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श्री कृष्ण जन्म (Shri Krishna Janam)

श्री कृष्ण जन्म (Shri Krishna Janam)

आकाशवाणी बनी कंस का काल, जानें बुधवार को ही क्यों कृष्ण अवतार में जन्में प्रभु


“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।

 परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् । 

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।”


ये गीता में लिखा मात्र एक श्लोक नहीं अपितु स्वयं भगवान नारायण श्रीहरि विष्णु का दिया गया वचन है। उन्होंने श्रीकृष्णावतार के दौरान अपने मुखारविंद से यह ज्ञान अर्जुन को माध्यम बनाकर समूचे संसार को दिया था। जिसका अर्थ है ”धर्म की रक्षा के लिए और अधर्म के नाश के लिए समय-समय पर हर युग में, मैं अवतार लूंगा और धरती को पाप मुक्त कर, धर्म की पुनर्स्थापना करूंगा।” भले ही यह वचन भगवान ने द्वापर युग में दिया था लेकिन इसी वचन के अनुसार आचरण करने के लिए भगवान हर युग में कई रूपों में धरती पर आते रहे और विभिन्न रूपों में लीला रचाकर यह वचन निभाते रहे हैं। भगवान के प्रमुख चौबीस अवतारों का भी यही उद्देश्य था। भगवान के सभी अवतारों में द्वापर युग में कृष्णावतार बहुत ही महत्वपूर्ण है। 


जब भक्तवत्सल भगवान विष्णु ने भाद्रपद के कृष्ण की अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा के कारागार में जन्म लिया था। वासुदेव और देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी आठवी संतान के रूप में अवतार लिया। रोहिणी नक्षत्र, दिन बुधवार, अष्टमी तिथि और आधीरात का समय द्वापर युग में संसार के सभी प्राणियों के दुखों के निवारण का समय था। तभी तो किसी ने लिखा है कि " ये जन्म का समय नहीं, ये तो समय का जन्म था। आज भी सनातन धर्म के मानने वाले इसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। तो आइए जानते हैं कृष्ण जन्म की पूरी कहानी। 


एक-एक करके सात शिशुओं की हत्या 


मथुरा के भोजवंशी राजा उग्रसेन का बेटा कंस बड़ा अत्याचारी और अधर्मी था। उसने अपने पिता से राजगद्दी छीनकर उन्हें कारागार में कैद डाल दिया और खुद मथुरा का राजा बनकर राज करने लगा। उसके राज्य में जनता बहुत दुखी थी। राजा कंस को अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह था। उसने अपनी बहन का विवाह बड़े धूमधाम से यदुवंशियों में सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले वासुदेव से कराया था। जब वह देवकी और वासुदेव जी को विवाह के पश्चात विदा करने के दौरान अपने रथ में बैठाकर ले जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई कि “जिस बहन की शादी में वह इतना खुश हो रहा है, उसी की आठवीं संतान के द्वारा उसकी मौत होगी।” यह सुनकर कंस को बहुत क्रोध आया और उसने तुरंत अपनी बहन और बहनोई को मारने का निर्णय लिया। लेकिन जब वह उन दोनों का वध करने के लिए बढ़ा तो उन दोनों ने उसे वचन दिया कि यदि कंस उन्हें अभय दान दे तो वह अपनी हर संतान का जन्म होते ही उसे कंस को सौंप देंगें। यह सुनकर कंस ने उन दोनों को मारने का विचार त्याग दिया और उन्हें अपने कारागार में कैद कर लिया।


जब देवकी और वासुदेव जी को पहली संतान हुई तो वह अपने वचन के अनुसार उसे लेकर कंस के दरबार में पहुंचे। शिशु को देखकर कंस के मन में विचार आया जब मुझे जान का खतरा देवकी की आठवीं संतान से है, तो मैं उनकी पहली संतान का वध क्यों करूं? ऐसा विचार कर कंस ने वासुदेव जी को शिशु सहित जाने के लिए कहा। तभी भगवान की प्रेरणा से कंस की सभा में नारद मुनि आए और उन्होंने कंस को समझाया कि क्या पता मौत के डर से आठवां शिशु ही पहला बनकर आ गया हो। इतना सुनकर पापी कंस ने वासुदेव से बच्चे को छीन लिया और उसका वध कर दिया। कंस ने अपनी मौत के डर से एक-एक करके देवकी और वासुदेव के 7 नवजात शिशुओं का वध कर दिया। 


अब बारी थी कंस के काल और देवकी के आठवें लाल के जन्म की। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की स्याह रात में जोरों की वर्षा हो रही थी, चारों ओर घनघोर अंधेरा था। तभी उस काल कोठरी में अचानक से दिव्य प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान विष्णु प्रकट हो गए। चतुर्भुज रूप धारी भगवान विष्णु को देखकर वसुदेव और देवकी उनकी स्तुति करने लगे। तभी भगवान ने कहा कि “मैं ही आपकी आठवीं संतान के रूप में कंस का काल बनकर आया हूं। आप मुझे एक शिशु के रूप में अपने मित्र नंद जी के यहां छोड़ आइए और वहां उनकी पत्नी यशोदा ने एक बालिका को जन्म दिया है उसे लेकर पुनः कारागृह में आ जाइए।” इतना कहते ही भगवान ने शुभ रोहिणी नक्षत्र में कंस के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। ठीक उसी समय गोकुल में नंद की पत्नी यशोदा ने भी एक कन्या को जन्म दिया। 


तभी कारागार के जागते पहरेदार सो गए और कारागृह के दरवाजे अपने आप खुल गए। वासुदेव जी बालक को लेकर गोकुल की ओर चल पड़े। काली रात, आंधी तूफान और भारी वर्षा के बाद उफनती यमुना को पार कर वासुदेव जी नंद जी के घर पहुंचे और उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के पास सुलाकर कन्या को उठा लिया और मथुरा लौट आए। भगवान की माया से कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए और सिपाहियों की नींद खुल गई। जागते ही पहरेदारों ने कंस को वासुदेव-देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना दी। 


कंस तुरंत बंदी गृह में आया और हर बार की तरह इस बार भी उसने नवजात शिशु को अपने हाथ में उठाकर धरती पर पटक कर मारना चाहा, लेकिन तभी वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में चली गई और  कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो पैदा हो चुका है और सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया है। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने विभिन्न बाल लीलाओं को करते हुए युवावस्था में मथुरा पहुंचते ही कंस का वध कर दिया। 


कहा जाता है कि श्री कृष्ण चंद्रवंशी थे और चंद्रदेव उनके पूर्वज थे। वहीं बुध चंद्रमा के पुत्र हैं। इसी कारण चंद्रवंश में जन्म लेने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने बुधवार का दिन और आधी रात का समय चुना।

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वरुथिनी एकादशी की तिथि

हिंदू धर्म में सभी एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। हर महीने में दो एकादशी की तिथियां आती हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है।

कालाष्टमी अप्रैल 2025 में कब है

हिंदू पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा की जाती है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा का संचार होता है।

वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा

हिंदू धर्म में एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना विशेष महत्व होता है। इन्हीं में से एक है वरुथिनी एकादशी, जो वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।

अप्रैल 2025 में कृष्ण जन्माष्टमी कब है

हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ बड़े श्रद्धा और पवित्र भाव के साथ मनाया जाता है। वैसे तो श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी भाद्रपद मास में मनाई जाती है, लेकिन हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में भी यह पर्व मनाया जाता है।

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