पूजा-पाठ से लेकर विशेष अनुष्ठान एवं हवन इत्यादि सभी तरह की पूजा में आचमन आवश्यक है। आचमन का शाब्दिक अर्थ है ‘मंत्रोच्चारण के साथ जल को ग्रहण करते हुए शरीर, मन और हृदय को शुद्ध करना।’ शास्त्रों में आचमन की विभिन्न विधियों के बारे में बताया गया है। आचमन किए बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है। इतना ही नहीं आचमन करने से पूजा का दोगुना फल भी प्राप्त होता है। विधि व नियम से किया गया आचमन पूर्ण होता है और पूजा पूर्ण होती है। तो आइए इस आलेख में विस्तार से जानते हैं आचमन के महत्व और इसकी विधि।
स्मति ग्रंथ में आचमन के महत्व के बारे में बताया गया है। आचमन करके जलयुक्त दाहिने अंगूठे से मुंह को स्पर्श कराने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन करने के बाद मस्तक अभिषेक कराने से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है और आचमन करने के बाद दोनों आंखों को स्पर्श कराने से सूर्य, नासिका (नाक) के स्पर्श से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं। इसलिए पूजा के पहले आचमन करने का विशेष महत्व होता है।
आचमन के दौरान दिशा का भी महत्व होता है। इस दौरान आपका मुख उत्तर, ईशान या पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए। इसके अलावा किसी अन्य दिशा में किया गया आचमन निरर्थक होता है।
आचमन में इस मंत्र का करें जाप
होलाष्टक फागुन मास के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक मनाया जाता है। पुराणिक कथाओं के अनुसार ये 8 दिन किसी शुभ कार्य के लिए उचित नहीं माने जाते I
होलाष्टक की तिथि शुभ कार्य के लिए उचित नहीं मानी जाती है, इन तिथियों के अनुसार इस समय कुछ कार्य करने से सख्त मनाही होती है। क्योंकि इन्हीं दिनों में भक्त प्रह्लाद पर उनके पिता हिरण्यकश्यप ने बहुत अत्याचार किया था।
होलाष्टक की तिथि माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक होती है। यह समय पुराणिक कथाओं के अनुसार महत्वपूर्ण माना जाता है I
फाल्गुन मास का प्रारंभ होते ही हिंदू धर्म में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार आते हैं। फाल्गुन मास में मनाए जाने वाला रंगों का त्यौहार जिसे हम होली कहते हैं।