Logo

जानें कुंभ में आने वाले 13 अखाड़ों के प्रकार?

जानें कुंभ में आने वाले 13 अखाड़ों के प्रकार?

तेरह अखाड़ों और तीन संप्रदायों में बंटे होते हैं कुंभ कुंभ के साधु संत, जानें कैसे होता है बंटवारा 


कुंभ मेले की शुरुआत अगले साल 13 जनवरी से प्रयागराज में हो रही है। इसके लिए तैयारियां जोरों शोरों से चल रही है। यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा समागम है, जो पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचता है। इस सबसे बड़े समागम की शोभा साधु संतों के अखाड़े बढ़ाते है, जो यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। यह अखाड़े सनातन धर्म के संगठनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।  कुछ महीनों पहले से कुंभ की नगरी में इनका  आगमन शुरू हो जाता है। इनके बिना कुंभ अधूरा सा है। चलिए आर्टिकल के जरिए आपको बताते हैं कि अखाड़ों की शुरुआत कैसे हुई, कुंभ में  कितने अखाड़े आते है, इनके कितने प्रकार होते हैं।


आदि शंकराचार्य ने शुरू की अखाड़ा प्रथा


अखाड़ा शब्द का अर्थ कुश्ती का मैदान होता है। लेकिन इसका आध्यात्मिक अर्थ बहुत अलग है। माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने अखाड़े की शुरुआत की थी।  शुरुआत में सिर्फ 4 अखाड़े, जो बाद में बढ़ते -बढ़ते 13 हो गए। यह 13 अखाड़े 3 प्रमुख संप्रदायों में बंटे हुए है। महर्षि शंकराचार्य का उद्देश्य हिंदू धर्म के साधु-संतों को संगठित करना था, ताकि वे धर्म का प्रचार प्रसार कर सके और किसी भी बाहरी आक्रमण से धर्म और संस्कृति के लिए लड़ने के लिए तैयार रहे।


1) शैव संप्रदाय


शैव संप्रदाय के अखाड़े भगवान शिव के उपासक होते हैं।


  • महानिर्वाणी अखाड़ा:यह अखाड़ा प्रयागराज में स्थित है और इसे शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा माना जाता है। इनके पास महाकालेश्वर मंदिर की पूजा का अधिकार है।
  • निरंजनी अखाड़ा:  इस अखाड़े को सबसे शिक्षित अखाड़ा माना जाता है, जिसमें 50 से ज्यादा महामंडलेश्वर हैं।
  • आनंद अखाड़ा: शिव भक्ति और योग साधना पर आधारित इस अखाड़े में महामंडलेश्वर नहीं होते है। सिर्फ आचार्य होते हैं।
  • जूना अखाड़ा: यह अखाड़ा सबसे पुराना अखाड़ा है, जो नागा साधुओं का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें 5 लाख से ज्यादा साधु संत है।
  • आवाहन अखाड़ा: वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर स्थित इस अखाड़े में महिला साध्वियों को दीक्षा देने की परंपरा नहीं है।
  • अटल अखाड़ा: इस अखाड़े को प्राचीन परंपराओं को मानने वाला माना जाता है। यहां सिर्फ  ब्राह्मण , क्षत्रियों और वैश्यों को दीक्षा दी जाती है।
  • पंचदशनाम अग्नि अखाड़ा: यह अखाड़ा जूनागढ़, गुजरात में स्थित है। जो केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मणों को ही दीक्षा देता है।


2) वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े 


वैष्णव अखाड़े भगवान विष्णु और उनके अवतारों के उपासक हैं


  • निर्वाणी अखाड़ा: भगवान राम और श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाला यह अखाड़ा बहुत प्रसिद्ध है।वैष्णव सम्प्रदाय के सबसे ज्यादा 09 उप अखाड़े इसी अखाड़े के पास हैं।
  • निर्मोही अखाड़ा: निर्मोही अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा माना जाता है। यहां से कई बड़े संत प्रोफेशनल पहलवान भी रह चुके हैं।
  • दिगंबर अखाड़ा: यह भी वैष्णव परंपरा का पालन करने वाला एक प्रमुख  संगठन है। गुजरात में स्थित इस अखाड़े को संप्रदाय में राजा का दर्जा मिला हुआ है।


3) उदासीन संप्रदाय 


उदासीन संप्रदाय भारतीय धर्म और दर्शन की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो निर्गुण भक्ति, सेवा, और आत्मज्ञान पर आधारित है। यह सिख साधु संतों का अखाड़ा है।


  • बड़ा उदासीन अखाड़ा: इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य निर्गुण भाव से सेवा करना है। इसमें ज्यादातर सिख साधु होते हैं।
  • नया उदासीन अखाड़ा:  उत्तराखंड के हरिद्वार में स्थित इस अखाड़े में 8 से 12 साल के बच्चे को दीक्षा दी जाती है।
  • निर्मल अखाड़ा: उत्तराखंड के हरिद्वार में स्थित इस अखाड़े में धूम्रपान पूरी तरह वर्जित होता है।

 

इन 13 प्रमुख अखाड़ों के अलावा कई और अखाड़े है। हालांकि उन्हें अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता नहीं मिली हुई है।


........................................................................................................
अप्रैल 2025 में कृष्ण जन्माष्टमी कब है

हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ बड़े श्रद्धा और पवित्र भाव के साथ मनाया जाता है। वैसे तो श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी भाद्रपद मास में मनाई जाती है, लेकिन हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में भी यह पर्व मनाया जाता है।

अप्रैल महीने का दूसरा प्रदोष व्रत कब है

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है और हर महीने की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है।

मासिक शिवरात्रि अप्रैल 2025 में कब है

मासिक शिवरात्रि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती कि विशेष रूप से पूजा की जाती है, जो शिव भक्तों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।

वैशाख 2025 की अमावस्या कब है

हिंदू धर्म में प्रत्येक अमावस्या का विशेष महत्व होता है, लेकिन वैशाख माह की अमावस्या विशेष रूप से फलदायक मानी जाती है।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang