हर साल बैंगन छठ या चंपा षष्ठी का यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इसे बैंगन छठ के नाम से भी जानते हैं। दरअसल, इस पूजा में बैंगन चढ़ाते हैं इसलिए इसे बैंगन छठ कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव के खंडोबा स्वरूप की पूजा करते हैं। बैंगन छठ के दिन भगवान शिव की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। साथ ही इस दिन की पूजा करते समय शिवलिंग पर बैंगन और बाजरा भी चढ़ाने की प्रथा है। तो आइए इस आलेख में विस्तार से इसके बारे में जानते हैं।
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया गया है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से भक्तों के सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं और इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन जो कोई भी इंसान सच्चे मन से भगवान भोलेनाथ का ध्यान और पूजा करता है उनके सभी बिगड़े काम बन जाते हैं और उनकी जीवन में ख़ुशियाँ आती है।
चंपा छठ व्रत के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार बताया जाता है कि एक समय दो राक्षस भाई हुआ करते थे, मल्ला और मानी। दोनों राक्षस भाइयों ने धरती वासियों, संत, देवताओं सभी को परेशान कर दिया था। राक्षसों के आतंक से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे, लेकिन भगवान विष्णु ने उनकी मदद करने से इंकार कर दिया। तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास मदद मांगने पहुंचे, लेकिन ब्रह्मा जी ने भी उन सभी की मदद करने से मना कर दिया।
अंत में सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगने पहुंचे और उन दोनों राक्षसों की पूरी कहानी भगवान शिव से कह सुनाई। मानी और मल्ला को मारने के लिए भगवान शिव ने एक बदबूदार भयानक योद्धा खंडोबा का रूप धारण किया। यह योद्धा सोने और सूरज की तरह चमकदार प्रतीत हो रहा था। इसके अलावा इस योद्धा ने अपना पूरा चेहरा हल्दी से ढका हुआ था। इसके बाद भगवान शिव दोनों राक्षसों से युद्ध करने पहुंचे। जब मानी मरने वाला था तब उसने अपना सफेद घोड़ा खंडोबा को दे दिया और उनसे माफी मांगी और खंडोबा से वर भी मांगा कि जहां भी भगवान शिव की पूजा होती है वहां उसकी भी मूर्ति होगी।
भगवान शिव ने मानी के इस वर को मान लिया। ऐसे में अब मानी एक देवता के रूप में भगवान शिव के साथ हर मंदिर में पूजा जाता है। इसके बाद दूसरा राक्षस मल्ला भी माफी मांगते हुए वर मांगने लगा। मल्ला ने कहा कि उसे दुनिया का पूरी तरह से विनाश का वरदान चाहिए। यह सुनकर भगवान शिव ने उसे श्राप दिया और उसकी गर्दन काटकर कहा कि अब से जो भी खंडोबा के मंदिर में आएगा उन भक्तों के पैरों से मल्ला का सिर कुचला जाएगा।
ॐ मार्तंडाय मल्लहारी नमो नमः॥
सनातन धर्म में सप्ताह के हर दिन को किसी न किसी देवता को समर्पित माना गया है। गुरुवार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का दिन है।
शास्त्रकार कहते हैं “मननात् त्रायते इति मंत्रः” अर्थात मनन करने पर जो त्राण दे या रक्षा करे वही मंत्र होता है। धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं।
मंत्रों के कई प्रकार होते हैं, जरूरत के हिसाब से इन मंत्रों का उपयोग किया जाता है। मंत्रों के प्रकार और उनके उपयोग से होने लाभों पर नज़र डालें तो आप पाएंगे ये विभिन्न रूपों में हैं।
माता लक्ष्मी, धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी, भक्तों के जीवन में सुख-शांति और वैभव लाने वाली हैं। उनकी पूजा-वंदना से सभी तरह की आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है।