भस्म तेरे तन की,
बन जाऊं भोलेनाथ,
भक्ति में तेरी,
रम जाऊं भोलेनाथ,
शाम सुबह गुण तेरा,
गाऊं भोलेनाथ,
भक्ति में तेरी,
रम जाऊं भोलेनाथ ॥
जब जब तू भंगिया को,
हाथ से लगाए,
प्याले के रूप में तू,
मुझको ही पाए,
जैसा तू ढाले,
ढल जाऊं भोलेनाथ,
भक्ति में तेरी,
रम जाऊं भोलेनाथ ॥
खोया रहूं भोले,
सेवा में तेरी,
अंतिम यही है,
अभिलाषा शिव मेरी,
धूल तेरे पग की,
बन जाऊं भोलेनाथ,
भक्ति में तेरी,
रम जाऊं भोलेनाथ ॥
कर दूँ ये जीवन,
मैं तुझको समर्पण,
तेरा दिया कर दूँ,
तुझको ही अर्पण,
नाम तेरा हर पल,
मैं गाऊं भोलेनाथ,
भक्ति में तेरी,
रम जाऊं भोलेनाथ ॥
भस्म तेरे तन की,
बन जाऊं भोलेनाथ,
भक्ति में तेरी,
रम जाऊं भोलेनाथ,
शाम सुबह गुण तेरा,
गाऊं भोलेनाथ,
भक्ति में तेरी,
रम जाऊं भोलेनाथ ॥
अथर्ववेद की रचना और उसके स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना चारों वेदों में सबसे आखिर में हुई थी।
न्याय शास्त्र की रचना महर्षि गौतम द्वारा की गई थी.
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सांख्य शास्त्र को आमतौर पर सांख्य दर्शन के नाम से जाना जाता है। ये प्राचीन काल में बहुत अधिक लोकप्रिय रहा है।