विजयासेन माता मंदिर, सलकनपुर (Vijayasen Maata Mandir, Salakanapur)

दर्शन समय

4 am –12 pm and 2 pm - 8 pm

माता आदिशक्ति को कई रूप में पूजा जाता है। जब-जब किसी दैत्य ने पृथ्वी पर उत्पात मचाया, तो माता आदिशक्ति ने अलग-अलग रूप में दुष्टों का संहार कर विश्व का कल्याण किया है। मध्य प्रदेश के सलकनपुर में भी माता का एक भव्य मंदिर है, जो इसी तरह की एक कथा से प्रसिद्ध है। 

हम बात कर रहे हैं सलकनपुर के विंध्यवासिनी विजयासन दुर्गा मंदिर की, ये मंदिर ये पहाड़ी पर स्थित है। मध्यप्रदेश की राजधानी के समीप सलकनपुर देवी मंदिर में लाखों श्रद्धालु देवी दर्शन के लिए आते हैं। यहां सड़क, सीढ़ियों और केबल कार द्वारा सरलता से पहुंचा जा सकता है।


मंदिर की मान्यता 

सीहोर जिले के रेहटी में विंध्य की मनोहारी पहाड़ी पर विजयासन देवी का मंदिर है। ये मंदिर सलकनपुर मंदिर के नाम से विख्यात है। यहां विराजमान माता को भक्त विंध्यवासनी विजयासन देवी कहा जाता है जो मां दुर्गा का ही एक अवतार है। सलकनपुर का ये मंदिर एक बहुत ही पवित्र स्थान है। जो भोपाल से 70 किमी दूर स्थित है। मंदिर एक खूबसूरत पहाड़ी पर है जहां श्रद्धालुओं को मानसिक शांति मिलती का अनुभव होता है। मंदिर के भीतर एक अलौकिक शांति है और बाहरी क्षेत्र में प्राकृतिक शांत वातावरण के साथ हरियाली का अनुभव होता है।


स्थानीय लोगों की श्रद्धा 

दुःख दूर करने वाली माता विजयासन के दरबार में दर्शनार्थियों की कोई पुकार कभी खाली नहीं जाती हैं। बड़े से बड़ा मंत्री हो या एक गरीब इंसान मां सब पर कृपा बरसाती हैं। भक्तों के बढ़ते हुए कदम जैसे ही इस धाम की परिधि पर पहुंचते हैं, पूरा शरीर मानो मां विजयासन की शक्ति से भर जाता है। माना जाता है कि मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं। विध्यांचल पर्वत श्रृंखला पर विराजी माता को विंध्यवासिनी देवी कहा जाता है।


मां विजयासन का महत्व

ये मंदिर लगभग 4 हजार फीट की उंचाई पर है। विजयासन देवी की यह प्रतिमा लगभग चार सौ साल पुरानी और स्वयंभू मानी जाती है। श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार, दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी अवतार के रूप में देवी ने इसी स्थान पर रक्तबीज नाम के राक्षस का वध कर विजय प्राप्त की थी । फिर जगत कल्याण के लिए इसी स्थान उन्होंने विजयी मुद्रा में तपस्या की। इसलिए इन्हें विजयासन देवी कहा गया। सलकनपुर मंदिर आस्था और श्रद्धा का 52 वां शक्ति पीठ कहा जाता है। मंदिर पहुंचने के लिए भक्तों को पत्थर से बनी 1 हजार 451 सीढ़ियों पार करनी होती हैं। माता कन्याओं को मनचाहा जीवनसाथी का आशीर्वाद देती हैं, वहीं भक्तों की सूनी गोद भी भरती हैं। भक्तों की श्रद्धा है कि इस देवीधाम का महत्व किसी शक्तिपीठ से कम नहीं हैं।


 

मंदिर की विशेषता

मंदिर के महंत प्रभुदयाल शर्मा के मुताबिक चार सौ साल पुराने इस मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति सैकड़ों वर्ष प्राचीन है। मंदिर के गर्भगृह में लगभग 400 साल से 2 अखंड ज्‍योति प्रज्जवलित हैं। जिनमें एक नारियल के तेल और दूसरी घी से जलायी जाती है। इन ज्योतिओं को साक्षात देवी रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा मंदिर में धूनी भी जल रही है। इस धूनी को स्‍वामी भद्रानं‍द और उनके शिष्‍यों ने प्रज्जवलित किया था। तभी से इस अखंड धूनी की भस्‍म अर्थात राख को महाप्रसाद के रूप में दिया जाता है ।


