Chaitra Navratri 2025: नवरात्रि में क्यों नहीं खाना चाहिए लहसुन-प्याज, जानिए इसके पीछे की वजह
माता के भक्तों का प्रिय त्योहार चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से शुरू हो रहा है। नवरात्रि के नौ दिनों को तीन मूल गुणों तमस, रजस और सत्व के अनुसार अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। यही वजह है कि लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए 9 दिनों तक व्रत रखते हैं और पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं। मां दुर्गा की पूजा में नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है, वरना पूजा निरर्थक हो जाती है।
जो लोग नवरात्रि में व्रत रखते हैं। वे व्रत के दौरान खाए जाने वाले फल या अनाज का ही सेवन करते हैं, लेकिन जो लोग व्रत नहीं रखते हैं वे भी इन दिनों में मांस, शराब और प्याज-लहसुन आदि से दूर रहते हैं। जानिए नवरात्रि में क्यों नहीं खाया जाता लहसुन और प्याज। नवरात्रि में कैसा भोजन करना चाहिए? शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति का मन और मस्तिष्क उसके द्वारा खाए जाने वाले भोजन के अनुसार ही कार्य करना शुरू करता है।
भोजन को 3 श्रेणी में बांटा गया है
भोजन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, सात्विक, राजसिक और उसके बाद आता है तामसिक।
- सात्विक - संयम, मन की शांति और पवित्रता
- राजसिक - जुनून और खुशी
- तामसिक - अहंकार, क्रोध और विनाश
नवरात्रि में लहसुन और प्याज क्यों नहीं खाना चाहिए?
लहसुन और प्याज तामसिक प्रवृत्ति के होते हैं। तामसिक भोजन जीवन में जड़ता, भ्रम, बेचैनी, क्रोध, वासना और अहंकार की भावना पैदा करता है। अगर लहसुन और प्याज का सेवन किया जाए तो नवरात्रि के 9 दिनों में व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रख पाता और सच्चे मन से मां की पूजा नहीं कर पाता, उसकी पूजा फलीभूत नहीं होती। यही वजह है कि नवरात्रि में लहसुन और प्याज युक्त भोजन करना वर्जित है।
नवरात्रि में क्या खाएं
नवरात्रि व्रत के दौरान आप साबूदाना, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, समा के चावल खा सकते हैं। व्रत के दौरान केला, अंगूर, संतरा, पपीता, खरबूजा, सभी तरह के फलों का सेवन किया जा सकता है। ध्यान रखें कि अगर आप व्रत कर रहे हैं तो ये चीजें एक बार ही खाएं।
श्री राम का जन्म चैत्र नवरात्रि नवमी तिथि के दिन अभिजित नक्षत्र में दोपहर बारह बजे के बाद हुआ था। इस दिन विधिपूर्वक भगवान राम की पूजा की जाती है। इसलिए, रामनवमी का दिन भगवान राम की पूजा के लिए समर्पित होता है।
हिंदू धर्म में रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। बहनें इस पर्व का सालभर बेसब्री से इंतजार करती हैं। इस दिन वे अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, जबकि भाई जीवनभर बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शिष्य अपने गुरुओं की पूजा-अर्चना करते हैं। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
साल आषाढ़ माह में ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। यात्रा के दौरान तीन रथों पर भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र विराजमान होते हैं।