ओ शंकर मेरे,
कब होंगे दर्शन तेरे,
जीवन पथ पर शाम सवेरे,
जीवन पथ पर शाम सवेरे,
छाए है घनघोर अँधेरे,
ओ शंकर मेरें,
कब होंगे दर्शन तेरे ॥
मैं मूरख तू अंतर्यामी,
मैं मूरख तू अंतर्यामी,
मैं सेवक तू मेरा स्वामी,
मैं सेवक तू मेरा स्वामी,
काहे मुझसे नाता तोड़ा,
मन छोड़ा मंदिर भी छोड़ा,
कितनी दूर लगाये तूने,
जा कैलाश पे डेरे,
ओ शंकर मेरें,
कब होंगे दर्शन तेरे ॥
तेरे द्वार पे ज्योत जगाते,
तेरे द्वार पे ज्योत जगाते,
युग बीते तेरे गुण गाते,
युग बीते तेरे गुण गाते,
ना मांगू मैं हीरे मोती,
मांगू बस थोड़ी सी ज्योति,
खाली हाथ न जाऊँगा मैं,
दाता द्वार से तेरे,
ओ शंकर मेरें,
कब होंगे दर्शन तेरे ॥
ओ शंकर मेरे,
कब होंगे दर्शन तेरे,
जीवन पथ पर शाम सवेरे,
जीवन पथ पर शाम सवेरे,
छाए है घनघोर अँधेरे,
ओ शंकर मेरें,
कब होंगे दर्शन तेरे ॥
हिंदू धर्म में पौष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, रुक्मिणी अष्टमी पर ही द्वापर युग में विदर्भ के महाराज भीष्मक के यहां देवी रुक्मिणी जन्मी थीं।
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह साल का 10 वां, महीना होता है जो मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद शुरू होता है। वैदिक पंचाग के अनुसार इस साल पौष माह 16 दिसंबर से प्रारंभ हो चुकी है।
हिंदू पंचांग में दसवें माह को पौष कहते हैं। इस बार पौष मास की शुरुआत 16 दिसंबर से हो गई है जो 13 जनवरी तक रहेगी। इस मास में हेमंत ऋतु का प्रभाव रहता है।
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष के बाद पौष का महीना आता है। ये हिंदू कैलेंडर का 10वां महीना होता है। पौष के महीने में सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।