राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी॥
यज्ञ रक्षा में जा कर के मुनिवर के संग,
ले धनुष दानवो को लगे काटने।
एक ही बाण में ताड़का राक्षसी,
गिर जमी पर पड़ी की पड़ी रह गयी॥
राम को मन के मंदिर में अस्थान दे
कर लगी सोचने मन में यह जानकी।
तोड़ पाएंगे कैसे यह धनुष कुंवर,
मन में चिंता बड़ी की बड़ी रह गयी॥
विश्व के सारे राजा जनकपुर में जब,
शिव धनुष तोड़ पाने में असफल हुए।
तब श्री राम ने तोडा को दंड को,
सब की आँखे बड़ी की बड़ी रह गयी॥
तीन दिन तक तपस्या की रघुवीर ने,
सिंधु जाने का रास्ता न उनको दिया।
ले धनुष राम जी ने की जब गर्जना,
उसकी लहरे रुकी की रह गयी॥
असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयदशमी देशभर में मनाया जाता है। हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का यह त्योहार देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी अनूठी शैली से मनाया जाता है।
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दशहरे का महत्व, उससे जुड़ी मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के विषय में विस्तृत जानकारी आपको भक्त वत्सल के विभिन्न लेखों के माध्यम से हमने दी हैं।
नवरात्रि का समापन नवमी तिथि को होता है और अगले दिन विजयादशमी या दशहरा मनाया जाता है। यह असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक त्योहार है।