मध्य प्रदेश में कई मंदिर हैं जो चमत्कारी और सिद्ध माने जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे मंदिर भी प्रसिद्ध हुए जो अपनी किवंदतियों और स्थापत्य कला के लिए पहचाने जाने लगे। ऐसा ही एक मंदिर मध्यप्रदेश के उत्तर में स्थित ग्वालियर शहर में है। वही ग्वालियर जो राज्य के पर्यटन मानचित्र पर अपना विशेष स्थान भी रखता है। इतिहास की पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि ग्वालियर गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, तोमर तथा बघेलों की राजधानी रहा है। ग्वालियर को गालव ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है। यहां एक ऐसा मंदिर मौजूद है जो सास-बहु के रिश्ते से जाना जाता है। हम बात कर रहे हैं सास-बहु मंदिर की जिसके बारे में कई किवंदतियां है। माना जाता है कि इस मंदिर को पहले सहस्त्रबाहु मंदिर के नाम से जाना जाता था और यह भगवान विष्णु को समर्पित था। मंदिर का निर्माण कच्छपघात वंश के राजा महिपाल ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। आईये जानते हैं इस मंदिर के बारे में विस्तार से।
सास-बहू मंदिर को लेकर कई रोचक कहानियां सुनने को मिलती हैं, जो इसके रहस्य और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाती हैं। मंदिर की एक लोकप्रिय व्याख्या से पता चलता है कि यह सास और बहू के बीच के रिश्ते का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर का बड़ा आकार सास का प्रतीक है, तो वहीं छोटा मंदिर बहू का प्रतिनिधित्व करता है। यह पारिवारिक रिश्तों में सामंजस्य और दोनों के बीच शाश्वत बंधन के महत्व को दर्शाता है। हालांकि, मंदिर की कथा अन्य दिलचस्प कहानियों से भी जुड़ी हुई है।
एक किंवदंती में कहा गया है कि राजा कीर्ति सिंह ने अपनी सास और पत्नी के सम्मान में मंदिर का निर्माण कराया था, जो उनके प्रति उनके सम्मान और भक्ति का प्रतीक था।
दरअसल, भगवान विष्णु के मंदिर का निर्माण पहले किया गया था, इसलिए इसका नाम सहस्त्रबाहु मंदिर रखा गया, जिसका अर्थ है हजारों भुजाओं वाला जो भगवान विष्णु का पर्यायवाची है। हालांकि, बाद में जुड़वां मंदिरों को सहस्त्रबाहु कहा जाने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता गया, नाम में बदलाव होते गए। समय के साथ इसे लोग सास-बहू मंदिर के नाम से बुलाने लगे। सास-बहू मंदिर पांच छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। सास मंदिर में एक तोरणद्वार है। इसके तीन दरवाजे तीन दिशाओं की ओर हैं, जबकि चौथा दरवाजा एक ऐसे कमरे में स्थित है जहां लोग नहीं जा सकते। मंदिर के प्रवेश द्वार पर, देवी सरस्वती, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की मूर्तियां रखी गई हैं। मंदिर की दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गई है। लेकिन कई आक्रमणों और समय के प्रभाव के कारण, मंदिर के कुछ हिस्से खंडहर में तबदील हो गए हैं।
ग्वालियर किला परिसर के भीतर स्थित सास-बहू मंदिर देखने लायक है। यह 11वीं शताब्दी की अनुकरणीय शिल्प कौशल और वास्तुशिल्प कुशलता को प्रदर्शित करता है। जटिल मूर्तियां, नाजुक रूपांकन और अलंकृत स्तंभ आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, और उन्हें कलात्मक प्रतिभा के युग में ले जाते हैं। बलुआ पत्थर से निर्मित, यह मंदिर भव्यता का एहसास कराता है, जो इसकी पवित्र दीवारों के भीतर पैर रखने वाले लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
दीवार के मलबे से अपंग महिला की प्रतिमा सबसे ज्यादा दुर्लभ है। जानकारों का कहना है कि इस शैली में प्रतिमा कम ही देखने को मिलती हैं। प्रतिमा के दुर्लभ होने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसका दायां हाथ 16 सेमी और बायां हाथ 13।5 सेमी का है। इससे पता चलता है कि बाएं के मुकाबले सीधा हाथ ज्यादा शक्तिशाली होता है।
