हरियाली तीज, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला एक पावन पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां व्रत रखती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं और माता पार्वती व भगवान शिव की विधिवत पूजा करती हैं।
हरियाली तीज की पूजा का आरंभ प्रातःकाल स्नान से होता है। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें, विशेषकर हरे रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। इसके बाद घर के पूजाघर में घी का दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें। संकल्प करते समय मन में श्रद्धा और पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
पूजा स्थल को स्वच्छ जल से धोकर शुद्ध करें। गोबर का लेपन करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि यह धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्रता का प्रतीक है। इसके बाद वहां एक चौकी रखें और उस पर लाल या हरे रंग का कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर मिट्टी या धातु की शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। यदि मूर्ति उपलब्ध न हो तो तस्वीर का भी उपयोग किया जा सकता है। अब शिव-पार्वती का आवाहन करें, यानी उन्हें अपने घर में आमंत्रित करें, यह भावना पूजा की शुरुआत में अत्यंत आवश्यक होती है।
भगवान शिव और माता पार्वती को दूध, दही, शहद, गंगाजल, फूल, बिल्वपत्र, वस्त्र, चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी, सिंदूर और श्रृंगार सामग्री अर्पित करें। माता पार्वती को विशेष रूप से हरी साड़ी और सुहाग की पिटारी अर्पित की जाती है, जिसमें कंघी, काजल, चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर आदि शामिल होते हैं।
पूजा के बाद, सभी व्रती महिलाएं हरियाली तीज की व्रत कथा का श्रवण करती हैं या स्वयं पाठ करती हैं। इस कथा में माता पार्वती के तप और उनके शिव को प्राप्त करने की कथा होती है, जो स्त्रियों को आत्मबल, श्रद्धा और समर्पण की प्रेरणा देती है।
कथा के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। आरती थाली में दीपक, कपूर, फूल और अक्षत रखें और पूरे भाव से आरती करें। इस समय शिव-पार्वती के मंत्रों का उच्चारण करना शुभ फलदायी माना जाता है।
सज धज बैठ्या दादीजी,
लुन राई वारा,
सजधज कर जिस दिन,
मौत की शहजादी आएगी,
सज धज के बैठी है माँ,
लागे सेठानी,
सज रही मेरी अम्बे मैया, सुनहरी गोटे में ।
सुनहरी गोटे में, सुनहरी गोटे में,