बद्रीनाथ में क्यों नही बजता शंख?

बद्रीनाथ में शंख क्यों नहीं बजाया जाता है, मां लक्ष्मी से जुड़ा हुआ है कारण 



भारत के पौराणिक, धार्मिक और प्राचीनतम तीर्थ स्थलों में बद्रीनाथ धाम मंदिर का स्थान बहुत ही खास है। इसे हिंदू धर्म के चार धामों में से सबसे बड़ा धाम माना गया है। इस चमत्कारी और दिव्य धाम में हर साल लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से दर्शन को आते हैं। हर साल यहां सैलानियों और श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है जो भगवान के दर्शन करने और मनोकामनाओं को लेकर यहां आते हैं। 


भक्त यहां भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा आराधना करते हैं और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। सभी यहां नारायण की पूजा विधि विधान से करते हैं लेकिन फिर भी इस तीर्थ स्थल में कभी भी शंख नहीं बजाया जाता है। यहां न बाहर से आने वाले भक्त शंख बजाते हैं, न ही यहां के नित्य पुजारी। तो आइए जानते हैं इसके पीछे आखिर क्या है कारण है।


शंखनाद ने होने की कथा 


हिंदू धर्म में की जाने वाली चार धाम यात्रा में से एक बद्रीनाथ धाम मंदिर की यात्रा के दौरान भक्त बद्रीनाथ धाम मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं। यह भारत के सबसे प्रसिद्ध विष्णु मंदिरों में से एक है। लेकिन देवभूमि उत्तराखंड राज्य में स्थित इस मंदिर में आरती के दौरान शंखनाद नहीं किया जाता है। 
इसका कारण यह है कि बद्रीनाथ धाम को लेकर मान्यता है कि, इस मंदिर के प्रांगण में जिसे तुलसी भवन कहा जाता है वहां एक बार लक्ष्मी जी ध्यान मुद्रा में थी। उसी दौरान भगवान विष्णु ने शंख चूर्ण नामक दैत्य का संहार किया था। परंपरा के अनुसार युद्ध विजय के बाद शंखनाद किया जाता है लेकिन लक्ष्मी जी ध्यान भंग न हो इसलिए भगवान ने दैत्य शंखचूर्ण का वध करने के बाद शंखनाद नहीं किया। तभी से यह परंपरा है कि यहां शंख नहीं बजाया जाता है।
 

बहुत पावन और प्राचीन है बद्रीनाथ धाम 


हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा करने का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इन चार धामों में उत्तराखंड राज्य में आने वाला बद्रीनाथ धाम भी शामिल है। भगवान विष्णु को समर्पित यह धाम हिन्दू आस्था का प्रमुख केंद्र है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके जीवन के सभी कष्ट भगवान विष्णु दूर करते हैं। मान्यता है कि एक समय पर इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने घोर तप किया था। इसलिए इसे साक्षात भगवान विष्णु का निवास कहा गया है।

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