जय हो जय हो महाकाल राजा,
तेरी किरपा की छाई है छाया ।
जय हो जय हो महाकाल राजा,
तेरी किरपा की छाई है छाया ।
हर तरफ तू ही तू है समाया,
धन्य तेरी है तेरी ही माया ।
जय हो जय हो महाकाल राजा,
तेरी किरपा की छाई है छाया ।
तुमने देवो को अमृत दिया है,
आपने खुद ही विष को पिया है ॥
देवताओं का मान बडाया,
सागरमंथन के विष से बचाया ॥
जय हो जय हो महाकाल राजा,
तेरी किरपा की छाई है छाया ॥
वरदानी हो भोले कैलाशी,
डमरू वाले है काशी के वासी ॥
गले सर्पो का हार सजाया,
सर भभुति का टीका लगाया ॥
जय हो जय हो महाकाल राजा,
तेरी किरपा की छाई है छाया ॥
भोले जिसने भी तुमको पुकारा,
तुमने उनको दिया है सहारा ॥
सारे भगतो का मान बड़ाया,
तेरे चरणो में शिवाजी आया ॥
जय हो जय हो महाकाल राजा,
तेरी किरपा की छाई है छाया ॥
काशी के राजा भगवान विश्वनाथ और कोतवाल भगवान काल भैरव की जोड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शास्त्रों में भगवान काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
प्रथम वंदनीय गणेशजी को समर्पित मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना का विशेष महत्व है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसी लिए विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी को समर्पित गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि का बनी रहती है।