देवों के देव महादेव को भांग बेहद प्रिय है। जब भी भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है, तो उन्हें भांग जरूर चढ़ाना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि अगर भगवान शिव की पूजा में भांग न हो, तो पूजा अधूरी मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि शिव जी की पूजा में भांग चढ़ाने से व्यक्ति के सभी रुके हुए काम पूरे हो सकते हैं। अब ऐसे में सवाल है कि भगवान शिव की भांग चढ़ाने की परंपरा कब से चली आ रही है और उनकी पूजा भांग के बिना क्यों पूरी नहीं मानी जाती है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी से विस्तार से जानते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले जहरीले विष को भगवान शिव ने पीकर संसार को बचाया। वहीं विष को भगवान शिव में अपने गले में नीचे नहीं जाने दिया। जिसके कारण उनका कंठ धीरे-धीरे नीला पड़ने लगा और इसी वजह से भगवान भोलेनाथ को नीलकंठ भी कहा जाने लगा। विष को पीने के बाद भगवान शिव बेहद व्याकुल होने लगे और इससे विष उनके मस्तिष्क पर भी धीरे-धीरे चढ़ने लगा और भोलेनाथ बेहोश हो गए और इससे देवताओं के सामने एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो लगी और उन्होंने कई प्रयास किए। तभी जाकर सभी देवताओं ने भगवान शिव के सिर पर भांग रख दिया और दूध से भगवान शिव का अभिषेक किया। तभी जाकर भगवान शिव का शरीर शीतल हुआ। इसी कारण भगवान शिव ठीक हुए और उन्होंने भांग को जीवनदायिनी भी माना है। इसलिए उनकी पूजा में भांग जरूर चढ़ाना चाहिए।
भगवान शिव को भांग चढ़ाने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं और जीवन में आ रही सभी समस्याओं से भी छुटकारा मिल सकता है। इसके अलावा अगर आप किसी कार्य में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन भगवान शिव को भांग चढ़ाने से लाभ हो सकता है और सुख-सौभाग्य में भी वृद्धि होती है। अगर आपकी कुंडली में कोई भी ग्रह दोष है, तो भगवान शिव को भांग चढ़ाने से उत्तम परिणाम मिल सकते हैं।
भगवान शिव को ज्योतिष में काल और परिवर्तन का देवता माना जाता है। वहीं भांग को चंद्रमा का भी कारक माना गया है। आपको बता दें, चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक है। भांग मन को शांत करने और भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसलिए इसे चंद्रमा से भी जोड़कर देखा गया है।
भोले के नाम का प्याला पिएंगे,
भोले के नाम का जप हम करेंगे,
चलो दर्शन को मेहंदीपुर चलिए,
जहाँ बालाजी का दरबार है,
चलो मन गंगा जमुना तीर,
चलो मन गंगा जमुना तीर,
चलो मन वृन्दावन की ओर,
प्रेम का रस जहाँ छलके है,