जानकारों की मानें तो ग्वालियर फोर्ट पर सहस्त्रबाहु मंदिर का निर्माण 11वीं-12वीं शताब्दी के बीच हुआ। इसका निर्माण राजा पदमपाल के समय शुरू हुआ। इसे उनके भाई राजा महिपाल ने पूरा कराया। नागर शैली का यह मंदिर करीब 20 वर्ष में बनकर तैयार हुआ।
ग्वालियर में सास-बहू मंदिर का दौरा पूरे साल किया जा सकता है, क्योंकि यह मौसम की परवाह किए बिना एक शांत और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। हालाँकि, अक्टूबर से मार्च के ठंडे महीनों के दौरान अपनी यात्रा की योजना बनाने की सलाह दी जाती है जब मौसम सुहावना होता है और मंदिर परिसर की खोज के लिए अनुकूल होता है।
सास-बहू मंदिर में आने वाले आगंतुक अपने अनुभव को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न सुविधाओं और सुख-सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। मंदिर परिसर में स्वच्छ शौचालय, आराम करने के लिए बैठने की जगह और जूते रखने के लिए निर्दिष्ट स्थान उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त, आगंतुकों को मंदिर में जाने और इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को समझने में मदद करने के लिए सूचना बोर्ड और गाइड उपलब्ध हैं।
हवाई मार्ग द्वारा: सास बहु मंदिर ग्वालियर में स्थित है और यहां का निकटतम हवाई अड्डा राजमाता विजया राजे सिंधिया एयर टर्मिनल ग्वालियर ही है, ये शहर के केंद्र से लगभग 12 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से, मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या ऐप-आधारित सवारी-साझाकरण सेवाओं का उपयोग भी कर सकते हैं।
ट्रेन द्वारा: मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन ग्वालियर जंक्शन रेलवे स्टेशन है जो भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन से, मंदिर तक पहुँचने के लिए टैक्सी, ऑटो-रिक्शा किराए पर ले सकते हैं या फिर लोकल ट्रांसपोर्ट का भी उपयोग कर सकते हैं।
सड़क मार्ग: ग्वालियर का नाम मध्यप्रदेश के बड़े शहरों में शुमार होता है इसलिए यहां कि सड़क कनेक्टविटी देश के सभी बड़े शहरों से बेहतरीन है। सास-बहु मंदिर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग का उपयोग भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए नेशनल और स्टेट हाइवे का उपयोग कर सरलता से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
ग्वालियर से लगभग 60 किलोमीटर दूर दक्षिण में रिहंद तथा पार्वती नदियों के मिलान बिंदु पर स्थित गांव पवाया भी देखने योग्य है। इसका पूर्व नाम पद्मावती था जो तीन−चार शताब्दी में नाग राजाओं की राजधानी थी। संस्कृत के उद्भट कवि भवभूति ने अपने काव्य में इसी पद्मावत का चित्रमय वर्णन किया है। पवाया में पहली, दूसरी व तीसरी शताब्दी तथा उसके बाद के भी तमाम भग्नावशेष देखे जा सकते हैं। ग्वालियर के पास ही स्थित चंदेरी भी अपने मध्यकालीन निर्माणों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का किला, कुशक महल, मंचमनगर और सिंगपुर के महल आदि दर्शनीय हैं। ग्वालियर संभाग ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि आपके पास पर्याप्त समय है तो आप ग्वालियर के आसपास के कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थानों की सैर भी कर सकते हैं।
सास-बहू मंदिर में दर्शन का समय और शुल्क
प्रातः 08:00 बजे से सायं 05:00 बजे तक
प्रवेश शुल्क: शून्य लेकिन ग्वालियर किले में प्रवेश टिकट है।
अवधि: लगभग 30 मिनट
श्याम दर्शन,
जरा दिखा जाओ,
दिल में श्री राम बसे हैं,
संग माता जानकी,
डिम डिम डमरू बजावेला हामार जोगिया
हे हमार जोगिया हो हमार जोगिया
डिमिक डिमिक डमरू कर बाजे,
प्रेम मगन नाचे भोला, भोला,