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मुरूदेश्वर शिव मंदिर कर्नाटक में कन्नड़ जिले के भटकल तहसील में स्थित है। मंदिर तीन ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है। समुद्र तट पर स्थित होने के कारण इस मंदिर के आसपास का नजारा बहुत ही सुंदर लगता है। यह मंदिर भटकल नगर से लगभग 13 किमी दूर स्थित है। यह एक हिंदू तीर्थ स्थल है और यहां पर विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भगवान शिव की मूर्ति है। यहां का मुरुदेश्वर मंदिर प्रसिद्ध है। मुरुदेश्वर भगवान शिव का एक नाम है।
मंदिर और इसकी मूर्ति का निर्माण 1970 के दशक में शुरू हुआ था। मुरुदेश्वर की शिव प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची शिव प्रतिमाओं में से एक है। जो लगभग 123 फीट ऊंची है। इस मूर्ति को इस तरीके से बनाया गया है कि इस पर दिनभर सूर्य की किरणें पड़ती रहे, जिसकी वजह से ये मूर्ति हमेशा चमकती रहे। इसे बनाने में करीब दो साल का समय लगा था और करीब पांच करोड़ रुपये की लागत आई थी।
रामायण काल में भी इस मंदिर की जिक्र मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, रामायण काल में रावण, शिव जी से अमरता का वरदान पाने के लिए तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण को एक शिवलिंग दिया, जिसे आत्मलिंग कहा जाता है। इस आत्मलिंग के संबंध में शिवजी ने रावण से कहा था कि इस आत्मलिंग को लंका ले जाकर स्थापित करना, लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा। अतः यदि तुम अमर होना चाहते हो तो इस लिंग को लंका ले जाकर ही स्थापित करना। रावण इस आत्मलिंग को लेकर चल दिया।
सभी देवता यह नहीं चाहते थे कि रावण अमर हो जाए इसलिए विष्णु भगवान ने छल करते हुए शिवलिंग रास्ते में ही रखवा दिया। जब रावण को विष्णु का छल समझ आया तो वह क्रोधित हो गया और उस आत्मलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया। सभी इस लिंग पर ढका हुआ वस्त्र उड़कर मुरुदेश्वर क्षेत्र में आ गया थ। इसी दिव्य वस्त्र के कारण यह तीर्थ क्षेत्र माना जाने लगा। शिव पुराण में इस कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है।
1- रुद्राभिषेकम - भगवान शिव की रौद्र रूप में पूजा की जाती है। यह विशेष पूजा भगवान शिव को समर्पित है और माना जाता है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है।
2- पंचामृत अभिषेकम - पंचामृत को एक पवित्र अमृत माना जाता है जो दूध, दही, शहद, घी और चीनी सहित पांच तरल पदार्थों के संयोजन से तैयार किया जाता है। इस विशेष पूजा में, शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराया जाता है।
3- पंचाकज्जाया- पंचाकज्जाया इस विशेष अनुष्ठान में भगवान शिव को चढ़ाया जाने वाला एक प्रकार का प्रसाद है। यह प्रसाद दक्षिण भारतीय क्षेत्र में लोकप्रिय है और आमतौर पर नारियल, किल, इलायची और घी से बनाया जाता है।
4- बिल्वार्चन - इस पूजा में, भगवान शिव को बिल्व के पत्ते चढ़ाए जाते हैं।
5- चंदन अभिषेकम - चंदन अक्सर हिंदू अनुष्ठानों में इसकी शुभता और शीतलता के कारण उपयोग किया जाता है। इस पूजा में लिंगम को चंदन से स्नान कराया जाता है।
6- भस्मार्चन - हिंदू भगवान शिव को अग्नि के रूप में पूजते हैं। यह पूजा शिवलिंग पर भस्म लगाकर की जाती है।
7 - एकादश रुद्र - हिंदू पुराणों के अनुसार, रुद्र के ग्यारह रूप हैं, जिनमें शिव, महारुद्र, ईशान, विजय रुद्र, शंकर, नीललोहित, भीम, देवदेव, भवोद्भव, आदित्यमक श्रीरुद्र आदि शामिल हैं।
1- नंदा दीप पूजा - इस सेवा में, मंदिर के पुजारी भगवान शिव के सभी भक्तों की ओर से नंद दीप स्तंभ को दीयों से जलते हैं।
2- सर्व देव पूजा - इस पूजा में मुरुदेश्वर मंदिर में मौजूद सभी मंदिरों की पूजा भक्तों द्वारा की जाती है, जबकि दैनिक पूजा में, वे आमतौर पर किसी विशेष भगवान की पूजा करते हैं।
3- अन्नस्तर्पण सेवा- यह एक और वार्षिक पूजा है जो भगवान शिव के भक्तों के लिए पूरे दिन की जाती है।
हवाई मार्ग - मुरुदेश्वर मंदिर के लिए निकटतम हवाई अड्डा मैंगलोर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो मंदिर से 165 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद, मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई टैक्सी बुक कर सकते है।
रेल मार्ग - मंदिर के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन मुरुदेश्वर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 8 किलोमीटर दूर है। आप मंदिर तक पहुंचने के लिए गोकर्ण में शीर्ष कार रेंटल कंपनियों से टैक्सी बुक कर सकते हैं।
सड़क मार्ग - बस से मंदिर आने वाले लोग निकटतम बस स्टॉप, मुरुदेश्वर बस स्टेशन पर आ सकते हैं, जो मंदिर से बहुत दूर नहीं है।
मंदिर का समय - सुबह 3 बजे से दोपहर 1 बजे तक। दोपहर 3 बजे से रात को 8 बजे तक।
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