यही आशा लेकर आती हूँ,
हर बार तुम्हारे मंदिर में,
कभी नेह की होगी मुझपर भी,
बौछार तुम्हारे मंदिर में,
बौछार तुम्हारे मंदिर में ।
हे राधेश्वर गोपीवल्लभ तुम,
त्रिभुवन के आकर्षण हो,
पट तो हर दिन खुलते लेकिन,
जब भाग्य खुले तब दर्शन हो ।
होता है तुम्हारा नित नूतन,
शृंगार तुम्हारे मंदिर में,
कभी नेह की होगी मुझ पर भी,
बौछार तुम्हारे मंदिर में,
बौछार तुम्हारे मंदिर में ।
हे मुरलीधर कृष्ण-कन्हाई,
राधा रास बिहारी,
दर्शन भिक्षा मांग रहे है,
नैना दर्श भिखारी
राधा भी नहीं, मीरा भी नहीं,
मैं ललिता हूँ न विशाखा हूँ,
हे बृजराज तुम्हारे बृजत्रु की,
मैं कोमल सी इक शाखा हूँ,
इतना ही मिला आने का,
अधिकार तुम्हारे मंदिर में,
कभी नेह की होगी मुझ पर भी,
बौछार तुम्हारे मंदिर में,
बौछार तुम्हारे मंदिर में ।
राधा प्रियम, सरस सुन्दर, प्रेम धामम,
गोपी प्रियम, मदन जीत, नैनाभी रामम ।
योगी प्रियम, तव नवोदित, बाल चन्द्रम,
सर्वा प्रियम, सकल मंगल, मूल शामम ।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