदिर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में है जिसका नाम लेपाक्षी मंदिर है। ये मंदिर दक्षिण भारत में आस्था का मुख्य क्रेंद्र माना जाता है। यहां हर रोज हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर को 'वीरभद्र मंदिर" भी कहा जाता है। भारत के प्रसिद्ध और रहस्यमयी मंदिर में से एक लेपाक्षी मंदिर अपनी वास्तुकला और हेंगिग पिलर के लिए भी प्रसद्धि है जिसे देखकर आप एक पल के लिए आश्चर्यचकित हो जाएंगे। इसी वजह से लेपाक्षी मंदिर को हेंगिग टेंपल के नाम से भी जाना जाता है। एक और चीज इस मंदिर को बहुत खास बनाती है वो है मां सीता के पदचिन्ह। जैसे ही आप मंदिर के अंदर कदम रखते हैं, आपको चित्रमय प्रतिनिधित्व के द्वारा विजयनगर साम्राज्य की जलक देखने को मिलती है। लेपाक्षी मंदिर में वह सब कुछ है जो इसे पुरातात्विक और कलात्मक वैभव का आकर्षण बनाता है। स्थापत्य महत्व के अलावा,  स्कंद पुराण के अनुसार मंदिर एक दिव्यक्षेत्र है, दूसरे शब्दों में भगवान शिव का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल। 


लेपाक्षी मंदिर का रहस्य


लेपाक्षी मंदिर का रहस्य बड़ा ही आश्चर्यजनक है, जिस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है और इसी रहस्यमयी घटना ने बड़े बड़े वैज्ञानिकों के पसीने छुड़ा दिए है। वास्तव में इस मंदिर में 70 स्तंभ है जिसमें में से एक स्तंभ छत से तो लगा है लेकिन जमीन में नहीं लगा है बल्कि बिना सहारे के हवा में लटका हुआ है।यही अजीब घटना लेपाक्षी मंदिर का रहस्य बनी हुई है, जो दुनियाभर से पर्यटकों को इस अविश्वसनीय घटना का गवाह बनने के लिए आकर्षित करती है। एक बार ब्रिटिश इंजीनियर द्वारा स्तंभ को अपनी मूल स्थित से हटाने का प्रयास किया गया था लेकिन उसमें वह असफल हो गया था। उसके बाद इस चीज की पुष्टि की गई थी कि इस पिलर पर भी अन्य पिलरों की तरह ही भार हैं।


लेपाक्षी मंदिर का इतिहास


बता दें कि लेपाक्षी नाम की उत्त्पत्ति से जुड़ी कोई सटीक जानकारी हमारे पास नहीं हैं। लेकिन लेपाक्षी मंदिर की उत्त्पत्ति से दो किंवदंती जुड़ी हुई है। पहली के अनुसार, लेपाक्षी ने पौराणिक रामायण में अपनी जड़े पाई, जब रावण ने सीता का अपहरण किया था। जब वह उन्हें दूर ले जा रहा था, पक्षी जटायु ने उसे अपने हाथ से बचाने की कोशिश की। रावण से हराकर वह फर्श पर गिर गया। जब वह अपनी अंतिम सांसे गिन रहे थे, भगवान राम ने उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद की यह कहकर कि 'ले पाक्षी' जो तेलगु में 'बर्ड' हैं। इसलिए लेपाक्षी नाम की उत्पत्ति हुई। 


एक अन्य कथा के अनुसार, लेपाक्षी मंदिर का निर्माण 1538 में विजयनगर साम्राज्य में विरुपन्ना और वीरन्ना नामक दो भाइयों ने किया था। विरुपन्ना के बेटा अंधा था, और ऐसा कहा जाता है कि उसने मंदिर में शिवलिंग के चारों ओर खेलते समय द्दष्टिहीनता प्राप्त की थी। शाही खजाने का उपयोग करने के लिए दूसरों द्वारा दोषी ठहराया गया; कुछ लोग मंदिर को पूरा करने के लिए कहते है, जबकि कुछ अपने बेटे को ठीक करने के लिए कहते हैं, राजा ने अपनी आंखे बंद करने के आदेश दिए। झूठे इल्जाम से परेशान होकर उसने सजा काट ली और अपनी आंखे मंदिर की दीवारों पर अभी भी आंखों के खून के निशान हैं। 


