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बैंगन छठ की कहानी क्या है

बैंगन छठ की कहानी क्या है

भगवान शिव का योद्धा अवतार माना जाता है खंडोबा, जानें बैंगन चढ़ाना क्यों है जरूरी 


हर साल बैंगन छठ या चंपा षष्ठी का यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इसे बैंगन छठ के नाम से भी जानते हैं। दरअसल, इस पूजा में बैंगन चढ़ाते हैं इसलिए इसे बैंगन छठ कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव के खंडोबा स्वरूप की पूजा करते हैं। बैंगन छठ के दिन भगवान शिव की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। साथ ही इस दिन की पूजा करते समय शिवलिंग पर बैंगन और बाजरा भी चढ़ाने की प्रथा है। तो आइए इस आलेख में विस्तार से इसके बारे में जानते हैं। 


पापों का नाश करता है ये पूजा 


हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया गया है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से भक्तों के सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं और इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन जो कोई भी इंसान सच्चे मन से भगवान भोलेनाथ का ध्यान और पूजा करता है उनके सभी बिगड़े काम बन जाते हैं और उनकी जीवन में ख़ुशियाँ आती है। 


बैंगन छठ व्रत कथा 


चंपा छठ व्रत के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार बताया जाता है कि एक समय  दो राक्षस भाई हुआ करते थे, मल्ला और मानी। दोनों राक्षस भाइयों ने धरती वासियों, संत, देवताओं सभी को परेशान कर दिया था। राक्षसों के आतंक से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे, लेकिन भगवान विष्णु ने उनकी मदद करने से इंकार कर दिया। तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास मदद मांगने पहुंचे, लेकिन ब्रह्मा जी ने भी उन सभी की मदद करने से मना कर दिया। 

अंत में सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगने पहुंचे और उन दोनों राक्षसों की पूरी कहानी भगवान शिव से कह सुनाई। मानी और मल्ला को मारने के लिए भगवान शिव ने एक बदबूदार भयानक योद्धा खंडोबा का रूप धारण किया। यह योद्धा सोने और सूरज की तरह चमकदार प्रतीत हो रहा था। इसके अलावा इस योद्धा ने अपना पूरा चेहरा हल्दी से ढका हुआ था। इसके बाद भगवान शिव दोनों राक्षसों से युद्ध करने पहुंचे। जब मानी मरने वाला था तब उसने अपना सफेद घोड़ा खंडोबा को दे दिया और उनसे माफी मांगी और खंडोबा से वर भी मांगा कि जहां भी भगवान शिव की पूजा होती है वहां उसकी भी मूर्ति होगी। 


भगवान शिव ने मानी के इस वर को मान लिया। ऐसे में अब मानी एक देवता के रूप में भगवान शिव के साथ हर मंदिर में पूजा जाता है। इसके बाद दूसरा राक्षस मल्ला भी माफी मांगते हुए वर मांगने लगा। मल्ला ने कहा कि उसे दुनिया का पूरी तरह से विनाश का वरदान चाहिए। यह सुनकर भगवान शिव ने उसे श्राप दिया और उसकी गर्दन काटकर कहा कि अब से जो भी खंडोबा के मंदिर में आएगा उन भक्तों के पैरों से मल्ला का सिर कुचला जाएगा।


पूजा का विशेष मंत्र  


ॐ मार्तंडाय मल्लहारी नमो नमः॥
  • कार्तिकेय पूजन मंत्र: ॐ स्कन्दाय नमः॥
  • शिव-शक्ति पूजन मंत्र: ॐ गौरीशंकराय नमः॥
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गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा का त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। यह पर्व उस ऐतिहासिक अवसर की याद दिलाता है जब भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों को प्रकृति के प्रकोप से बचाने के लिए इंद्र के अहंकार को कुचल दिया था।

श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्

नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सिंह अवतार की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

होली से पहले आने वाला होलाष्टक क्या है

एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं।

होलाष्टक से जुड़े पौराणिक कथा

होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।

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