विवाह दिन में करें या रात में

दिन या रात कब करना चाहिए विवाह, जानिए क्या कहता है ज्योतिष और धर्म शास्त्र 


हिंदू धर्म में विवाह को एक विशेष संस्कार माना गया है, जो 16 संस्कारों में से एक है। यह ना सिर्फ सामाजिक बंधन है, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। विवाह को लेकर हमारे धर्म शास्त्रों और ज्योतिष शास्त्रों में विशेष नियम और मान्यताएं दी गई हैं। इसमें यह प्रश्न अक्सर उठता है कि विवाह दिन में होना चाहिए या रात्रि में? तो आइए इस लेख में हम इस परंपरा के धार्मिक, ज्योतिषीय और ऐतिहासिक पहलुओं का विस्तार से विश्लेषण करते हैं। 


हिंदू विवाह की परंपराएं 


सनातन धर्म में हर शुभ कार्य और संस्कार को दिन के समय करना शुभ माना गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, दिन में किए गए कार्य सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा और प्रकाश के साक्षी में संपन्न होते हैं। लेकिन, हिंदू शादियां आमतौर पर रात्रि के समय होती हैं। इसके पीछे धार्मिक और ज्योतिषीय कारण जुड़े हुए हैं।


दिन में विवाह की मान्यता 


  • शुभ मुहूर्त का महत्व: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दिन के शुभ मुहूर्त में विवाह करना लाभकारी होता है।
  • प्राचीन कथाओं में जिक्र: पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि सीता और द्रौपदी का स्वयंवर दिन के समय ही हुआ था। 
  • सूरज की सकारात्मक ऊर्जा: सूर्य को शक्ति और अग्नि का परिचायक माना गया है। इसलिए दिन के समय किए गए संस्कार ऊर्जा, प्रकाश और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।


रात्रि में विवाह का महत्व


  • ध्रुव तारे को साक्षी मानकर विवाह: रात्रि में विवाह करने का एक बड़ा कारण यह है कि फेरे ध्रुव तारे को साक्षी मानकर लिए जाते हैं। ध्रुव तारा स्थिरता और अडिगता का प्रतीक है। यह विश्वास है कि इस तारे की साक्षी में विवाह करने से पति-पत्नी का रिश्ता जन्म-जन्मांतर तक बना रहता है।
  • चंद्रमा का महत्व: चंद्रमा को मन का कारक और शांति का प्रतीक माना गया है। रात्रि में चंद्रमा की उपस्थिति के कारण विवाह संस्कार को शांत, आत्मीय और सौहार्दपूर्ण माना जाता है।
  • पौराणिक आधार: धर्म शास्त्रों के अनुसार, रात्रि का समय विवाह के लिए उपयुक्त होता है क्योंकि यह समय चंद्रमा की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव दर्शाता है।


ज्योतिषीय दृष्टिकोण 


ज्योतिष में यह मान्यता है कि विवाह हमेशा शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए। दिन हो या रात्रि, विवाह के लिए ग्रह, नक्षत्र तथा तिथि का मेल सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य ऊर्जा और चंद्रमा शांति का प्रतीक है। इन दोनों की उपस्थिति विवाह को संतुलित और शुभ बनाती है। रात्रि में ध्रुव तारा विवाह का साक्षी होता है। जिससे संबंधों की स्थिरता और स्थायित्व बनी रहती है।


दिन और रात दोनों में विवाह की स्वीकृति 


  • दिन में विवाह: यदि मुहूर्त दिन के समय है और ज्योतिषीय गणना सही है, तो विवाह दिन में भी संपन्न किया जा सकता है।
  • रात्रि में विवाह: परंपराओं और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, रात्रि का समय विवाह के लिए अधिक अनुकूल माना जाता है।


क्या है इतिहास और परंपरा


पुराणों में यह उल्लेख मिलता है कि राम-सीता और अर्जुन-द्रौपदी का विवाह दिन में संपन्न हुआ था। इसके विपरीत, शकुंतला-दुष्यंत और अन्य पौराणिक पात्रों के विवाह रात्रि में हुए थे। यह दर्शाता है कि समय का चयन बहुत हद तक ज्योतिषीय गणना और परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है।


डिसक्लेमर

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