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हम आये है तेरे द्वार, गिरजा के ललना (Hum Aaye Hai Tere Dwar Girija Ke Lalna)

हम आये है तेरे द्वार, गिरजा के ललना (Hum Aaye Hai Tere Dwar Girija Ke Lalna)

हम आये है तेरे द्वार,

गिरजा के ललना,

हो देवो के सरदार,

गिरजा के ललना,

करने दीदार दीदार दीदार,

दीदार गिरजा के ललना,

अरे दे ताली दे ताली नाचे रे,

सब भक्त तेरे अंगना,

हम आये हैं तेरे द्वार,

गिरजा के ललना ॥


लंबोदर गजबदन गजानन,

लाये खुशहाली,

महक उठे वन उपवन खेतन,

आई हरियाली,

अरे झूम झूम के भगता तेरी,

करते वंदना,

अरे दे ताली दे ताली नाचे रे,

सब भक्त तेरे अंगना,

हम आये हैं तेरे द्वार,

गिरजा के ललना ॥


तीजा रही उपासी गौरा,

सह के कठिन कलेश,

लगत चौथ चंदा के नाईं,

पूजे गौर गणेश,

अरे लालन बनके महा शक्ति के,

झूले झूलना,

अरे दे ताली दे ताली नाचे रे,

सब भक्त तेरे अंगना,

हम आये हैं तेरे द्वार,

गिरजा के ललना ॥


घर घर मे तुम आये गणपति,

हो रही जय जयकार,

ये ‘बेनाम’ खड़ा कर जोरे,

ले फूलन के हार,

अपने इस ‘संदीप’ को गणपति,

दाता न भूलना,

अरे दे ताली दे ताली नाचे रे,

सब भक्त तेरे अंगना,

हम आये हैं तेरे द्वार,

गिरजा के ललना ॥


हम आये है तेरे द्वार,

गिरजा के ललना,

हो देवो के सरदार,

गिरजा के ललना,

करने दीदार दीदार दीदार,

दीदार गिरजा के ललना,

अरे दे ताली दे ताली नाचे रे,

सब भक्त तेरे अंगना,

हम आये हैं तेरे द्वार,

गिरजा के ललना ॥

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श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्

नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सिंह अवतार की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

होली से पहले आने वाला होलाष्टक क्या है

एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं।

होलाष्टक से जुड़े पौराणिक कथा

होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।

होलाष्टक के यम-नियम क्या हैं

हिंदू पंचांग के अनुसार होलाष्टक होली से पहले आठ दिनों की एक विशेष अवधि है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक चलती है। इस अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।

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