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मूकाम्बिका कर्नाटक के उडुपी जिले के कोल्लूर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। कोल्लूर पश्चिमी घाटी की तलहटी में बसा है, और धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है। यह मंदिर शक्ति को समर्पित है, जिनकी पूजा श्री मूकाम्बिका के नाम से की जाती हैं। कोल्लूर मंदिर आमतौर पर केरल और तमिलनाडु में मुकाम्बी या मगूंबिगाई के नाम से संबोधित किया जाता है।
मूकाम्बिका मंदिर के कर्नाटक में होने के बावजूद यहां आने वाले ज्यादातर भक्त केरल या तमिलनाडु से होते हैं। श्री मूकाम्बिका अन्य हिंदू देवी-देवताओं के बीच अद्वितीय है क्योंकि देवी मूकाम्बिका महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की शक्तियों का एक रूप है। मंदिर में मौजूद उधम लिंग पुरुष और शक्ति रूप को प्रदर्शित करता है।
यह मंदिर महान हिंदू संत और वैदिक विद्वान आदि शंकराचार्य से संबंधित होने के कारण श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मान्यता है कि कोल्लूर में मूकाम्बिका देवी का मंदिर निर्माण करने का विचार आदि शंकराचार्य का ही है और लगभग 1200 साल पहले इस मंदिर में देवी की प्रतिमा को उन्होंने स्वयं ही स्थापित किया था। लोगों की मूकाम्बिका देवी मंदिर में बहुत श्रद्धा है। असल में मूकाम्बिका देवी का मंदिर सात मुक्ति स्थल तीर्थ स्थानों जबकि कोल्लूर, उडुपी, सुब्रह्मण्य, कुंबाशी, कोटेश्वर, शंकरनारायण और गोकर्ण में से एक है। ऐतिहासिक रूप से यह माना जाता है कि इस स्थान पर कौल नामक शाक्तों का निवास था और इसलिए इस स्थान को कोल्लूर कहा जाने लगा।
मूकाम्बिका मंदिर को कई प्राचीन राजाओं ने सुशोभित किया है जिन्होंने श्री कोल्लूर देवी को कई कीमती रत्न दिए हैं और वे आज भी देवी द्वारा सुशोभित हैं। कई अन्य राजाओं ने भी इस मंदिर को दान दिया है क्योंकि यह उन दिनों राज्य मंदिर माना जाता था और देवी पार्वती का प्रतीक था।
पौराणिक कथा के अनुसार कोल महर्षि यहां तपस्या कर रहे थे तब उनको एक राक्षस ने परेशान किया जो स्वयं वरदान प्राप्त करने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहा था। राक्षस की दुराचारी इच्छाओं को पूरा होने से रोकने के लिए आदि शक्ति ने उसे मूक बना दिया और जब भगवान उसके सामने प्रकट हुए तो वह भगवान से कुछ न मांग सका।
इस पर वह गुस्सा हो गया और कोल महर्षि को परेशान करना शुरू कर दिया। इसके बाद आदि शक्ति जिसने राक्षस को परास्त किया उनकी देवताओं द्वारा मूकाम्बिका के रूप में स्तुति की गई। कोल महर्षि की प्रार्थना पर पवित्र माता सभी देवताओं सहित सदैव के लिए वहां विराजमान हो गयीं ताकि श्रद्धालु उनकी आराधना कर सकें। माना जाता है कि श्री आदि शंकराचार्य के पास श्री मूकाम्बिका देवी की दृष्टि थी और उन्होंने देवी को वहां स्थापित किया।
कहानी इस प्रकार हैं- आदि शंकराचार्य ने कुदा बद्री पहाड़ियों पर तपस्या की और देवी उनके सामने प्रकट हुई और उनसे उनकी इच्छा के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि देवी को केरल में अपने द्वारा इच्छित स्थान पर आराधना हेतु स्थापित करना चाहते हैं। देवी सहमत हो गई और एक शर्त रख दी कि वे शंकराचार्य के पीछे चलेंगी और जब तक कि वे गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच जाते उन्हें पीछे नहीं देखना होगा। लेकिन शंकराचार्य का परीक्षण करने के लिए देवी जानबूझकर रुक गई और जब शंकराचार्य देवी की पदचाप नहीं सुन पाए तो अचानक पीछे घूम गए। तब देवी ने शंकराचार्य के पीछे जाना बंद कर दिया और शंकराचार्य से कहा कि वे उन्हें उनके विग्रह रूप में वहीं स्थापित कर दें।
कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर पर केरल का वास्तुशिल्प प्रभाव इसकी लकड़ी की नक्काशी, ढलान वाली छतों और समग्र डिजाइन से स्पष्ट है। केरल और द्रविड़ स्थापत्य शैली का यह सामंजस्यपूर्ण मिश्रण एक साझा सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। यह मंदिर केरल और कर्नाटक के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और स्थापत्य परंपराओं के संलयन का एक प्रमाण है।
कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर देवी मूकाम्बिका को समर्पित है, जो आदि पराशक्ति का एक रूप है, जो ब्रह्मांड की आदिम ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। हिंदू धर्म में, शक्ति, ज्ञान और सुरक्षा का प्रतीक दिव्य स्त्री की पूजा एक मौलिक प्रथा है। देवी पूजा की यह सार्वभौमिक अवधारणा केरलवासियों के साथ गहराई से जुड़ती है।
मंदिर में साल भर कई त्यौहार मनाए जाते हैं, जिसमें नवरात्रि, मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि शामिल हैं। नवरात्रि के दौरान, मंदिर को रोशनी और फूलों से सजाया जाता है। नवरात्रि देवी मूकाम्बिका को समर्पित नौ दिवसीय त्यौहार है, जहां हर दिन देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। दीपावली मंदिर में मनाया जाने वाला एक और प्रमुख त्यौहार है।
मंदिर में भक्तों के लिए कई तरह के पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। कुछ लोकप्रिय पूजाओं में महापूजा, अष्टोत्तर कुमकुम अर्चना और रुद्राभिषेक शामिल है।
1- महापूजा- महापूजा एक भव्य पूजा है जो मंदिर में हर दिन होती है। इसमें देवी मूकाम्बिका को फल, फूल और मिठाई जैसी वस्तुएं अर्पित की जाती है, साथ ही मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।
2- अष्टोत्तर कुमकुम अर्चना - यह एक विशेष पूजा है जिसमें भक्त देवी को 108 कुमकुम चढ़ाते हैं और उनके नामों का उच्चारण करते हैं। माना जाता है कि ये पूजा भक्त के लिए सौभाग्य और समृद्धि लाती है।
3- रुद्राभिषेकम - रुद्राभिषेकम भगवान शिव को समर्पित एक शक्तिशाली पूजा है, जिनकी पूजा देवी मूकाम्बिका के साथ की जाती है। इसमें रुद सूक्त का पाठ और भगवान शिव को दूध, शहद और फल जैसी वस्तुओं का अर्पण किया जाता है।
4- सलाम मंगलारती - यह एक विशेष प्रकार की आरती है जो मूकाम्बिका मंदिर में हर शाम 6.30 बजे से 8 बजे के बीच की जाती है। आरती के शुरुआत के दौरान, मजबूत संगीत ध्वनि के साथ ढोल की थाप पर विशेष भक्ति गीत गाए जाते हैं।
5- विद्यारंभम - विद्या- शिक्षा और अरंभम- प्रारंभ एक हिंदू परंपरा है जिसमें छोटे बच्चों को सीखने की प्रक्रिया से परिचित कराने के लिए विशेष अनुष्ठान शामिल है।
हवाई मार्ग - शहर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा मैंगलोर में बाजपे हवाई अड्डा है, जो कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर से लगभग 110 किमी है और भारत के ज्यादातर शहरों से जुड़ा है। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - मैंगलोर और कोल्लूर के बीच कई ट्रेनें चलती है। निकटतम रेलवे स्टेशन कुंडापुरा रेलवे स्टेशन है जो कि 32 किमी दूर है। केरल से आने वाली अधिकांश ट्रेनें मूकाम्बिका रोड रेलवे स्टेशन पर रुकती है। यहां से आप टैक्सी या बस के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - मैंगलोर, बैंगलोर, मैसूर और उडुपी या केरल के किसी भी शहर से आसानी से गाड़ी से यहां पहुंचा जा सकता है। कोल्लूर के लिए सड़क संपर्क बहुत बढ़िया है।
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