होली की पौराणिक कथाएँ

पहली होली भगवान शिव ने खेली थी! जानिए होली से जुड़ी वो पौराणिक कथाएं जो शायद कहीं नहीं सुनी होंगी



होली भारत का एक प्रमुख और रंगों से भरा त्योहार है। लेकिन ये केवल रंगों और उल्लास तक ही सीमित नहीं, होली का एक गहरा धार्मिक और पौराणिक महत्व भी है। इस त्योहार के पीछे कई रोचक कहानियाँ हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रेम व भक्ति की गाथाओं को दर्शाती हैं। इन कथाओं के माध्यम से होली न केवल आनंद का प्रतीक बनती है, बल्कि इससे जुड़ी धार्मिक आस्थाएँ भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

1. संसार की पहली होली: भगवान शिव और कामदेव की कथा


कहते हैं कि संसार की पहली होली भगवान शिव ने खेली थी। जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या में लीन थे, तब असुर ताड़कासुर के वध के लिए देवताओं को उनका ध्यान भंग करना जरूरी लगा। प्रेम के देवता कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया। लेकिन शिव ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आँख खोल दी और कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नी रति अपने पति की मृत्यु से अत्यंत दुखी हुईं और शिव से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। रति की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। इस खुशी में भोज का आयोजन हुआ, जिसमें सभी देवी-देवताओं ने हिस्सा लिया।

कहा जाता है कि इस आयोजन के दौरान—
भगवान शिव ने डमरू बजाया
भगवान विष्णु ने बांसुरी की धुन छेड़ी
और देवी सरस्वती ने वसंत के गीत गाए।
इसी खुशी के उत्सव को बाद में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली के रूप में मनाया जाने लगा।

2. राक्षसी धुंधी की कथा


एक अन्य कथा के अनुसार, राजा पृथु के शासनकाल में एक धुंधी नाम की राक्षसी थी, जो छोटे बच्चों को खा जाती थी। उसे ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता या योद्धा उसे नहीं मार सकता था। लेकिन वह शरारती बच्चों के उत्पात से कमजोर पड़ सकती थी।
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन, नगर के बच्चों ने राक्षसी को भगाने के लिए आग जलाकर शोर मचाया और कीचड़ फेंका। इससे धुंधी परेशान होकर नगर छोड़कर भाग गई। तभी से होलिका दहन और धूलिवंदन की परंपरा की शुरुआत हुई, जिसमें अग्नि में बुराइयों का दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों से उल्लास मनाया जाता है।

3. हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा


यह होली की सबसे प्रचलित कथा है। हिरण्यकश्यप एक असुर राजा था, जिसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त किया था। वह स्वयं को भगवान मानता था और चाहता था कि उसकी प्रजा केवल उसी की पूजा करे। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त थे। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कई यातनाएँ दीं, लेकिन जब वह सफल नहीं हुआ, तो उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को अग्नि में बैठाकर जलाने का आदेश दिया। होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई। तभी से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है।

4. राधा-कृष्ण की होली


ब्रज की होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और इसका संबंध श्रीकृष्ण और राधा रानी से बताया जाता है।
कथा के अनुसार—
बालक श्रीकृष्ण ने अपनी माँ यशोदा से पूछा कि "राधा इतनी गोरी क्यों हैं और मैं इतना काला?" यशोदा माँ ने मजाक में कहा कि "तू राधा के चेहरे पर रंग लगा दे, तो वह भी तेरे जैसी दिखेगी।" इस पर श्रीकृष्ण ने राधा और उनकी सखियों को रंगों से सराबोर कर दिया। तभी से रंग खेलने की परंपरा शुरू हुई और ब्रज की होली विश्व प्रसिद्ध हो गई।

5. पूतना वध की कथा


कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को गोकुल भेजा। वह सुंदर स्त्री का रूप धरकर आई और नवजात कृष्ण को विष पिलाने के लिए अपना स्तनपान कराया। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसकी असलियत पहचान ली और स्तनपान करते-करते ही उसका प्राण हरण कर लिया। कहा जाता है कि पूतना वध फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए इसे बुराई के अंत और खुशी के उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।

6. देवताओं की पहली होली


हरिहर पुराण के अनुसार, धरती पर होली मनाने से पहले देव लोक में होली मनाई जाती थी। भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया और फिर पुनर्जीवित किया, जिसके उपलक्ष्य में देवताओं ने उत्सव मनाया। इस आयोजन में शिव ने डमरू बजाया, विष्णु ने बांसुरी बजाई और सरस्वती ने गीत गाए। तब से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन गीत-संगीत, रंगों और उल्लास से होली मनाने की परंपरा शुरू हुई।

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चाहे सुख हो दुःख हो, एक ही नाम बोलो जी (Chahe Sukh Ho Dukh Ho Ek Hi Naam Bolo Ji)

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एक ही नाम बोलो जी,

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