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ना जाने आज क्यो फिर से, तुम्हारी याद आई है (Na Jaane Aaj Kyu Fir Se Tumhari Yaad Aayi Hai)

ना जाने आज क्यो फिर से, तुम्हारी याद आई है (Na Jaane Aaj Kyu Fir Se Tumhari Yaad Aayi Hai)

ना जाने आज क्यों फिर से,

तुम्हारी याद आई है ॥


दोहा – खाक मुझमें कमाल रखा है,

दाता तूने संभाल रखा है,

मेरे ऐबों पे डालकर पर्दा,

मुझे अच्छों में डाल रखा है।

मैं तो कब का मिट गया होता,

तेरी रहमत ने पाल रखा है,

मुझसे नाता जोड़ के तूने,

हर मुसीबत को टाल रखा है ॥


सम्भालों दास को दाता,

मेरी सुध क्यों भुलाई है,

ना जाने आज क्यों फिर से,

तुम्हारी याद आई है ॥


नज़र क्या तुमसे टकराई,

जो नाजुक दिल लुटा बैठे,

इशारा क्या किया तूने,

जो हम खुद को भुला बैठे,

जो हम खुद को भुला बैठे,

मुकर जाओगे वादे से,

तो भक्तो की दुहाई है,

ना जाने आज क्यो फिर से,

तुम्हारी याद आई है ॥


जमाना रूठ जाए पर,

ना रूठो तुम मेरे दाता,

पुराना जन्म जन्मो का,

कन्हैया आपसे नाता,

कन्हैया आपसे नाता,

निगाहें याद से तेरी,

सितमगर बाज आई है,

ना जाने आज क्यो फिर से,

तुम्हारी याद आई है ॥


सबर की हो गई हद अब,

सहा जाता नहीं प्यारे,

नज़र दिलदार से ज्यादा,

कोई आता नहीं प्यारे,

कोई आता नहीं प्यारे,

तुम्हारे द्वार पे ‘काशी’,

ने भी पलकें बिछाई है,

ना जाने आज क्यो फिर से,

तुम्हारी याद आई है ॥


सम्भालों दास को दाता,

मेरी सुध क्यों भुलाई है,

ना जाने आज क्यो फिर से,

तुम्हारी याद आई है ॥

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महाकुंभ में करने योग्य मंत्र जाप

प्रयागराज का महाकुंभ फिलहाल पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है। महाकुंभ में इस बार भी देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है।

अमृत स्नान पर अद्भुत संयोग

पंचांग के अनुसार, इस साल मौनी अमावस्या बुधवार, 29 जनवरी 2025 को है। बता दें कि माघ माह की अमावस्या को ही मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है। इसे माघी अमावस्या भी कहा जाता है।

सिंहस्थ कुंभ कहां लगेगा

फिलहाल, जोर-शोर से महाकुंभ चल रहा है। इसमें नागा साधु के अलावा विभिन्न प्रकार के साधु-संन्यासी लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। देश के कोने-कोने से यहां साधु-संत पहुंचे हैं।

नागा साधु क्यों नहीं नहाते

नागा साधु एक विशेष प्रकार के संन्यासी होते हैं, जो अपनी साधना और तपस्या के लिए कठोर जीवनशैली अपनाते हैं। जबकि वे कुंभ मेले जैसे विशेष अवसरों पर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, सामान्य साधु की तरह वे रोज नहाने पर विश्वास नहीं करते।

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