बिहार या कहें खासकर भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लोगों के लिए छठ पूजा सदियों से चली आ रही एक ऐसी प्रथा है जिसमें भारतीय संस्कृति और आपसी प्रेम भाव का बोध होता है। “छठ” दरअसल आस्था का एक ऐसा पर्व है जिसमें शुद्धता, पवित्रता और प्रकृति की उपासना की जाती है। छठ पर्व करने वाले लोग यही कहते हैं कि हम प्रकृति को धन्यवाद देते हैं। व्रतियों और उनके परिवारों के लिए छठ पूजा की तैयारियों में ना सिर्फ स्वच्छता बल्कि नए कपड़ों, पारंपरिक आभूषणों और सजावट का भी खास ध्यान रखा जाता है।
छठ पूजा में नए वस्त्र धारण करने की परंपरा सदियों पुरानी है। साथ ही इस पर्व में शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है और नए वस्त्र इस परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं। व्रती यानी वे लोग जो उपवास रखते हैं वे विशेष तौर पर नए कपड़े पहनते हैं। यह माना जाता है कि नए कपड़े पहनने से शरीर और मन की शुद्धता बरकरार रहती है जो इस पर्व के लिए अति आवश्यक तत्वों में से एक है।
चूकि, छठ पूजा का हर एक चरण स्वच्छता पर आधारित होता है और नए वस्त्र इस स्वच्छता का प्रमाण होते हैं। इसलिए, अपने सामर्थ्य अनुसार केवल व्रती ही नहीं बल्कि उनके परिवार के सभी सदस्य भी नए- नए वस्त्र पहनते हैं। यह एक सामूहिक परंपरा होती है इसलिए सभी नए वस्त्र धारण करके इस त्योहार का आनंद उठाते हैं।
छठ पूजा के दौरान व्रतियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़ा भी विशेष होता है। मान्यता है कि व्रत के दौरान धारण किया गया कपड़ा 36 घंटे के निर्जला उपवास और पूजा-अर्चना के बाद सिद्ध हो जाता है। यह कपड़ा चमत्कारिक गुणों से भर जाता है और ऐसा कहा जाता है कि इसका प्रयोग करने से व्यक्ति के कई तरह के रोग भी समाप्त हो सकते हैं। खासतौर, पर छठ पर्व की अगली सुबह जब भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है तब व्रती जो अक्सर हमारी नानी, दादी, बड़ी मां, मां, मौसी या बुआ होती हैं वे अपने इसी कपड़े से अपने परिवार जनों का चेहरा पोछती हैं। मान्यता है कि इससे जीवन में कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं।
सोना एक ऐसा धातु है जो सदियों से मनुष्यों के लिए सुख में श्रृंगार का काम करता आया है। इसलिए, छठ पूजा में भी सोने का विशेष महत्व होता है। सोना शुद्धता और सच्चाई का प्रतीक माना जाता है और यह विशेष रूप से सूर्य देवता से जुड़ा हुआ एक बहुमूल्य धातु है, जिसका उल्लेख कई पुराणों में भी मिलता है। चुकी, छठ पूजा सूर्य देव की उपासना का ही महापर्व है इसलिए यहां सोने की उपयोगिता बढ़ जाती है।
सोने को सूर्य देवता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, छठ पूजा में सोना धारण करने की परंपरा सूर्य देवता के प्रति समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक है। सोने की पवित्रता का प्रभाव छठ पूजा के दौरान विशेष रूप से देखा जाता है जहां व्रती और उनके परिजन सोने के आभूषण पहनते हैं। हालांकि, ज्योतिषाचार्य डॉ. राजनाथ झा के अनुसार पर्व और त्योहारों में सोने की उपयोगिता को स्थापित करने में बाजारवाद का भी योगदान है। लेकिन पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार सोना पहनने से सूर्यदेव का आशीर्वाद मिलता है।
छठ पूजा में आलता का विशिष्ट स्थान है। विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं और नवविवाहिताओं के लिए यह पर्व बेहद खास होता है। वे सोलह श्रृंगार के साथ छठ पूजा में भाग लेती हैं। यह नवविवाहिताओं के सोलह श्रृंगार में एक महत्वपूर्ण तत्व है। छठ पूजा में सभी सुहागिन महिलाएं आलता लगाती हैं और अपने पैरों को सजाती हैं। साथ ही, वे नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर भी लगाती हैं जो उनके सुहाग की समृद्धि को दर्शाता है। इसके अलावा आलता का रंग लाल होता है जो परंपरागत रूप से शुभ माना जाता है। बताते चलें कि इस पर्व के दौरान हर एक वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार तत्व व्रती और उनके परिवार के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने का माध्यम बनते हैं।
अपने भगत की,
आँख में आँसू,
कन्हैया कन्हैया पुकारा करेंगे,
लताओं में बृज की गुजारा करेंगे।
कन्हैया ले चल परली पार,
साँवरिया ले चल परली पार,
कन्हैया हर घडी मुझको,
तुम्हारी याद आती है,