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देवी के दस स्वरूपों को दस महाविद्याओं के नाम से जाना जाता है। इनमें त्रिपुर सुंदरी या षोडशी भी एक प्रमुख देवी हैं। मां के इस रूप को महा त्रिपुर सुंदरी, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, ललितागौरी, पद्माक्षी रेणुका और राजराजेश्वरी के नाम से भी पूजा गया है। दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी त्रिपुर सुंदरी को देवी त्रिगुणना का तांत्रिक स्वरूप भी माना गया है। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक श्रृंखला में दस महाविद्याओं में से एक मां त्रिपुर सुंदरी के बारे में जानेंगे…
त्रिपुर सुंदरी के चार हाथ हैं। मैया इन चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं। देवी भागवत के अनुसार, मैया इस रूप में वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर रहती हैं। मैया इस रूप में सौम्य और दया करुणा से भक्तों के दुख दूर करती हैं।
आराधना करने से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को अमूल्य निधियां प्रदान करती हैं। तंत्र शास्त्रों में मां के इस रूप को पंचवक्त्र अर्थात पांच मुखों वाली कहा गया है। क्योंकि इनका ध्यान चारों दिशाओं और मुख ऊपर की ओर है। मां सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है।
मैया की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथा है कि एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से तंत्र शास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक संताप, दीनता-हीनता तो दूर होने के विषय में पूछा। इसी वार्ता के दौरान माता ने पूछा कि जनम-मरण से छूट कर प्राणी मोक्ष की प्राप्ति कैसे करें या इसका कोई सरल उपाय है। तब पार्वती जी के कहने पर भगवान शिव ने त्रिपुर सुंदरी श्रीविद्या साधना-प्रणाली को उत्पन्न किया। भैरवयामल और शक्तिलहरी में त्रिपुर सुंदरी उपासना का विस्तृत वर्णन किया गया है।
- काली के दो रूप कृष्णवर्ण और रक्तवर्णा हैं।
- त्रिपुर सुंदरी काली का रक्तवर्णा रूप हैं।
- त्रिपुर सुंदरी धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की अधिष्ठात्री देवी हैं।
- मां मुख्य रूप से तीन रूपों में है।
- आठ वर्षीय बालिका बाला या त्रिपुर सुंदरी, षोडश वर्षीय षोडशी युवा स्वरूप में और ललिता त्रिपुर सुंदरी।
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