हिंदू धर्म में भीष्म द्वादशी का काफी महत्व है। यह माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल रविवार, 9 फरवरी 2025 को भीष्म द्वादशी का व्रत रखा जाएगा। भीष्म द्वादशी पर भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान बताया गया है। अष्टमी के दिन भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था। द्वादशी के दिन उनके निमित्त सभी धार्मिक कर्म किए गए थे। यही वजह है कि भीष्म अष्टमी के बाद भीष्म-द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। तो आइए, इस आर्टिकल में भीष्म द्वादशी की पूजा विधि को विस्तार पूर्वक जानते हैं।
इस वर्ष भीष्म द्वादशी 09 फरवरी 2025 को रविवार के दिन मनाई जाएगी।
भीष्म द्वादशी के दिन पूर्वजों का तर्पण करने का विधान बताया गया है। इसके अलावा इस दिन भीष्म पितामह की कथा सुनी जाती है। जो कोई भी व्यक्ति इस दिन सच्ची श्रद्धा और पूरे विधि विधान से इस दिन की पूजा आदि करता है उसके जीवन के सभी कष्ट और परेशानियां दूर होते हैं और साथ ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सही ढंग से किया जाए तो व्यक्ति को इस दिन की पूजा से पितृ दोष जैसे बड़े दोष से भी छुटकारा प्राप्त होता है।
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इसी दिन से व्रतधारी प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करते हैं। इस दिन खरना विशेष महत्व रखता है और इसे एकांत या बंद कमरे में संपन्न किया जाता है।
छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है। जिसे लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन का उद्देश्य मानसिक और शारीरिक शुद्धिकरण है।
छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रमुखता से मनाया जाने वाला पर्व है। जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है।
हमारे देश में छठ पूजा का पर्व सूर्य और छठी मैया की उपासना का प्रमुख पर्व है ये चार दिनों तक चलता है। यह पर्व विशेष तौर पर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई वाले हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है।