द्राक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर भारत के आंध प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में काकीनाडा रोड पर स्थित है। पीठासीन देवता, भीमेश्वर स्वामी की छवी विशाल है और इसकी ऊंचाई 14 फीट है। ये एक बड़े क्रिस्टल से बना है जिसे स्पतिकर लिंगम के नाम से जाना जाता है और इसकी ऊपरी हिस्सा सफेद रंग का है, जिसे अर्धनारीश्वरम तत्तवम का प्रतीक माना जाता है। द्रक्षरामम का शाब्दिक अनुवाद, दक्ष प्रजापति का निवास है, जो सती के पिता और भगवान शिव के ससुर थे। महिला देवता देवी माणक्यम्बा है, जो भगवान भीमेश्वर स्वामी की पत्नी हैं। मंदिर के अन्य देवता भगवान लक्ष्मी नारायण, भगवान शंकरनारायण, भगवान गणपति और नवग्रह की मूर्तियां हैं। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित पांच सबसे शक्तिशाली मंदिरों में से एक माना जाता है, जिन्हें पंचराम क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को एक शक्तिपीठ भी माना जाता है और यह वह स्थान है जहां जहां देवी सती का एक अंग पृथ्वी पर गिरा था। आज ये मंदिर सबसे लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक है और हजारों भक्त भगवान का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए मंदिर में आते हैं।
द्राक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर का इतिहास
द्राक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर का निर्माण कार्य 800 ईस्वी में बीच में शुरु हुआ था और बाद में 11वीं शताब्दी में पूरा हुआ। कई नवीकरण कार्य किये गए है और मंदिर को कई शाही राजवंशों द्वारा संरक्षण दिया गया था। मंदिर एक संरक्षित स्मारक है जिसका नवीनीकरण और रखरखाव का काम भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा किया जाता है। इसका प्रबंधन बंदोबस्ती विभाग के कार्यकारी अधिकारी द्वारा किया जाता है।
पौराणिक इतिहास
ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव की पत्नी के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया को उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित न करके उनका अपमान किया। सती ने अपने पिता के क्रोधित होकर खुद को अग्नि में होम कर दिया। जब शिव जी को ये बात चली तो वह क्रोधित हुए और सती से शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव करने लगे। इस दिव्य घटना से पूरी सृष्टि रुक गई और दवेताओं ने भगवान विष्णु से हस्तक्षेप करने की अपील की। तब विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। सती के शरीर के टुकड़े पृथ्वी पर जहां-जहां गिरे वहां पर शक्तिपीठ स्थपित हुए। द्रक्षरामम भीमेश्वर स्वामी का निर्माण उस जगह पर किया गया था जहां सती का बायां गाल गिरा था।
मंदिर का इतिहास
विशाल द्रक्षारामम मंदिर में तीन बड़े गोलाकार परिसर हैं, जिसमें सुबह की धूप में नहाया हुआ अनोखा शिव लिंग है। अपनी दीवारों पर लगभग 800 प्राचीन लिपियों से सुसज्जित यह मंदिर एक विशिष्ट आकर्षण रखता है। प्राथमिक देवता भीमेश्वर स्वामी के अलावा, मंदिर में ब्रह्मा, लक्ष्मीनारायण गणपति, नकुलेश्वर, अंजनेय, विरुपाक्ष, नटराज, कुमार स्वामी, महिसासुरमर्दिनी, सप्तमातृका, भैरव, विश्वेश्वर और अन्नपूर्णा को समर्पित विभिन्न मंदिर हैं। निकट ही दक्षिण की ओर काशी विश्वेश्वर मंदिर है, जिसके दरवाजे देवा गोगुलम्मा (पूर्व), नूकाम्बिका (पश्चिम), मूडम्बिके (उत्तर), और घाटम्बिके (दक्षिण) से सुशोभित हैं। पावित्र वातावरण प्राचीन शिलालेखों और देवताओं की विविध श्रृंखला से समद्ध है, जो द्रक्षरामम को एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है। भगवान भीमेश्वर स्वामी की ऊपरी संरचना को देखने के लिए सीढ़ियों की एक उड़ान गर्भगृह के ऊपरी स्तर तक जाती है। इस मंदिर का एक ओनोखा पहलू मूल मंदिर की समान प्रतिकृतियों के साथ मुख्य मंदिर के एक लघु मंदिर की उपस्थिति है।
द्राक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर की वास्तुकला
द्राक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर की वास्तुकला भारतीय शैली की है और इसकी संरचना में दो दीवारों के साथ दो मंडप हैं। मंदिर के अंदर के स्तंभों पर जटिल पैटर्न के साथ कुशलतापूर्वक और उत्कृष्टता से नक्काशी की गई हैं जो उन दिनों की वास्तुकला को दर्शाते है। कई आधिकारिक रजिस्ट्री इतिहास भी विभिन्न दक्षिण-भारतीय लिपियों में पत्थर की दीवारों पर उकेरे गए है। पुरातात्विक वास्तुकला के लोग भी इसकी अनूठी निर्माण शैली से बहुत कुछ सीख सकते हैं और यह कई लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है। पुजारियों के लिए अनुष्ठान करने के लिए आंतरिक गर्भगृह में एक आसन है और मंदिर के अंदर, उस समय के कारीगरों द्वारा आधुनिक युग की जरूरतों को देखते हुए, वेंटिलेशन और रोशनी की अच्छी व्यवस्था की गई हैं।
मंदिर के त्योहार
महाशिवरात्रि फरवरी-मार्च के महीने में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है और इस शुभ दिन पर उत्सव देखने के लिए देशभर से लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। भीष्म एकादशी पर श्री स्वामीवारी कल्याणम भी एक प्रमुख त्योहार है जिसे मंदिर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां कई अन्य अवसर भी मनाए जाते है, खासतौर पर शिव केंद्रित त्योहार। इन अवसरों पर पूरा परिसर धार्मिक उत्साह से गूंज उठता है और मंदिर के आसपास फैली सकारात्मक ऊर्जा से भक्तों को अत्यधिक लाभ होता है।
मंदिर का समय
द्राक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है और रात को 8 बजे बंद होता है। दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक मध्याय अवकाश होता है, इस दौरान दर्शन बंद रहते हैं। महीने में एक बार मास शिवरात्रि पर और साल में एक बार महाशिवरात्रि पर, मंदिर सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक पूरे दिन खुला रहता है।
मंदिर कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग - द्रक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा राजमुंदरी है, जो मंदिर से लगभग 50 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां से आप टैक्सी लेकर मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - द्रक्षरामम भीमेश्वर स्वामी मंदिर से निकटतम रेलवे स्टेशन राजमुंदरी है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - इस मंदिर की सड़के देश के अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई हैं, लेकिन सबसे पहले आपको राजमुंदरी बस स्टॉप पहुंचना होगा, जो मंदिर से लगभग कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।