करवा चौथ व्रत-कथा की कहानी (Karva Chauth Vrat-katha Ki Kahani)

करवा चौथ व्रत-कथा की कहानी


अतीत प्राचीन काल की बात है।  एक बार पाण्डु पुत्र अर्जुन तब करने के लिए नीलगिरि पर्वत पर चले गए थे।  इधर पांडवो पर अनेक मुसीबते पहले से ही थी। इसे द्रौपदी ने श्लोक विलल , हो कृष्ण की आराधना की।  कृष्ण उपस्थित हुए और पूछा कहो क्या कष्ट है तुम्हे प्रभु द्रौपदी ने हाथ जोड़कर कहा मुझे क्या कष्ट है आप तो स्वयं जानते है। आप तो अन्तर्यामी है।  मुझे कष्टों के बोझ ने विस्ल कर दिया है। क्या कोई ऐसा उपाए है जिससे इन कष्टों से छुटकारा मिल सके तुम्हारा प्रश्न अति उत्तम है द्रौपदी कृष्ण मुस्कराकर बोले। प्रभु  फिर मुझ दुःखी नारी का कष्ट दूर करने का उपाय बताइये द्रौपदी ने पूछा। ष्यही प्रश्न एक बार पार्वती जी ने शिवजी से कर दिया था। तब श्री शिवजी ने करवा चौथ व्रत का विधान बताया था। फिर प्रभु करवा चौथ की जानकारी मुझे भी दीजिए.... और उसकी कथा कहिए।


तब कृष्ण ने एक पल सोचने के बाद कहा था- दुःख-सुख जो सांसारिक माना जाता है, प्राणी उसमें सदा ही लिप्त रहता है। मैं तुम्हें अति उत्तम करवा चौथ व्रत की कथा सुनाता हूं, इसे ध्यान से सुनो प्राचीन काल में गुणी, विद्वान, धर्मपरायण एक ब्राह्मण रहता था। उसके चार पुत्र तथा एक गुणवती सुशील पुत्री थी। पुत्री ने विवाहित होकर चतुर्थी का व्रत किया। किन्तु चन्द्रोदय से पूर्व ही उसे क्षुधा ने बाध्य कर दिया। इससे उसके स्नेही दयालु भाइयों ने छल से पीपल की आड़ में कृत्रिम चन्द्रमा बनाकर दिखा दिया। लड़की ने अर्घ्य दे भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसके पति की हृदयगति बन्द हो गयी। इससे दुःखी हो, उसने अन्न-जल त्याग दिया। उसी रात्रि में इन्द्राणी भूविचरण करने आयी। ब्राह्मण पुत्री ने उससे अपने दुःख का कारण पूछा। इन्द्राणी वर्ष की तरह इस वर्ष भी करवा चौथ का व्रत आया।


 अन्य बहुओं के मायकों से उनके भाई, करवा लेकर आए। पर छोटी के मायके में यदि कोई होता तो करवा भी लाता। सास भी छोटी को ही खरी-खोटी सुना रही थी। वह दुःखी हो घर से निकल पड़ी और जंगल में जाकर रोने लगी। एक नाग बहुत देर से उसका रोना सुनता रहा। अन्त में वह अपने बिल से निकल आया तथा छोटी से पूछने लगा-बेटी क्या बात है। तुम रो क्यों रही हो? छोटी बोली आज करवा चौथ है मेरा कोई भाई नहीं है। यदि मेरा कोई भ्यूई होता तो आज जरूर करवा लेकर आता। नाग को छोटी पर दया आई। नाग ने कहा-बेटी तुम घर चलो मैं अभी करवा लेकर आता हूं। थोड़ी देर बाद नाग ससुराल पहुंचा। ससुराल वाले इतना सामान देखकर चकित हो गए। सास भी प्रसन्न हो गई। सास ने प्रसन्न मन से छोटी को नाग देवता के साथ भेज दिया। नाग देवता ने छोटी को अपना सारा महल दिखाया और कहा-जितने दिन चाहो आराम, से रहो। मन चाहा खाओ मन चाहा पहनो। पर एक बात याद रखना। सामने रखी नांद कभी मत खोलना। छोटी सारा समय महल में आराम से काटती पर नांद के बारे में उसकी उत्सुकता बढ़ती जाती। एक दिन जब घर में कोई न था उसने नांद उठाकर देखा तो हजारों छोटे-छोटे सांप के बच्चे इधर-उधर रेंगने लगे। उसने जल्दी ही नांद ढक दी। जल्दी में एक सांप की पूंछ नांद के नीचे आकर कट गई। 


शाम को नाग के आने पर छोटी ने अपनी गलती स्वीकार कर ली। नाग ने भी उसे क्षमा कर दिया। जब छोटी ने ससुराल जा की इच्छा की तो उसे धन-रत्न आदि देकर विदा किया। छोटी के ससुराल में जब उसकी बड़ी इज्जत होने लगी। जिस सांप की पूंछ कटी थी। उसे सभी बण्डा कहकर तंग करते। एक दिन उसने अपनी मां से पूछा कि मेरी पूंछ कैसे कटी है। मां ने कहा कि छोटी के नांद उठाने और जल्दी से रखने में ही तुम्हारी पूंछ कटी है तो वह बोला कि मैं छोटी से बदला लूंगा। मां के बहुत समझाने पर भी वह एक दिन चुपचाप छोटी के घर जा छुपा और मौका पाकर उसे काटने की सोचने लगा। वहां छोटी और उसकी सास में किसी बात पर बहस हो रही थी तो छोटी कसम खा-खाकर कह रही थी कि मैंने ऐसा नहीं किया। वह कह रही थी कि मुझे बण्डा भैया से प्यारा कोई नहीं है उन्हीं की कसम खाकर कहती हूं कि मैंने ऐसा नहीं किया। 


बण्डा ने जब सुना तो सोचने लगा-जो मुझसे इतना प्यार करती है मैं उसे ही काटने आया हूं। वह चुपचाप घर चला गया। मां ने पूछा-ले आये बहन से बदला, वह कहने लगा मां बहन से कैसा बदला तभी से बण्डा भाई व छोटी बहन हुए भाई प्रति वर्ष चौथ के दिन करवा लेकर जाता व बहन बड़े प्यार से करवा चौथ का व्रत करती। करवा चौथ व्रत-कथा की चौथी कहानी प्राचीन काल में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी किनारे एक गांव में रहती थी। कार्तिक मास के  कृष्णपक्ष की चतुर्थी (चौथ) के दिन उसका पति नदी में स्नान करने के लिये गया। स्नान करते समय एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह करवा करवा नाम लेकर जोर-जोर से अपनी पत्नी को पुकारने लगा। आवाज सुनकर उसकी पत्नी दौड़कर आई और उसने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर वह यमराज के यहां पहुंची और यमराज से बोली- भगवान ! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। अतः पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से उस मगर को नरक में ले जाओ। यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा ने कहा- यदि आप ऐसा नहीं करोगे, तो मैं आपको श्राप देकर नष्ट कर दूंगी।


यह सुनकर यमराज डर गये और उस पतिव्रता स्त्री करवा के साथ जाकर मगर को उन्होंने यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु प्रदान की।


उसी दिन से यह करवा चौथ मनाई जाती है, और सुहागन स्त्रियों के द्वारा व्रत रखा जाता है।


हे करवा माता ! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सब के पतियों की रक्षा करना।


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