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विनायक मंदिर या श्री वरसिद्धि विनायक स्वामी मंदिर गणेश का एक हिंदू मंदिर है। ये भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के कनिपक्कम में स्थित है। ये मंदिर चित्तूर से 11 किमी और तिरूपति से 68 किमी दूरी पर है। इस मंदिर अपनी शुद्धता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी के दौरान पांड्य राजा ने करवाई थी। कानी का अर्थ है आर्द्रभूमि और पाकम का अर्थ है आर्द्रभूमि में पानी का प्रभाह। इस मंदिर के बगल में पवित्र बहुदा नदी बहती है जो विरासत से समृद्ध है। अविश्वसनीय बात ये कि कुएं के अंदर स्वयंभू विनायक मौजूद हैं। ये ऐतिहासिक मंदिर प्रथम पूज्य गणपती जी का है। इस मंदिर को पानी के देवता के नाम से भी जाना जाता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति धीरे-धीरे आकार में बढ़ती जा रही है।
कनिपकम विनायक मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि, 11 वीं शताब्दी की शुरुआत में चोल राजा कुलोथुंगा चोल द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। जबकि 1336 में विजयनगर वंश के सम्राटों द्वारा इस मंदिर के विकास कार्य को आगे बढ़ाया गया था। यह मंदिर भगवान गणेश के बाकी मंदिरों से बहुत अलग है। यह एक ऐसा मंदिर है जिसके बीचों बीच नदी बहती है और यहां भगवान गणेश की बहुत विशाल और अनूठी मूर्ति है जो अपने आप बढ़ती रहती है। कहते हैं कि यहां आने वाले भक्त की हर इच्छा पूरी होती है। यहां विघ्नहर्ता न सिर्फ भक्तों के पाप हर लेते हैं बल्कि भगवान के सामने शपथ खाकर गलतियां सुधारने की फरियाद लगाने वाले की हर गुहार भी सुन लेते हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद विनायक की मूर्ति का आकार हर दिन बढ़ता जा रहा है। ये बात आपको अटपटी लग रही होगी लेकिन ये सच है। इस बात का प्रमाण उनका पेट और घुटना है, जो बड़ा आकार लेता जा रहा है। विनायक की एक भक्त श्री लक्ष्माम्मा ने उन्हें एक कवच भेंट दिया था, लेकिन प्रतिमा का आकार बढ़ने की वजह से अब उसे पहनाना मुश्किल हो गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर में मिलने वाले पवित्र जल से कई बिमारियां भी ठीक हो जाती है।
इस मंदिर में सिर्फ मूर्ति ही नहीं, जिस नदीं के बीचों- बीच विनायक विराजमान हैं वो भी चमत्कारिक है। कहते है कि हर दिन के झगड़े को लेकर भी भक्त गणपति के दरबार में हाजिर हो जाते है। छोटी-छोटी गलतियां न करने के लिए भी भक्त शपथ लेते हैं। लेकिन भगवान के दरबार में पहुंचने से पहले भक्तों को नदी में डुबकी लगाना पड़ती है। कहते है कि संखा और लिखिता नाम के दो भाई थे। वो दोनों कनिपक्कम की यात्रा के लिए गए थे। लंबी यात्रा के बाद दोनों थक गये थे, चलते-चलते लिखिता को जोर से भूख लगी। रास्ते में उसे आम का एक पेड़ मिला तो वो आम तोड़ने के लिए मचलने लगा। उसके भाई संखा ने उसे ऐसा करने से बहुत मना किया लेकिन वो नहीं माना। इसके बाद उसके भाई संखा ने उसकी शिकायत वहीं की पंचायत से कर दी, जहां बतौर सजा उसके हांथ काट दिए गए। कहते हैं कि लिखिता ने बाद में कनिपक्कम के पास स्थित इसी नदी में अपने हाथ डाले थे, जिसके बाद उसके हाथ फिर से फिर से जुड़ गए। तभी से इस नदीं का नाम बहुदा रख दिया, जिसका मतलब होता है आम आदमी का हाथ।
इस मंदिर में सितंबर और अक्तूबर महीने में ब्रह्नोत्संव और गणेश चतुर्थी के त्यौहार एक साथ मनाए जाते हैं। इसी वजह से यहाँ पर जो उत्सव मनाया जाता है वो 20 दिन तक चलता है। ब्रह्मोत्सव के के दौरान यहां पर सभी तरफ और भक्तों के बीच में से रथ यात्रा निकाली जाती है। इस त्यौहार के दौरान दूसरे दिन से ही रथयात्रा सुबह में एक बार और शाम में एक बार निकाली जाती है।
मंदिर के खुलने का समय सुबह 5 बजे से दोपहर 2 बजे तक है फिर शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक। इस दौरान आप मंदिर में दर्शन के लिए कभी भी आ सकते हैं।
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति है, जो कि मंदिर से केवल 86 किमी. की दूरी पर है। यहां ये आप टैक्सी, ऑटो, या बस सेवा ले सकते हैं।
रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन तिरुपति रेलवे स्टेशन है। यहां से मंदिर की दूरी 70 किमी, है। स्टेशन से स्थानीय परिवहन उपलब्ध है।
सड़क मार्ग - तिरुपति केंद्रीय बस स्टेशन से 72 किमी दूर है और वहां से सभी स्थानीय परिवहन उपलब्ध हैं।
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