मंदिर के निर्माण से जुड़ी कहानी

लगभग 300 साल पहले कुछ बंजारे इस स्थान पर विश्राम करने और अपने पशुओं को चारा खिलाने के लिए रूके थे। अचानक उनके सारे पशु गायब हो गए। जब बंजारे पशुओं की तलाश में निकले तो उनमें से एक बृद्ध बंजारे को एक छोटी बच्ची मिली। बच्ची के पूछने पर उसने सारी बात बता दी। तब बच्ची ने उनसे कहा कि आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मन की इच्छा बता दें, देवी आपकी समस्या का समाधान करेंगी। इस पर बृद्ध बजारे ने कहा कि हमें नही पता है कि मां का स्थान कहां पर  है। तब छोटी बच्ची ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंक कर रास्ता दिखाया। जिस स्थान पर पत्थर फेंका उसी जगह मां भगवती के दर्शन मिले। बंजारे मां भगवती की पूजा-अर्चना करने लगे। कुछ ही समय बाद उनके पशु उन्हें मिल गए। मन्नत पूरी होने पर  बंजारों के समूह ने मंदिर का निर्माण करवाया। यह घटना बंजारों द्वारा बताए जाने पर लोगों का उस मंदिर में आना शुरू हो गया और मंदिर की प्रसिद्ध हो गया।


त्योहारों पर भक्तों का विशेष अनुष्ठान

400 फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान विजयासन देवी के मंदिर में वैसे तो सालभर श्रद्धालु आते हैं लेकिन नवरात्रि पर मंदिर की छटा निराली होती है । ये आस्था और श्रद्धा का शक्ति पीठ है। यह मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसलिए सालभर भक्त भोपाल, इटारसी, होशंगाबाद, पिपरिया, सोहागपुर, बैतूल सहित दूर-दूर से टोलियां बनाकर गाते-बजाते पैदल ही यहां आते हैं।


कैसे पहुंचे सलकनपुर धाम

भारत की राजधानी दिल्ली से सलकनपुर करीब 850 किमी की दूरी पर है. आप यहां भोपाल, नर्मदापुरम या फिर इटारसी के रास्ते से पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग - दिल्ली से हवाई मार्ग से आने के लिए आपको भोपाल के राजा भोज इंटरनेशनल एयरपोर्ट आना होगा, जहां से आप कैब बुक कर या लोकल ट्रांसपोर्ट के जरिए सलकनपुर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग- सलकनपुर से नजदीकी रेलवे स्टेशन नर्मदापुरम का है. नर्मदापुरम (होशंगाबाद) रेलवे की मेन लाइन पर है और यहां देश के बड़े बड़े शहरों से रेल रूट की अच्छी कनेक्टिविटी है।

सड़क मार्ग - सलकनपुर देवी धाम पहुंचने के लिए सड़क मार्ग भी एक अच्छा जरिया है। आप नर्मदापुरम, भोपाल, रायसेन से होते हुए सलकनपुर पहुंच सकते हैं।


मंदिर पहुंचने के रास्ते

सलकनपुर पहुंचने के बाद आपको मंदिर के शीर्ष पर पहुंचने के लिए 3 रास्ते मिलेंगे। आप यहां लगभग 1451 सीढ़ियाँ के जरिए, रस्सी कार और सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। यहां पर दो पहिया और चार पहिया वाहन से भी पहुंचा जा सकता है। यह रास्ता करीब साढ़े 4 किलोमीटर लंबा है। मानसून और सर्दियों की शाम यहां घूमने के लिए आदर्श समय है। मंदिर तक पहुंचने के लिए अपना वाहन आसान माध्यम होगा। भारत सरकार के सहयोग से राज्य सरकार यहां कॉरिडोर का निर्माण भी करा रही है। कॉरिडोर बनने से इस मंदिर की सुंदरता और इतिहास में चार चांद लग जाएंगे।


सलकनपुर मंदिर के पास होटल

होटल उमंग पैलेस 

मंदिर से दूरी 20 किलोमीटर

लोकेशन: सलकनपुर रोड, भोपाल रोड, नसरुल्लागंज, शाला, मध्य प्रदेश


होटल वाटिका इन 

मंदिर से दूरी 16 किलोमीटर

लोकेशन: जायसवाल पेट्रोल पंप, कैंपस, सोहागपुर, मध्य प्रदेश


होटल प्रकाश एंड सन 

मंदिर से दूरी 59  किलोमीटर 

होटल प्रकाश एंड संस NH12 हाईवे रोड, कलियासोत, ब्रिज, समरधा, मध्य प्रदेश


सलकनपुर विजयासेन माता विंध्यवासिनी का धाम है। यहां दर्शन-पूजन करके भक्त अपनी मनवांछित फल को प्राप्त कर सकते है। इस यात्रा का फल 1400 सीढियां चढ़कर जाने में अधिक मिलता है। बाकी लोग अपने इच्छा और स्वास्थ्य के अनुरूप साधन का चयन करते है।

डिसक्लेमर

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मंदिर