लेपाक्षी मंदिर की वास्तुकला


लेपाक्षी मंदिर विजयनगर वास्तुकला शैली का एक परिणाम है, जिसे तीन भागों में बांटा गया है। मुख मण्डपा या असेम्बली हॉल, आर्दा मण्डापा और अंत में गर्भगृह। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर यमुना और गंगा की मूर्तियां है। हॉल के बाहरी स्तंभ सैनिकों और घोड़ो की नक्काशी के रुप में सजे हैं। कमरे के उत्तर-पूर्वी हिस्से में नटराज और ब्रह्ना के चित्र है और साथ में एक ढोकलिया भी है। कोई भी इसके चारों ओर नृत्य अप्सराओं की नक्कासी देख सकता है। स्तंभों में शिव के 14 अवतार है जो भगवान शिव के 14 अवतारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंदिर के अंदर इसके पूर्वी पंखों पर भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती का कक्ष है। दूसरे कक्ष में भगवान विष्णु की छवि है। जबकि मंदिर के ऊपर की छत में बिल्डर भाइयों, विरुपन्ना और विरन्ना की पेंटिंग है।


नागपंचमी पर होती है विशेष पूजा


मंदिर में नंदी जी की एक पत्थर से बनी बड़ी मूर्ती है जो कि 27 फीट लंबी और करीब साढ़े 4 फीट ऊंची है। मंदिर में एक बड़ा नाग लिंग भी है, जो कि करीब 450 साल पुराना है। इसके ऊपर एक विशाल सात फीट वाले शेषनाग की मूर्ति है। शेषनाग और नंदी का एक सात स्थापित होना अपने आप में एक दुर्लभ संयोग है। सावन के महीने में नागपंचमी पर यहां विशेष पूजा होती है। यहां रामलिंगेश्वर नाम का अद्भुत शिवलिंग है। कहा जाता है कि भगवान राम ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी ।


लेपाक्षी मंदिर का समय


लेपाक्षी मंदिर पर्यटकों और भक्तों के लिए सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुलता है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित लेपाक्षी मंदिर के पट 6 बजे खुलने के बाद 7 बजे से 7:30 तक शिवलिंग का अभिषेक और पूजा की जाती है। इसके बाद भगवान वीरभ्रद की पूजा की जाती है। भक्त भगवान और माता को अभिषेक करते हैं और वस्त्र चढ़ाते हैं। बता दें कि इस मंदिर में प्रसाद के रुप में सुपारी दी जाती है।


लेपाक्षी मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - लेपाक्षी मंदिर के लिए निकटतम एयरबेस बैंगलोर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो कि लगभग 100 किमी की दूरी पर है। एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा होने के नाते ये देश के प्रमुख शहरों के साथ व्यापक रुप से और सक्रिय रुप से जुड़ा हुआ हैं। यहां से उतरके आप मंदिर पहुंचने के लिए बस, टैक्सी ले सकते हैं।


रेल मार्ग - लेपाक्षी का निकटतम रेलवे स्टेशन हिंदूपुर रेलवे स्टेशन है, जो लेपाक्षी से लगभग 12 किमी की दूरी पर है। हिंदूपुर रेलवे स्टेशन से पहुंचने के लिए यहां से टैक्सी किराए पर लेना बहुत आसान है।


सड़क मार्ग - लेपाक्षी मंदिर हिंदूपुर के माध्यम से आंध्र प्रदेश और भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कई निजी और साथ ही राज्य के स्वामित्व वाली बसें है जो हिंदुपुर को देश के कई प्रमुख शहरों से जोड़ती है। 

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