लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर से नहाय खाय के साथ हो चुकी है। यह पर्व दिवाली के बाद मनाया जाता है और खासकर उत्तर भारत में इसका विशेष महत्व है। छठ पर्व के दूसरे दिन पवित्र रूप से मिट्टी के चूल्हे पर खरना का प्रसाद तैयार किया जाता है। व्रती इस पर्व में सूर्य देव और छठी मां की पूजा करते हैं और 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। आइए जानते हैं खरना पूजा के दौरान किन गलतियों से बचना चाहिए।
छठ पूजा के दूसरे दिन यानी खरना के दौरान कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना चाहिए।
तेज आवाज नहीं होनी चाहिए
छठ पर्व में शुद्धता का विशेष महत्व है। अधिकतर छठ व्रती खरना का प्रसाद मिट्टी के बने नये चूल्हे पर ही बनाती हैं। खरना पूजा के समय और प्रसाद ग्रहण करते समय बाहर से तेज आवाज नहीं आना चाहिए। इस दौरान घर से सदस्यों को तेज आवाज में बोलने या कोई अन्य तेज आवाज का काम करने से मना किया जाता है। मान्यता है कि खरना पूजा के समय या खरना प्रसाद ग्रहण करते समय तेज आवाज सुनने या शोर-शराबा व्रत में बाधा उत्पन्न करती है। मान्यता यह भी है प्रसाद ग्रहण करते समय व्रती के कान में तेज आवाज आने से वह तत्काल भोजन छोड़ देती हैं। इसलिए तेज आवाज नहीं हो इसका खास ध्यान रखा जाता है।
व्रती के लिए सबसे कठिन है व्रत
नहाय खाय के साथ ही व्रती की परीक्षा शुरू होती है। नहाय खाय में शुद्ध-सात्विक भोजन सेंधा नमक युक्त भोजन किया जाता है। खरना के दिन, मतलब सूर्यादय से शाम में पूजा होने तक जल भी ग्रहण नहीं करना होता है। खरना पूजा 06 नवंबर को है। सूर्यास्त के बाद शाम में भोजन ग्रहण करने से पहले एकाग्रता से छठी मईया का पूजन किया जाता है। छठी मईया का विधिवत पूजन यानी दीप प्रज्वलन, पुष्प अर्पण, सिंदूर अर्पण इत्यादि क्रम से पूजन किया जाता है। इसके बाद मीठा भोजन ग्रहण करना है। मुख्यतः खीर, घी लगी रोटी अथवा घी में तली पूड़ी एवं फल ग्रहण किया जाता है। इस दिन व्रती यही सब भोजन करते हैं। पूजा के समय उसी कमरे में खाने के साथ जो पानी पी सके, उसके बाद सुबह के अंतिम अर्घ्य के बाद ही अन्न-जल ग्रहण का विकल्प होता है। मतलब, 06 नवंबर को एक बार शाम में मीठा खाना और पानी। फिर, सीधे 08 नवंबर को अर्घ्य देने तक निर्जला उपवास।
साफ-सफाई पर दें ध्यान
पूजा स्थल और घर की साफ-सफाई विशेष रूप से करें। रोजाना सुबह जल्दी स्नान करें और व्रती महिलाएं नारंगी सिन्दूर लगाएं, जो इस पूजा का एक मुख्य संस्कार है। व्रती महिला या पुरुष को खुद को शारीरिक रूप से पूरी तरह से पवित्र रखना चाहिए।
साधारण नमक का उपयोग वर्जित
प्रसाद बनाते समय साधारण नमक का उपयोग न करें। सेंधा नमक का ही उपयोग करें क्योंकि इसे सात्विक और शुद्ध माना जाता है।
सूर्य और छठी माता को लगाएं भोग
प्रसाद को सबसे पहले सूर्य देव और छठी माता को अर्पित करना चाहिए, इसके बाद ही व्रती और परिवार के अन्य सदस्य इसे ग्रहण कर सकते हैं। इस महापर्व के दौरान इन नियमों का पालन करने से न केवल व्रत का लाभ मिलता है, बल्कि घर-परिवार में खुशहाली भी बनी रहती है।
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष के बाद पौष का महीना आता है। ये हिंदू कैलेंडर का 10वां महीना होता है। पौष के महीने में सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
प्रत्येक साल में एक दिन सबसे छोटा होता है। दरअसल, इस दिन सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में अपने चरम बिंदु पर होता है। ज्योतिष के अनुसार साल के सबसे छोटे दिन तक भगवान सूर्य धनु राशि में प्रवेश कर चुके होते हैं।
हिंदू धर्म में वनदेवी को जंगलों, वनस्पतियों, और वन्य जीवों की अधिष्ठात्री माना जाता है। वे प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन का प्रतीक हैं। इतना ही नहीं, कई आदिवासी समुदायों में वनदेवी को आराध्य देवी के रूप में पूजा जाता है।
हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं के एक विशेष स्थान और महत्व है। सभी देवी-देवताओं की पूजा भी विशेष रूप से करने का विधान हैं। वहीं देवी-देवताओं के साथ-साथ पंचतत्व की पूजा-अर्चना भी विशेष रूप की जाती है।