शिव सन्यासी से मरघट वासी से,
मैया करूँगी मैं तो ब्याह,
मैं शिव को ध्याऊँगी,
उन्ही को पाऊँगी,
शिव संग करूँगी मैं तो ब्याह,
हाँ शिव संग मैं तो करूँगी ब्याह,
शिव संन्यासी से मरघट वासी से,
मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥
मैना ने समझाया,
वो है समशान का वासी,
तू महलों की रानी,
तू कैसे बनेगी दासी
गौरा तू सोचले सोचले,
कैसे करेगी ब्याह,
शिव संन्यासी से मरघट वासी से,
मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥
बाबा हिमाचल देखो,
सब ऋषियो को ले आए,
सबने मिलकर देखो,
फिर गौरा को समझाए,
औघड़ है योगी है योगी है,
कैसे होगा निबाह,
शिव संन्यासी से मरघट वासी से,
मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥
ना मानी थी गौरा,
वो शिव के ध्यान में लागी,
शिव की याद में सोई,
वो शिव की याद में जागी,
जनम जनम का साथ है साथ है,
जन्मो का रिश्ता,
शिव संन्यासी से मरघट वासी से,
मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥
शिव सन्यासी से मरघट वासी से,
मैया करूँगी मैं तो ब्याह,
मैं शिव को ध्याऊँगी,
उन्ही को पाऊँगी,
शिव संग करूँगी मैं तो ब्याह,
हाँ शिव संग मैं तो करूँगी ब्याह,
शिव संन्यासी से मरघट वासी से,
मैया करूँगी मैं तो ब्याह ॥
नवरात्रि में मां का आशीर्वाद पाने के लिए 9 दिनों तक व्रत रखते हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं। मां दुर्गा की पूजा में नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है, वरना पूजा निरर्थक हो जाती है। इन्हीं नियमों में खानपान के नियम भी शामिल हैं।
आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति, सिद्धि प्राप्ति, मोक्ष के लिए चैत्र नवरात्रि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है जो मां दुर्गा का स्वरूप हैं। मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसलिए उन्हें तपस्या की देवी माना जाता है।
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के दूसरे रूप की पूजा करने से भक्तों को धैर्य, शांति और समृद्धि मिलती है।