ईश्वर से जुड़ने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अपने खास तरीके हैं। हिंदू धर्म में, प्रार्थना करते समय आंखें बंद कर लेना और हाथ जोड़कर खड़े होते हैं। हाथ जोड़ना सिर्फ एक नमस्कार नहीं है, बल्कि यह विनम्रता, सम्मान और आभार का प्रतीक है। लेकिन क्या सिर्फ इतना ही कारण है कि हम भगवान के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं और हम अपनी श्रद्धा और भक्तिभाव प्रकट करते हैं।
आपको बता दें, हाथ जोड़ने से हमारी दोनों ऊर्जाएं एक हो जाती हैं। यह हमें ईश्वर से जुड़ने और ब्रह्मांड की एकता का अनुभव कराने में मदद करता है। हाथ जोड़ते समय हमारा ध्यान एक बिंदु पर केंद्रित होता है, जिससे मन शांत होता है और हम प्रार्थना में अधिक मग्न हो पाते हैं। अब ऐसे में शास्त्र में हाथ जोड़कर प्रार्थना करने का महत्व क्या है। इसके बारे में इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। इसे दो भागों में बांटा गया है। दायाँ हिस्सा जिसे इडा और बायां हिस्सा जिसे पिंडली कहा जाता है। ये दोनों ही शिव और शक्ति के प्रतीक हैं। जैसे शिव और शक्ति मिलकर अर्धनारीश्वर का रूप बनाते हैं, वैसे ही जब हम दोनों हाथों को जोड़कर हृदय के सामने रखते हैं, तो हमारा हृदय चक्र सक्रिय होता है। यह मुद्रा हमारे अंदर की दिव्य शक्ति को जागृत करती है।
इससे न सिर्फ हमारा मन शांत होता है, बल्कि हमारी सोचने और समझने की शक्ति भी बढ़ती है। साथ ही, हमारा रक्त संचार भी दुरुस्त रहता है। इसलिए, हाथ जोड़कर अभिवादन करना सिर्फ एक शिष्टाचार ही नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा भरने का एक शक्तिशाली तरीका भी है। इससे हम दूसरों के प्रति सम्मान और आदर की भावना विकसित करते हैं। यह मुद्रा हमें याद दिलाती है कि हम सभी एक हैं और हमारी शक्ति एक-दूसरे से जुड़ी हुई है।
नमस्कार शब्द संस्कृत के "नमस" शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना। यह सिर्फ एक अभिवादन नहीं है, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक अर्थ रखता है।
विज्ञान के अनुसार, हमारे हाथों की नसें सीधे हमारे मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं। जब हम दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं, तो हमारे शरीर में एक विशेष प्रकार की चेतना उत्पन्न होती है। यह चेतना न केवल हमारे शरीर को शांत करती है बल्कि हमारी याददाश्त को भी बढ़ाती है। किसी व्यक्ति को हाथ जोड़कर नमस्कार करने से वह व्यक्ति आपको अधिक समय तक याद रखता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नमस्कार करते समय हम एक सकारात्मक ऊर्जा का आदान-प्रदान करते हैं।
हमारे दोनों हाथों को आचार और विचार से जोड़ा जाता है। आचार का अर्थ है धर्म और विचार का अर्थ है दर्शन। जब हम हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं, तो हम अपने धर्म और दर्शन को एक साथ लाते हैं। इस तरह, नमस्कार करना हमारे जीवन में धर्म और दर्शन दोनों के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय ।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय ।।
जयति जयति जय ललिते माता! तव गुण महिमा है विख्याता ।
तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी! सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥
जय जय श्री महालक्ष्मी करूं माता तव ध्यान।
सिद्ध काज मम किजिए निज शिशु सेवक जान।।