विजय का मतलब होता है जीत। अष्ट लक्ष्मी का एक स्वरूप विजय लक्ष्मी, विजया लक्ष्मी या जया लक्ष्मी का भी है जो जीत का ही प्रतीक माना गया है। यह देवी धन और कार्य क्षेत्र में जीत दिलाती है। Bhakt Vatsal की दीपावली पूजन और अष्ट लक्ष्मी के स्वरूपों के वर्णन की कड़ी में यहां जानिए विजयलक्ष्मी के बारे में विस्तार से।
माता लाल साड़ी में एक कमल पर बैठी अष्ट भुजा वाली हैं। उनके हर हाथ में अस्त्र शस्त्र है। मैया का वर्ण गुलाबी आभा वाला है। मैया सुंदर श्रंगार में हैं और हीरे, मोती और रत्न जड़ित स्वर्ण आभूषणों से विभूषित हैं। मैया के हाथों में चक्र, शंख, कमल, तलवार, ढाल, भाल और एक हाथ अभय मुद्रा तो दूसरे में वर मुद्रा है।
“ॐ क्लीं कनकधारायै नम:।”
विजय लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान कमल के फूल पर खड़ी होकर बाहर निकलते हुए बताई गई है। लक्ष्मी जी को श्री, पद्मा, कमला, पद्म प्रिया, पद्ममाला, धर देवी के नाम से भी पूजा जाता है।
>> भय दूर होता है और विजय मिलती है।
>> जीत की देवी हर क्षेत्र में विजय देने वाली है।
>> पारिवारिक सुख में वृद्धि होती है।
>> घर में आनंद की अनुभूति होती है।
>> मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है।
>> घर में सुख-समृद्धि और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
>> घर का वैभव और शांति बढती है।
>> आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
>> उत्तम स्वास्थ्य और सामाजिक मान >> सम्मान में वृद्धि होती है।
>> कारोबार में वृद्धि, नौकरी में तरक्की होती है।
>> शत्रु पर विशेष सफलता प्राप्त होती है।
>> यश, ऐश्वर्य और कार्यों में सफलता हासिल होती है।
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।
मेरे तन में भी राम,
मेरे मन में भी राम,
मेरे तो आधार है,
भोलेनाथ के चरणारविन्द,
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
तेरी होवे जय जयकार,
मेरे उज्जैन के महाकाल,