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हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की विशेष पूजा की जाती है, जो साधकों को विशेष कार्य में सफलता और सिद्धि प्रदान करते हैं। यह हर हिंदू चंद्र माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है। इस दिन, हिंदू भक्त भगवान भैरव की पूजा करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं।
एक वर्ष में कुल 12 कालाष्टमी मनाई जाती हैं, जिनमें से मार्गशीर्ष महीने में पड़ने वाली तिथि सबसे महत्वपूर्ण है और इसे कालभैरव जयंती के रूप में जाना जाता है। कालाष्टमी का व्रत रखने से साधक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सभी प्रकार के दुख-संकट दूर होते हैं। भगवान काल भैरव की पूजा का महत्व धार्मिक मतों में वर्णित है, जिसके अनुसार उनकी पूजा-उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। आइए जानते है नवंबर माह में कालाष्टमी का व्रत कब रखा जाएगा? साथ ही जानेंगे शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
वैदिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरूआत 22 नवंबर को संध्याकाल 06 बजकर 07 मिनट पर होगी जो 23 नवंबर को संध्याकाल 07 बजकर 56 मिनट तक जारी रहेगी। काल भैरव देव की पूजा निशा काल में होती है। अतः 22 नवंबर को कालाष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन मासिक कृष्ण जन्माष्टमी भी मनाई जाएगी।
भाद्रपद माह की कालाष्टमी पर ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का संयोग सुबह 11 बजकर 34 मिनट तक है। इसके बाद इंद्र योग का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा, रवि योग का भी निर्माण हो रहा है। इन योग में भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलेगी। इसके साथ ही सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। इस दिन कई अन्य मंगलकारी योग भी बन रहे हैं।
1. स्नान और शुद्धि: पूजा से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को साफ और शुद्ध करें और भगवान काल भैरव की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
3. दीप प्रज्ज्वलन: दीप प्रज्ज्वलन करें और भगवान काल भैरव को नमस्कार करें।
4. पूजा सामग्री: पूजा सामग्री जैसे कि फूल, अक्षत, चंदन, धूप, और नैवेद्य तैयार करें।
5. पूजा आरंभ: भगवान काल भैरव की पूजा आरंभ करें और उन्हें फूल, अक्षत, चंदन, और धूप अर्पित करें।
6. नैवेद्य: भगवान काल भैरव को नैवेद्य अर्पित करें और उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत रखें।
7. मंत्र जाप: भगवान काल भैरव के मंत्रों का जाप करें और उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना करें।
8. आरती: भगवान काल भैरव की आरती करें और उन्हें नमस्कार करें।
9. समापन: पूजा का समापन करें और भगवान काल भैरव को धन्यवाद दें।
"ॐ काल भैरवाय नमः""ॐ महाकाल भैरवाय नमः""ॐ काल भैरवाय सर्व कार्य सिद्धि करणाय नमः"
1. व्रत के दिन सुबह स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
2. व्रत के दिन केवल एक बार भोजन करें।
3. व्रत के दिन भगवान काल भैरव की पूजा करें और उन्हें नैवेद्य अर्पित करें।
4. व्रत के दिन रात्रि में जागरण करें और भगवान काल भैरव के मंत्रों का जाप करें।
5. व्रत के दिन अगले दिन सुबह भगवान काल भैरव की पूजा करें और व्रत का समापन करें।
कालाष्टमी के दिन कुत्तों को भोजन कराने का भी रिवाज है क्योंकि काले कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना जाता है। कुत्तों को दूध, दही और मिठाई खिलाई जाती है। इस दिन काल भैरव कथा का पाठ करना और भगवान शिव को समर्पित मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है।
'आदित्य पुराण' में कालाष्टमी की महिमा का वर्णन किया गया है । कालाष्टमी पर पूजा के मुख्य देवता भगवान काल भैरव हैं जिन्हें भगवान शिव का एक रूप माना जाता है। हिंदी में 'काल' शब्द का अर्थ 'समय' होता है जबकि 'भैरव' का अर्थ 'शिव का स्वरूप' होता है। इसलिए काल भैरव को 'समय का देवता' भी कहा जाता है और भगवान शिव के अनुयायी पूरी श्रद्धा के साथ उनकी पूजा करते हैं। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच विवाद के दौरान ब्रह्मा की एक बात से भगवान शिव क्रोधित हो गए थे। तब उन्होंने 'महाकालेश्वर' का रूप धारण किया और भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया।
तब से देवता और मनुष्य भगवान शिव के इस रूप की पूजा 'काल भैरव' के रूप में करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो लोग कालाष्टमी के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें भगवान शिव का भरपूर आशीर्वाद मिलता है। यह भी एक लोकप्रिय मान्यता है कि इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट, दर्द और नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं।
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