नवीनतम लेख
सनातन हिंदू धर्म में अग्नि को बेहद ही शुद्ध माना गया है। यही कारण है कि पूजा के अंत में जलती हुई आरती या दीपक की लौ को आराध्य देव के सामने एक विशेष विधि से घुमाया जाता है। इसमें इष्टदेवता की प्रसन्नता के लिए दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन और गुणगान किया जाता है। यह उपासक के हृदय में भक्ति दीप प्रज्वलित करने और ईश्वर का आशीर्वाद ग्रहण करने का सुलभ माध्यम है। तो आइए इस आलेख में हम विस्तार से आरती की प्रक्रिया, इसके महत्व और विशेषता को जानते हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि आरती शब्द संस्कृत के आर्तिका शब्द से बना है। जिसका अर्थ है, अरिष्ट, विपत्ति, आपत्ति, कष्ट और क्लेश। भगवान की आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है किसी स्थान को विशेष रूप से प्रकाशित करना। शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार, आरती के इन्हीं दो अर्थों के आधार पर भगवान की आरती करने के दो कारण बताए गए हैं।
आरती में दीपक की लौ को देवता के समस्त अंग-प्रत्यंग में बार-बार इस प्रकार घुमाया जाता है कि भक्तगण आरती के प्रकाश में भगवान के चमकते हुए आभूषण और अंगों का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें और संपूर्ण आनंद को प्राप्त कर सकें। ईश्वर की छवि को अच्छी तरह निहारकर हृदय में भर सकें। इसलिए आरती को नीराजन कहते हैं, क्योंकि इसमें भगवान की छवि को दीपक की लौ से विशेष रूप से प्रकाशित किया जाता है।
आरती करने के दूसरे कारण के रूप में बताया गया है कि साधक अपने आराध्य के अरिष्टों को दीपक की लौ से नष्ट कर देता है। भगवान का रूप सौंदर्य अप्रतिम होता है। जब भक्त उन्हें एकटक निहारता है, तो उन्हें नजर भी लग जाती है। आरती के दीपक की लौ से भगवान के समस्त अरिष्टों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
मान्यता है कि आरती के बाद जब हम ईश्वर का आशीर्वाद ले रहे होते हैं तो हम कपूर या दीये की आरती पर अपना हाथ घुमाते हैं। इससे हमारी हथेली का अग्नि स्पर्श होता है। ये हमारे हथेली को ज्योत की दिव्य उषमता प्रदान करता है। कपूर और देसी गौधृत के दिव्य प्रताप से हमारे अन्दर पल रहे सभी जीवाणु संक्रमण समाप्त हो जाते है।
ज्योत पर हाथ फेरने के उपरान्त हम अपनी ऊष्म हाथेलियो को आंखों से लगाते हैं और हमें गर्माहट महसूस होती है। यह गर्माहट से हमारी आँखो कि सूक्ष्म इद्रियां खुल जाति है और उन में ज्यादा रक्त प्रवाहित होने लगता है जिससे हमारी आँखो कि ज्योति में वृद्धि हो। ज्योत पर हथेली रखना हमारे द्वारा जाने अन्जाने मे किये गए किसी भी प्रकार के पाप के प्रयायचित का भी प्रतीक है।
आरती को भगवान के समक्ष भी घुमाने के नियम हैं। माना जाता है कि नियमानुसार आरती करने से ईश्वर की शक्ति उसमें समा जाती है। आरती को सबसे पहले इसे भगवान के चरणों की तरफ चार बार, फिर नाभि की तरफ दो बार और अंत में एक बार मुख की तरफ घुमाएं। ये एक क्रम कहलाता है। हर भक्त को आरती के दौरान सात बार ऐसा करना चाहिए। आरती होने के बाद जल से आरती का आचमन करें और उस जल का अन्य लोगों पर छिड़काव करें। फिर दोनों हाथों को दीपक की लौ के आसपास लाकर उसकी ऊष्मा को अपने मस्तक पर लगाएं। यदि घर में रोजाना कम से कम सुबह शाम भी इस तरह से आरती की जाए तो घर में नकारात्मकता नहीं रहती और वास्तुदोष भी समाप्त हो जाता है।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।