भारत समेत दुनिया के अल-अलग कोने में भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर है। इन मंदिरों को लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं और आस्था जुड़ी हुई हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका अपना इतिहास है। हम आपको बता रहे हैं श्री राजा राजेश्वरी स्वामी स्वामी मंदिर के बार में, जो कि तेलंगाना के वेमुलावाड़ा शहर में स्थित हैं। दक्षिण भारत के अनेक शिव मंदिरों में से इस मंदिर का प्रमुख स्थान है। श्री राजा राजेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर के प्रमुख देवता भगवान राजा राजेश्वर स्वामी यहां नीला लोहित शिव लिंगम के रुप में विराजमान है। इस ऐतिहासिक मंदिर को दक्षिण का काशी भी कहा जाता है।
श्री राजा राजेश्वरी मंदिर का इतिहास
वेमुलावाड़ा भगवान शिव के अवतार राजराजेश्वर स्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण 11वीं और 12वीं शताब्दी के बीच कल्याणी चालुक्यों के राजादित्य नाम के एक गवर्नर ने करवाया था। पीठासीन देवता स्थानीय रुप से राजन्ना के रुप में लोकप्रिय हैं, जिनके साथ श्री राजा राजेश्वरी देवा और सिद्दी विनायक की मूर्तियां हैं। इसमें अनंत पद्मानाभ स्वामी, भीमेश्वर, स्वामी, कोदंड राम और काशी विश्वेश्वर सहित अन्य देवताओं को समर्पित कई मंदिर हैं। जिस गांव में ये मंदिर बना है, उसेलेमुलावाटिका कहा जाता है। राज राजेश्वर की प्रतिमा के दाहिनी ओर राज राजेश्वरी देवी की मूर्ति और बाईं ओर लक्ष्मी सिद्धि विनायक की मूर्ति विराजमान है।
राजा राजेश्वरी मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
श्री राजा राजेश्वरी स्वामी मंदिर को दक्षिण का काशी कहा जाता है और हरि हर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि, 750 से 973 ईस्वी के दौरान श्री राजा राजेश्वरी स्वामी मंदिर का निर्माण परीक्षित के पोते राजा नरेंद्र ने किया था, जो अर्जुन के पोते थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा नरेंद्र ने गलती से एक ऋषि के बेटे की हत्या कर दी था। इस वजह से उन्हें कोढ हो गया। भविष्योत्तर पुराण के मुताबिक, इसी ब्रह्माहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए राजा नरेंद्र ने धर्मगुंडम स्थित पुष्करणी तालाब में स्नान किया। उन्हें सपने में भगवान राज राजेश्वर और देवी राज राजेश्वरी ने दर्शन दिए। दोनों ने राजा नरेंद्र को एक मंदिर बनाने का आदेश दिया। इसके बाद परीक्षित ने पुष्करणी तालाब के पास ही शिव लिंगम की स्थापना की। बाद में परीक्षित के पोते राजा नरेंद्र ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। राज राजेश्वर मंदिर में भगवान शिव को नीला लोहिता शिव लिंगम के रुप में पूजा जाता है। लिंग पुराण में भगवान के नील लोहिता स्वरुप का वर्णन मिलता है।
नीलश्च लोहितश्चैव प्रधानपुरुषान्वयात् ।
स्कंदस्ते यतः शुक्ल तथा शुक्लमपैति त ।।
कोडे मुक्कू की अनूठी रस्म
इस मंदिर में श्रद्धालु कोडे मुक्कू की अनूठी रस्म निभाते है। स्थानीय लोगों का मानना है कि जब भक्त बैल को मंदिर में चारों ओर ले जाते है तो भगवान भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। फिर बैल को मंदिर के चारों ओर ले जाने के बाद, भक्त बैल को मंदिर के अधिकारियों को सौंप देते हैं।
मंदिर का समय
हर साल महाशिवरात्रि और रामनवमी के वक्त बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। सामान्य दिनों में दर्शन पूजा करने में आमतौर पर लगभग 1 घंटा लगता है और विशेष मौको पर 2 से 3 घंटे का समय लग जाता है। मंदिर सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। नहीं इस मंदिर के प्रांगण में फोटोग्राफी करना मना है।
मंदिर कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग - श्री राज राजेश्वर स्वामी मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद है जो कि मंदिर से 287 किमी की दूरी पर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध है।
रेल मार्ग - श्री राज राजेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन करीमनगर है। जो कि 47 किमी की दूरी पर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए बस सेवाएं उपलब्ध है।
सड़क मार्ग - तेलंगाना से सभी स्थानों से बस सेवाएं उपलब्ध है। 150 किमी दूर हैदराबाद और 34 किमी दूर करीमनगर से श्री राज राजेश्वरी मंदिर तल लगातार बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
डिसक्लेमर
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।