गजमुख धारी जिसने तेरा,
सच्चे मन से जाप किया,
ऐसे पुजारी का स्वयं तुमने,
ऐसे पुजारी का स्वयं तुमने,
सिध्द मनोरथ आप किया,
गजमुख धारी जिसनें तेरा,
सच्चे मन से जाप किया ॥
तुझ चरणों की ओर लगन से,
जो साधक बढ़ जाता है,
सौ क़दम तु चलके दाता,
उसको गले लगाता है,
अंतरमन के भाव समझ के, २
काज सदा चुपचाप किया,
गजमुख धारी जिसनें तेरा,
सच्चे मन से जाप किया ॥
द्वार तुम्हारे द्रढ़ विश्वासी,
जब भी झुक कर रोता है,
उसके घर मे मंगल महके,
कभी अनिष्ट ना होता है,
उसके जीवन से प्रभु तुमने, २
दुर है दुख संताप किया,
गजमुख धारी जिसनें तेरा,
सच्चे मन से जाप किया ॥
आदि अनादि जड़ चेतन ये,
सब तेरे अधिकार मे है,
तुने बनाया तुने रचाया,
जो कुछ भी संसार मे है,
तेरी इच्छा से ही हमने, २
पुण्य किया या पाप किया,
गजमुख धारी जिसनें तेरा,
सच्चे मन से जाप किया ॥
गजमुख धारी जिसने तेरा,
सच्चे मन से जाप किया,
ऐसे पुजारी का स्वयं तुमने,
ऐसे पुजारी का स्वयं तुमने,
सिध्द मनोरथ आप किया,
गजमुख धारी जिसनें तेरा,
सच्चे मन से जाप किया ॥
पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का काफ़ी महत्व होता है।
साल में 24 एकादशी का व्रत रखा जाता है। ये सभी भगवान विष्णु को समर्पित होते है। एकादशी व्रत हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रखा जाता है, जो प्रत्येक माह में दो बार आती है।
सनातन हिंदू धर्म में एकादशी काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह दिन पूरी तरह से श्री हरि की पूजा को समर्पित है। इस शुभ दिन पर भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके लिए उपवास करते हैं।
पौष माह की कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी का व्रत विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करने और व्रत रखने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।