गोविंद देव जी मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक मंदिर है। जयपुर में स्थित इस मंदिर में दुनिया भर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। बता दें कि यहां ठाकुर जी की कोई साधारण प्रतिमा नहीं है। इस प्रतिमा को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ जी ने बनवाई थी। हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। जयपुर में स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर की खासियत है कि इस मंदिर में कोई शिखर नहीं है। मंदिर में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं है।
धार्मिक मान्यता है कि एक बार भगवान कृष्ण के प्रपौत्र ने अपनी दादी से भगवान कृष्ण के स्वरूप के बारे में पूछा और कहा कि आपने तो भगवान कृष्ण के दर्शन किए थे तो बताइए कि उनका स्वरूप कैसा था? श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ को दादी जैसे-जैसे बताती गई वैसे-वैसे वो प्रतिमा को आकार देते गए। भगवान कृष्ण के स्वरूप को जानने के लिए उन्होंने जिस काले पत्थर पर 3 मूर्तियों का निर्माण किया। पहली मूर्ति में भगवान कृष्ण के मुखारविंद की छवि आई जो आज भी जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर में विराजमान है।
मान्यता के अनुसार माता राधा के चरण बेहद पवित्र हैं और उनके दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है। भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि उन्हें स्वयं राधा रानी के चरण कमलों के दर्शन करने का सौभाग्य नहीं ऐसी मान्यता है कि राधा रानी के चरण कमल बहुत दुर्लभ हैं और श्री कृष्ण हमेशा उनके चरणों को अपने हृदय के पास रखते हैं। इसलिए, उनके चरण हमेशा ढके रहते हैं। कोई भी व्यक्ति उनके चरणों को इतनी आसानी से प्राप्त नहीं कर सकता है। कुछ मंदिरों में जन्माष्टमी पर उनके चरणों को कुछ समय के लिए खुला रखा जाता है।
जयपुर में गोविंद जी मंदिर सिटी पैलेस परिसर के अंदर जलेब चौक के पास स्थित है। यहां सभी साधनों और परिवहन के साधनों द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जयपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन है। सिटी पैलेस तक पहुंचने के लिए रेलवे स्टेशन से टैक्सी ले सकते हैं।
कुंभ मेला भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह आयोजन हिंदू धर्म की गहराई और आस्था का प्रतीक है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।
सनातन हिंदू धर्म में अग्नि को बेहद ही शुद्ध माना गया है। यही कारण है कि पूजा के अंत में जलती हुई आरती या दीपक की लौ को आराध्य देव के सामने एक विशेष विधि से घुमाया जाता है।
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और आस्था का महापर्व है। जिसका इतिहास 850 वर्ष पुराना है। इसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा मानी जाती है, लेकिन इसकी कथा समुद्र मंथन की पौराणिक घटना से जुड़ी है।
सनातन धर्म में कुंभ मेला सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में एक माना जाता है। ये प्रयागराज समेत हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।