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माता जानकी के जन्म से जुड़ी कथा

माता जानकी के जन्म से जुड़ी कथा

Mata Janki Katha: माता सीता का जन्म कहां हुआ था? जानें मां जानकी के जन्म से जुड़ी कथा


माता जानकी का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ था, जब राजा जनक ने एक दिन खेत जोतते समय एक कन्या को पाया। उन्होंने उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और उसका पालन-पोषण किया।
हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता जयंती मनाई जाती है, जिसे सीता अष्टमी और जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 2025 में जानकी जयंती 21 फरवरी को मनाई जाएगी। इस दिन माता सीता के जन्म का स्मरण किया जाता है, जो भगवान राम की पत्नी और मिथिला की राजकुमारी थीं।


जानकी जयंती 2025 कब है? 


पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 20 फरवरी को प्रातः 9 बजकर 58 मिनट पर होगी, जो 21 फरवरी को प्रातः 11 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। इसलिए जानकी जयंती अर्थात् माँ सीता का जन्मदिन 21 फरवरी 2025 को गुरुवार के दिन मनाया जाएगा।


नेपाल के जनकपुर में स्थित है माता जानकी का मंदिर 


नेपाल के जनकपुर में स्थित जानकी मंदिर माता सीता को समर्पित है, जो उनके जन्मस्थान के रूप में माना जाता है। यह मंदिर नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थित है, जिसे मिथिला के नाम से भी जाना जाता है। जनकपुर का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में किया गया है और यहाँ के लोग माता सीता को जानकी देवी और माँ जानकी के नाम से पूजते हैं।


माता जानकी के जन्म से जुड़ी कथा


माता जानकी के जन्म से जुड़ी तीन कथाएँ अत्यंत प्रचलित हैं, जिनमें वाल्मीकि रामायण की कथा सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय मानी जाती है। आइए तीनों कथाओं को विस्तार से जानें।

1. पहली कथा: वाल्मीकि रामायण के अनुसार, मिथिला में एक समय अकाल पड़ा था, जिससे राजा जनक का संपूर्ण राज्य जल के अभाव में मरुस्थल बन गया था। राजा जनक ने अपनी प्रजा की सहायता के लिए अपना कोष खोल दिया। ऋषियों ने राजा जनक को सलाह दी कि वे स्वर्ण हल से खेत जोतें तो इंद्रदेव की कृपा उनके राज्य पर होगी। राजा जनक ने ऐसा ही किया और जब वे हल से खेत जोत रहे थे, तब उनका हल एक मंजूषा से टकराया। उस मंजूषा को खोलने पर उन्हें एक सुंदर कन्या मिली, जिसका नाम सीता रखा गया। 

राजा जनक की उस समय कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने उस कन्या को गोद ले लिया। माता सीता को जानकी जी, मैथिली और भूमिजा के नाम से भी पुकारा जाता है। भूमि से जन्म लेने के कारण उनका नाम भूमिजा पड़ा। कहा जाता है कि सीता जी के प्रकट होते ही मिथिला राज्य में प्रचुर वर्षा हुई और वहाँ का अकाल समाप्त हो गया।

2. दूसरी कथा: ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार, सीता जी वेदवती नामक एक स्त्री का पुनर्जन्म थीं, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वेदवती ने भगवान विष्णु को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक दिन रावण ने वेदवती को देखा और मोहित हो गया। रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने का प्रस्ताव दिया, किंतु वेदवती ने स्पष्ट मना कर दिया। रावण अस्वीकृति सुनकर क्रोधित हो गया और वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा। 

वेदवती ने स्वयं को भस्म कर लिया और रावण को शाप दिया कि वह अगले जन्म में उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। तत्पश्चात् मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया, किंतु रावण ने उसे सागर में प्रक्षिप्त कर दिया। सागर की देवी वरुणी ने उस कन्या को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया, जिन्होंने उसे राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया। राजा जनक ने माता सीता का लालन-पालन किया और उनका विवाह श्रीराम से हुआ। वनवास के दौरान रावण ने माता सीता का अपहरण किया। तत्पश्चात् श्रीराम ने रावण का वध किया और इस प्रकार माता सीता रावण के वध का कारण बनीं।

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भगवान राम और माता शबरी के बीच का संवाद

जब बरसों के इंतजार के बाद श्रीराम शबरी की कुटिया में पहुंचे, तो उनके बीच एक अनोखा संवाद हुआ।

शबरी जयंती क्यों मनाई जाती है?

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है, जो भगवान राम और उनकी भक्त शबरी के बीच के पवित्र बंधन का प्रतीक है।

शबरी जंयती की पूजा विधि

शबरी जयंती सनातन धर्म में महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। हर साल माता शबरी के जन्मोत्सव के रूप में शबरी जयंती मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शबरी जयंती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है।

करवा चौथ व्रत कथा

सुहागिन महिलाओं और अविवाहित लड़कियों के लिए करवा चौथ का व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

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