मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू की पौराणिक कथा

दिवाली पर जानिए उल्लू पर क्यों विराजती हैं माता लक्ष्मी, जानिए क्या है उल्लू की खासियत और भ्रम?


दिपावली पर लक्ष्मी पूजा का सबसे अधिक महत्व है। माता के अष्ट लक्ष्मी स्वरूपों की विधि पूर्वक पूजन करने से  माता की कृपा प्राप्त होती है। मां महालक्ष्मी वैकुंठ में, स्वर्गलक्ष्मी स्वर्ग में, राधाजी गोलोक में, दक्षिणा यज्ञ में, गृहलक्ष्मी गृह में, शोभा हर वस्तु में, सुरभि या रुक्मणी गोलोक में और राजलक्ष्मी जो स्वयं सीता जी का स्वरूप है पाताल और भूलोक में निवास करती हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं की सवारी भिन्न-भिन्न है। तो आईए जानते हैं मां लक्ष्मी की सवारी उल्लू के बारे में। 


ऐसे बना उल्लू लक्ष्मी जी का वाहन 


सृष्टि संरचना के बाद जब लक्ष्मी माता पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने हेतु आईं तो सभी पशु पक्षी उनके दर्शन कर उनसे अनुरोध करने लगे कि “हे मां आप हम जीवों को किसी ना किसी रूप में अपना कर हमारा कल्याण करें। इन सभी जीवो में मां लक्ष्मी का वाहन बनने की होड़ लग गई। इस स्थिति को देखते हुए मां लक्ष्मी ने कहा कि मैं कार्तिक मास की अमावस्या को पुनः पृथ्वी लोक पर आऊंगी, उस समय जो मुझे अपनी कार्य-कुशलता, कौशल-कर्म से प्रभावित करेगा मैं उसका चयन वाहन के रूप में करूंगी। कार्तिक मास की अमावस्या आई। सभी पशु पक्षी मां लक्ष्मी की राह निहारने लगे। मां लक्ष्मी ने सब की परीक्षा लेने हेतु आने में विलंब किया। संध्या का समय हुआ अंधेरा होने लगा। सभी पशु पक्षी अपने-अपने स्थान पर जाने लगे। रात्रि के समय मां लक्ष्मी धरती पर आईं। क्योंकि, रात्रि के घोर अंधकार में भी उल्लू को स्पष्ट दिखाई देता है। इसलिए उसने जैसे ही मां लक्ष्मी को आते देखा, तुरंत उनके सम्मुख जाकर उन्हें प्रणाम किया व स्वयं को उनके वाहन के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया। इस प्रकार मां लक्ष्मी उल्लू के धैर्य और स्वामी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उल्लू को अपना वाहन बना लिया।


उल्लू में होती है यह खासियत 


उल्लू तेज़ नज़र की विशिष्ट क्षमता, विलक्षण प्रतिभा, सटीक दृष्टिकोण और सकारात्मकता का प्रतीक होता है। साथ ही वो संसार से हटकर विचार रखने की शक्ति का प्रतीक भी है। वह निर्भयता का भी प्रतीक है। वह रात के अंधकार में भी सब कुछ साफ देख सकता है।


बहुत कुछ सिखाता है हमें उल्लू 


जीवन में चाहे वक्त कैसा भी हो हमें धैर्य बनाए रखना चाहिए। यदि अन्य पशु पक्षियों की तरह उल्लू ने भी धैर्य से काम नहीं लिया होता तो शायद आज वह मां लक्ष्मी की सेवा का पुण्य नहीं कमा पाता। 


उल्लू के बारे में यह भी प्रचलित 

 

मान्यताओं के अनुसार कुछ लोक तांत्रिक क्रियाओं हेतु उसका शिकार भी करते है। नाखून, पंजे, गर्दन, हड्डी, पंख, आंखे, मांस आदि का उपयोग करने के लिए इस बेजुबान जीव की हत्या तक कर देते हैं। हालांकि, लक्ष्मी के वाहन उल्लू का दिखना या उसका बोलना शुभ माना जाता है। रात में उल्लू दिखाई देना या उसका आपको घूरना शुभ संकेत है, इसका अर्थ है आपके जीवन में खुशियां आने वाली है और आर्थिक परेशानियां जल्द समाप्त होने वाली है। पूजा स्थल पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के साथ उल्लू के प्रतिक चिन्ह या तस्वीर को रखना और पूजा- पाठ करना भी अत्यंत ही शुभ माना गया है। वहीं, यात्रा प्रस्थान के समय उल्लू की आवाज़ सुनना शुभ माना जाता है। यात्रा पर जाते समय यदि उल्लू की आवाज सुनाई दे तो यात्रा मंगलमय होती है।


उल्लू को लेकर भ्रम 


हालांकि, उल्लू को लेकर कुछ भ्रामक प्रचार भी है जो उसे अशुभ बताता है। लेकिन शुभ मान्यताओं और लक्ष्मी जी का वाहन होने के चलते भारत में उल्लू की सभी प्रजातियां को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित कर दिया गया है। इनका शिकार करना, मारना या खरीदफरोख्त करना दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।


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